________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 5 किमर्थमिदमित्याह;गुणहेतुः स केषां स्यात् कियद्भेद इतीरितुम् / प्राह सूत्रं क्षयेत्यादि संक्षेपादिष्टसंविदे॥१॥ कः पुनरत्र क्षयः कश्चोपशमः कश्च क्षयोपशम इत्याहक्षयहेतुरित्याख्यातः क्षयः क्षायिकसंयमः। संयतस्य गुणः पूर्वं समभ्यर्हितविग्रहः // 2 // तथा चारित्रमोहस्योपशमादुद्भवन्नयम् / कथ्येतोपशमो हेतोरुपचारस्त्वयं फले // 3 // क्षयोपशमतो जातः क्षयोपशम उच्यते। संयमासंयमोऽपीति वाक्यभेदाद्विविच्यते // 4 // इस सूत्र की रचना किस लिए की गई ह? ऐसा पूछने पर कहते हैं - गुणों को कारण मानकर उत्पन्न होने वाला वह दूसरा अवधिज्ञान किन जीवों के होता है? तथा उसके कितने भेद हैं? इस बात का प्रदर्शन करने के लिए श्री उमास्वामी ने “क्षयोपशमनिमित्तः षड्विकल्प: शेषाणाम्” इस प्रकार सूत्र को संक्षेप में अभिप्रेत अर्थ का ज्ञान कराने के लिए कहा है॥१॥ इस प्रकरण में फिर क्षय क्या पदार्थ है? और उपशम क्या है? तथा दोनों से मिले हुए क्षयोपशम स्वभाव का लक्षण क्या है? इस प्रकार जिज्ञासा होने पर आचार्य कहते हैं - प्रतिपक्षी कर्मों का क्षय जिस संयम का हेतु है, वह चारित्र मोहनीय कर्म के क्षय से उत्पन्न होने वाला क्षायिक संयम ‘क्षय' शब्द से कहा गया है। अर्थात् व्रतों का धारण, समितियों का पालन, कषायों का निग्रह, मन, वचन, काय की उद्दण्ड प्रवृत्तियों का त्याग, इन्द्रियों पर विजय ऐसे संयम को धारने वाले साधुओं का यह क्षायिक संयमगुण है। गुण को कारण मानकर किसी-किसी मुनि के अवधिज्ञान हो जाता है। द्वन्द्व समास में क्षयोपशम शब्द में पूजित और अल्पस्वर होने के कारण क्षयपद पहले प्रयुक्त किया गया है॥२॥ चारित्र मोहनीय कर्म के उपशम से उत्पन्न भाव उपशम कहा जाता है जो कि उपशम चारित्र किन्हीं संयमी पुरुषों का गुण है। इस उपशम भाव को निमित्त मानकर किन्हीं मुनियों के अवधिज्ञान हो जाता है। इस प्रकरण में उपशम और क्षय शब्दों से तज्जन्यभाव पकड़े गए हैं। अत: यह हेतु का फल में उपचार है। अर्थात् कारणों में क्षयपना या उपशमपना है, किन्तु क्षय और उपशम से जन्य क्षायिक संयम और औपशमिक संयमस्वरूप साधुगुणों को क्षय और उपशम कह दिया गया है॥३॥ प्रतिपक्षी कर्मों की सर्वघाति प्रकृतियों का क्षय और आगे उदय आने वाली सर्वघाति प्रकृतियों का वर्तमान में उपशम तथा देशघाति प्रकृतियों का उदय, इस प्रकार के क्षयोपशम से उत्पन्न हुआ भाव क्षयोपशम कहा जाता है। यहाँ भी कारण का कार्य में उपचार है। संयमासंयम भाव भी क्षयोपशम है। इस प्रकार क्षय, उपशम और क्षयोपशम, इनके वाक्यों के भेद से क्षयोपशम शब्द का विवेचन किया है॥४॥