________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 253 हेत्वाभासाश्च योगोक्ता: पंच पूर्वमुदाहताः। सप्तधान्यैः समाख्याता निग्रहाधिकतां गतैः॥२७५ // प्रमाण आदि सोलह पदार्थों के सामान्य रूप से लक्षण करते समय नैयायिकों ने पाँच प्रकार का हेत्वाभास कहा था म कहा था तथा उसके उदाहरण भी दिये थे निग्रहस्थानों की अधिकता को प्राप्त अन्य विद्वानों ने हेत्वाभासों की सात प्रकार की संख्या मानी है // 275 / / ___भावार्थ - अनैकान्तिक हेत्वाभास-जो हेतु पक्ष, सपक्ष और विपक्ष तीनों में जाता है वह अनैकान्तिक (व्यभिचारी) हेत्वाभास है। इसके साधारण, असाधारण और अनुपसंहारी ये तीन भेद हैं। जो हेतु सपक्ष और विपक्ष इन दोनों में रहता है वह साधारण अनैकान्तिक है। जैसे शब्द अनित्य है प्रमेय होने से, इसमें यह प्रमेयत्व हेतु अनित्य (पक्ष) नित्य (विपक्ष) दोनों में रहता है। जो हेतु सपक्ष, विपक्ष दोनों में ही नहीं रहता है, वह हेतु असाधारण हेत्वाभास है। जैसे शब्द अनित्य है शब्दत्व होने से। यह शब्दत्वहेतु अनित्य घटादि सपक्ष में और नित्य आत्मादि विपक्ष दोनों में ही नहीं रहता है। अत: असाधारण अनैकान्तिक हेत्वाभास है। संदिग्ध और निश्चित के भेद से अनैकान्तिक हेत्वाभास के दो भेद हैं। जो हेतु केवल अन्वयी होकर पक्ष में रहता है वह अनुपसंहारी हेत्वाभास है। जैसे सम्पूर्ण पदार्थ शब्दों के द्वारा कथन करने योग्य हैं प्रमेय होने से। इसमें प्रमेय हेतु व्यतिरेक नहीं है-सर्व प्रमेय पक्ष कोटि में है। अत: यह हेतु अनुपसंहारी हेत्वाभास है। .: पक्ष से वा साध्य से विरुद्ध पदार्थ के साथ अविनाभाव रखने वाला विरुद्ध हेत्वाभास है। जैसे यह स्थान अग्निवाला है, क्योंकि सरोवर है। अग्निमान सिद्ध करने के लिए दिया गया सरोवर हेतु विरुद्ध है। तीसरा हेत्वाभास प्रकरणसम है जिसका दूसरा नाम सिद्ध साधन हेत्वाभास है, जिससे सिद्ध किया हुआ पदार्थ सिद्ध किया जाता है; जैसे अग्नि उष्ण है उष्ण होने से। इसमें उष्ण हेतु सिद्ध साधन होने से हेत्वाभास है। कार्य (साध्य) को सिद्ध नहीं करने वाला हेतु असिद्ध हेत्वाभास है। साध्यसम, स्वरूपासिद्ध, आश्रयासिद्ध, व्याप्त्वसिद्ध इत्यादि असिद्ध के अनेक प्रकार हैं। पाँचवाँ हेत्वाभास बाधित विषय है, जिसका दूसरा नाम कालात्ययापदिष्ट है। प्रत्यक्ष बाधित, अनुमान बाधित, आगम बाधित, स्ववचन बाधित आदि अनेक भेद हैं। .. अग्नि शीतल होती है, क्योंकि द्रव्य है जो-जो द्रव्य होता है वह शीतल होता है, जैसे पानी। . इसमें अग्नि को शीतल सिद्ध करने के लिए दिया गया द्रव्यत्व हेतु प्रत्यक्ष बाधित है, क्योंकि अग्नि का शीतलपना प्रत्यक्ष बाधित है। पुण्य दुःख देने वाला है क्योंकि कर्म है। जो-जो कर्म होता है, वह-वह दुःख देने वाला है, जैसे पाप कर्म। परन्तु पुण्य दुःख देने वाला है। यह कथन आगमबाधित है। इस प्रकार पाँच प्रकार के हेत्वाभास समझने चाहिए। * निग्रहस्थानों के आधिक्य को प्राप्त अन्य विद्वानों ने सात प्रकार के भी हेत्वाभास माने हैं॥२७५॥