________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 28 भी तत्त्वनिर्णय की रक्षा नहीं हो पाती है। इस प्रकार आचार्यश्री ने एकान्तवादियों का विश्वसनीय शैली में सतर्क खण्डन किया है। आरम्भ में संवाद और वाद की परिभाषा दी है। रागद्वेषरहित वीतराग पुरुषों में जो वचनों द्वारा परार्थाधिगम कराया जाता है, वह संवाद है और परस्पर जीतने की इच्छा रखने वालों में परार्थाधिगम प्रवर्तता है, वह वाद कहा जाता है। संवाद में चतुरंग की आवश्यकता नहीं है किन्तु वाद में वादी, प्रतिवादी, सभ्य और सभापति इन चार अंगों की आवश्यकता होती है। इस प्रकार यह प्रकरण शास्त्रार्थ की प्रविधि पर पाण्डित्यपूर्ण विवचेन है। इसी के साथ पंचम आह्निक (प्रकरण समुदाय) पूर्ण होता है। इस प्रकार इस खण्ड में अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान, एक साथ कितने ज्ञान, मिथ्याज्ञान के भेद व हेतु तथा नय के भेद सम्बन्धी अनेक प्रमेयों की कुल 401 वार्तिकों में व्याख्या है। तत्त्वार्थाधिगमभेद 471 वार्तिकों सहित आचार्यश्री की स्वतंत्र पाण्डित्यपूर्ण रचना है। इससे वार्तिककार और टीकाकार की अगाध विद्वत्ता का पता लगता है। सूत्रकार ने तो गागर में सागर भरा ही है। परिशिष्ट में श्लोकानुक्रमणिका संलग्न है। आभार : मैं पूज्य गणिनी आर्यिकाश्री सुपार्श्वमती माताजी के श्रीचरणों में सविनय वन्दामि निवेदन करता हूँ। आपने अपनी अभीक्ष्ण ज्ञानाराधना और तप:साधना के फलस्वरूप इस जटिल दार्शनिक संस्कृत ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद किया है और इसके सम्पादन-प्रकाशन कर्म में मुझे संलग्न कर मुझ पर अपार कृपा की है। मैं आपका आभारी हूँ। यथाशीघ्र प्रकाशन हेतु सतत प्रेरणा करने वाली पूज्य आर्यिका गौरवमती माताजी के चरणों में सविनय वन्दामि निवेदन करता हूँ। ___पं. मोतीचन्दजी कोठारी द्वारा तैयार की हुई पाण्डुलिपि से भी मूल संस्कृत पाठ का मिलान किया है अतएव मैं उनका भी आभारी हूँ। इस महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिक ग्रन्थ के सफल भाष्यकार तर्करत्न, सिद्धान्तमहोदधि, स्याद्वादवारिधि, दार्शनिकशिरोमणि, न्यायदिवाकर श्रद्धेय पं. माणकचन्द जी कौन्देय, न्यायाचार्य ने आचार्य विद्यानन्द की इस कृति पर अनेक वर्षों तक अथक परिश्रम पर 'तत्त्वार्थचिन्तामणि' नामक भाषाटीका रची है, जिसका स्वाध्याय कर विज्ञ विद्वद्जन ने लाभ प्राप्त किया है। इस टीका से प्रस्तुत संस्करण को सँवारने में अप्रतिम सहायता मिली है। प्रस्तुत खण्ड में अनेक स्थलों पर तो 'तत्त्वार्थ चिन्तामणि' का ही अनुकरण-अनुसरण किया है। ___ग्रन्थ के प्रकाशक श्रीमान् पन्नालालजी पाटनी एवं परिवार को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ। कम्प्यूटर कार्य के लिए निधि कम्प्यूटर्स के डॉ. क्षेमंकर व उनके सहयोगियों को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ। सुरुचिपूर्ण मोहक मुद्रण के लिए हिन्दुस्तान प्रिंटिंग हाउस, जोधपुर धन्यवादार्ह है। ___ सम्यग्ज्ञान के इस महदनुष्ठान में यत्किंचित् सहयोग देने वाले सभी भव्यों के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ और सम्पादन व प्रस्तुतीकरण में रही भूलों के लिए स्वाध्यायी बन्धुओं से सविनय क्षमायाचना करता 54-55 इन्द्रा विहार न्यू पॉवर हाउस रोड, जोधपुर-३४२००३ दीपमालिका पर्व वीर निर्वाण संवत् 2537 विनीत डॉ. चेतनप्रकाश पाटनी