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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 6 क्षयनिमित्तोऽवधि: शेषाणामुपशमनिमित्तः क्षयोपशमनिमित्त इति वाक्यभेदात्क्षायिकौपशमिकक्षायोपशमिकसंयमगुणनिमित्तस्यावधिरवगम्यते / कार्ये कारणोपचारात् क्षयादीनां क्षायिकसंयमादिषूपचार: तथाभिधानोपपत्तेः॥ किमर्थं मुख्यशब्दानभिधानमित्याह क्षायोपशम इत्यन्तरंगो हेतुर्निगद्यते। यदि वेति प्रतीत्यर्थं मुख्यशब्दाप्रकीर्तनम् // 5 // तेनेह प्राच्यविज्ञाने वक्ष्यमाणे च भेदिनि / क्षयोपशमहेतुत्वात्सूत्रितं संप्रतीयते // 6 // क्षयोपशम इत्यन्तरंगो हेतुः सामान्येनाभिधीयमानस्तदावरणापेक्षया व्यवतिष्ठते स च सकलक्षायोपशमिकज्ञानभेदानां साधारण इति। यथेह षड्विधस्यावधेनिमित्तं तथा पूर्वत्र भवप्रत्ययेऽवधौ श्रुते मतौ देवों और नारकियों से अवशिष्ट किन्हीं मनुष्यों के कर्म प्रकृतियों के क्षय को बाह्य निमित्त मानकर अवधिज्ञान होता है, और किन्हीं मनुष्यों के उपशम को बहिरंग निमित्त कारण मानकर अवधिज्ञान हो जाता है। तथा कतिपय मनुष्य-तिर्यंचों के क्षयोपशमस्वरूप बहिरंगकारण से अवधिज्ञान हो जाता है। " ___ इस प्रकार सूत्रस्थ क्षयोपशम इस पद के तीन भेद कर देने से क्षायिकसंयम, औपशमिकसंयम और क्षायोपशमिकसंयम-इन तीन गुणों के कारण बहिरंग निमित्त से जीवों के अवधिज्ञान होना समझ लिया जाता है। कार्य में कारण का उपचार हो जाने से क्षय, उपशम आदि कर्म सम्बन्धी भावों का क्षायिकसंयम, उपशमसंयम और क्षायोपशमिक संयम-इन तीन संयमी आत्मा के गुणों में उपचार कर लिया गया है। इस प्रकार कथन करना युक्तियों से सिद्ध है। मुख्य शब्दों का उच्चारण क्यों नहीं किया? अर्थात् चारित्रमोहनीय के क्षय, उपशम और क्षयोपशमस्वरूप निमित्तों से अवधिज्ञान होता है, ऐसा स्पष्ट निरूपण करना चाहिए था। इस प्रकार जिज्ञासा होने पर आचार्य कहते हैं इस सूत्र से अवधिज्ञान का अन्तरंग कारण ज्ञानावरण का क्षयोपशम है, इस तत्त्व की प्रतिपत्ति कराने के लिए ही मुख्यशब्द का स्पष्टरूप से उच्चारण नहीं किया है अतः यहाँ शेष जीवों के छह भेद वाले अवधिज्ञान में और पूर्व में कहे गये देव-नारकियों के भव प्रत्यय अवधिज्ञान में तथा उससे भी पूर्व में कहे गए भेदयुक्त मतिज्ञान, श्रुतज्ञानों में और भविष्य में कहे जाने वाले भेद सहित मन:पर्यय ज्ञान में ज्ञानावरण के क्षयोपशम को अन्तरंग हेतु मानकर उत्पत्ति होती है। इस प्रकार सूत्र द्वारा निर्णीत किया गया है / / 5-6 // ___"क्षयोपशम' - इस पद के स्वतंत्र तीन भेद नहीं करने पर ज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम इस प्रकार एक अन्तरंग हेतु ही सामान्यरूप से कहा गया उन ज्ञानों के आवरणों की अपेक्षा से व्यवस्थित हो जाता है, और वह क्षयोपशम तो सम्पूर्ण चारों क्षायोपशमिक ज्ञान के भेदों का साधारण कारण है। इस प्रकार भेद, प्रभेद सहित चार ज्ञानों के सामान्यरूप से एक अन्तरंग कारण को कहने का भी सूत्रकार का अभिप्राय है। जिस प्रकार प्रकृत सूत्र में अनुगामी आदिक छह प्रकार के अवधिज्ञान का साधारण अन्तरंगनिमित्त क्षयोपशम विशेष कहा गया है, उसी प्रकार पूर्व में कहे गये भव हेतुक अवधिज्ञान में और उसके पूर्व कहे
SR No.004287
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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