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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 258 लोके शब्दार्थसंबंधोभिधानाभिधेयनियमनियोगोस्याभिधानस्यायमर्थोभिधेय इति समानार्थ: सामान्यशब्दस्य, विशिष्टोर्थो विशेषशब्दस्य। प्रयुक्तपूर्वाश्चामी शब्दा: प्रयुज्यन्तेऽर्थेषु सामर्थ्यान्न प्रयुक्तपूर्वाः प्रयोगश्चार्थः अर्थसम्प्रत्ययाद् व्यवहार इति तत्रैवमर्थवत्यर्थशब्दप्रयोगे सामर्थ्यात्सामान्यशब्दस्य प्रयोगनियमः / अजामानय ग्राम, सर्पिराहर, ब्राह्मणं भोजयेति सामान्यशब्दा: संतोर्थावयवेषु प्रयुज्यंते सामर्थ्यात्। यत्रार्थे क्रियाचोदना संभवति तत्र वर्तते, न चार्थसामान्ये अजादौ क्रियाचोदना संभवति / ततोजादिविशेषाणामेवानयनादयः क्रिया: प्रतीयते न पुनस्तत्सामान्यस्यासंभवात्। एवमयं सामान्यशब्दो नवकंबल इति योर्थः संभवति नव: कंबलोस्येति तत्र वर्तते, यस्तु न संभवति नवास्य कंबला इति तत्र न वर्तते प्रत्यक्षादिविरोधात् / सोयमनुपपद्यमानार्थकल्पनया उठाने वाले प्रतिवादी को अन्यायपूर्वक कहने वाला कैसे कह सकते हैं? इसका आचार्य उत्तर देते हैं कि छल जब अन्यायस्वरूप है तो छलप्रयोक्ता मनुष्य अन्यायवादी अवश्य है। इस बात को और भी स्पष्ट कर कह देते हैं कि इस प्रतिवादी का दूषण उठाना अन्यायरूप है। सामान्य वाचक शब्दों के जब अनेक अर्थ प्रसिद्ध हैं तो उनमें किसी भी एक अर्थ के कथन की कल्पना के विशेष कथन से यह उस वादी का प्रत्यवस्थान दिखलाया गया होना चाहिए। विशेष रूप से हम यह जान पाये हैं कि इसके पास संख्या में नौ कम्बल हैं। यह अर्थ तुम वादी द्वारा विवक्षा प्राप्त है। किन्तु इसका कंबल नवीन है, यह अर्थ विवक्षित नहीं है और वह नौ संख्या वाला विशेष अर्थ यहाँ इस कथन में घटित नहीं होता है। अत: यह झूठा अभियोग आरोप है। इस प्रकार विपरीत समर्थन करना छलवादी को ही सम्भव है। जैनाचार्य न्यायभाष्य का अनुवाद कर रहे हैं कि लोक में शब्द और अर्थ का सम्बन्ध तो अभिधान और अभिधेय के नियम का नियोग करना है। इस शब्द का यह अर्थ अभिधान करने योग्य है। इस प्रकार सामान्य शब्द का अर्थ सामान्य है और विशेष शब्द का अर्थ विशिष्ट है। उन शब्दों का पूर्वकाल में भी लोकव्यवहारार्थ प्रयोग कर चुके हैं। वे ही शब्द अर्थप्रतिपादन में समर्थ होने के कारण इस समय प्रयोग किये जाते हैं। वे शब्द पहिले वचनव्यवहारों में प्रयोग नहीं किये गये हैं। ऐसा नहीं समझना। क्योंकि शब्दों के प्रयोग का व्यवहार तो वाच्य अर्थ का ज्ञान हो जाने से हो जाता है। अर्थ का ज्ञान कराने के लिए शब्दप्रयोग है और अर्थ का सम्यग्ज्ञान लोकव्यवहार है। इस प्रकार अर्थवान शब्द के होने पर अर्थ में शब्द का प्रयोग करना नियत है। तुम बकरी को गाँव ले जाओ, घृत को लाओ, ब्राह्मण को भोजन कराओ, इत्यादिक शब्द सामान्य के वाचक होते हुए भी सामर्थ्य द्वारा अर्थविशेषों में प्रयुक्त किये जाते हैं। जिस विशेष अर्थ में अर्थक्रिया की प्रेरणा होना सम्भव है, उसी अर्थ में वाचक प्रवृत्ति होती है। अर्थ सामान्य बकरी, ब्राह्मण आदि सामान्यों में किसी भी क्रिया की प्रेरणा सम्भवती नहीं है। विशेषों से रहित बकरी सामान्य या ब्राह्मण सामान्य कुछ पदार्थ नहीं है। बकरी, ब्राह्मण, घोड़ा आदि विशेष पदार्थों की ही लाना, ले जाना, भोजन कराना आदि क्रियायें प्रतीत होती हैं। किन्तु फिर उनके विशेषरहित केवल सामान्य के किसी भी अर्थक्रिया के हो जाने की सम्भावना नहीं है और न कोई सामान्य का लक्ष्य कर उसमें अर्थक्रिया करने का उपदेश ही देता है। इसी प्रकार यह “नवकंबल" शब्द सामान्य शब्द है। नव सख्या, नवसंख्यावान् और नवीन इन दोनों विशेषों में नवपना
SR No.004287
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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