SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 283
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक* 270 अथ जाति विचारयितुमारभतेस्वसाध्यादविनाभावलक्षणे साधने स्थिते। जननं यत्प्रसंगस्य सा जाति: कैशिदीरिता॥३११॥ "प्रयुक्त हेतौ यः प्रसंगो जायते सा जातिः” इति वचनात्॥ कः पुनः प्रसंगः? इत्याहप्रसंग: प्रत्यवस्थानं साधर्म्यणेतरेण वा। वैधोक्तेऽन्यथोक्ते च साधने स्याद्यथाक्रमम् // 312 // उदाहरणवैधयेणोक्ते साधने साधम्र्येण प्रत्यवस्थानमुदाहरणसाधयेणोक्ते वैधर्येण प्रत्यवस्थानमुपालंभः प्रतिषेधः प्रसंग इति विज्ञेयं, “साधर्म्यवैधाभ्यां प्रत्यवस्थानं जाति:' इति वचनात्॥ एतदेवाहउदाहरणसाधर्म्यात्साध्यस्यार्थस्य साधनं / हेतुस्तस्मिन् प्रयुक्तेन्यो यदा प्रत्यवतिष्ठते // 313 // उदाहरणवैधात्तत्र व्याप्तिमखंडयत् / तदासौ जातिवादी स्याद्दूषणाभासवाक्ततः॥३१४॥ अब असत् उत्तर स्वरूप जातियों का विचार करने के लिए ग्रन्थकार विशेष प्रकरण का प्रारम्भ करते हैं - ___ “अपने साध्य के साथ अविनाभाव रखना” इस हेतु के लक्षण से युक्त ज्ञापक साधन के व्यवस्थित हो जाने पर जो पुन: प्रसंग उत्पन्न करना है, यानी वादी के ऊपर प्रतिवादी द्वारा दूषण दिया जाता है, उसको किन्हीं नैयायिकों ने जाति कहा है।।३११।। हेतु का प्रयोग कर चुकने पर जो प्रतिवादी द्वारा प्रसंग जना जाता है, वह जाति है। प्रसंग शब्द का क्या अर्थ है? ऐसी जिज्ञासा होने पर श्री विद्यानन्द स्वामी कहते हैं उदाहरण के वैधर्म्य से साध्य को साधने वाले हेतु का कथन कर चुकने पर पुनः प्रतिवादी द्वारा साधर्म्य करके प्रतिषेध करना अर्थात् दूषण उठाना प्रसंग है। अथवा अन्य प्रकार अर्थात् उदाहरण का साधर्म्य दिखाकर हेतु का कथन कर चुकने पर पुनः प्रतिवादी द्वारा वैधर्म्य करके प्रत्यवस्थान (उलाहना) देना प्रसंग है। यथाक्रम से ये दो प्रकार के प्रसंग हैं।।३१२॥ वादी द्वारा व्यतिरेक दृष्टान्तरूप उदाहरण के विधर्मत्व से ज्ञापकहेतु का कथन कर चुकने पर प्रतिवादी द्वारा साधर्म्य करके प्रतिषेध किया जाना प्रसंग है और वादी द्वारा अन्वयदृष्टान्तस्वरूप उदाहरण के समान धर्मापन करके ज्ञापक हेतु का कथन किये जाने पर पुनः प्रतिवादी द्वारा विधर्मत्व के द्वारा प्रत्यवस्थान (उलाहना) देना (अर्थात् वादी के कहे गये का प्रतिषेध कर देना) प्रसंग है। जाति का मूल लक्षण साधर्म्य और वैधर्म्य करके उलाहना उठाना जाति है। ऐसा जातिसूत्र में गौतम ऋषि ने कहा है। इसी सूत्र और भाष्य का अनुवाद करते हुए श्री विद्यानन्द आचार्य उक्त कथन को ही वार्तिकों द्वारा उनकी परिभाषा में कहते हैं - उदाहरण के साधर्म्य से साध्य अर्थ का साधन करने वाला हेतु है। उदाहरण के सधर्मत्व से उस हेतु का प्रयोग किये जाने पर जब अन्य प्रतिवादी उस अनुमान के हेतु में व्याप्ति का खण्डनं नहीं कराता हुआ
SR No.004287
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy