________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 36 प्रमात्राधिष्ठितं तच्चेत्तत्र वर्तेत नान्यथा। किं न स्वापाद्यवस्थायां तदधिष्ठानसिद्धितः // 7 // आत्मा प्रयत्नवांस्तस्याधिष्ठानान्नाप्रयत्नकः। स्वापादाविति चेत्कोयं प्रयत्नो नाम देहिनः // 8 // प्रमेये प्रमितावाभिमुख्यं चैतदचेतनम् / यद्यकिंचित्करं तत्र पटवत् किमपेक्षते // 9 // चेतनं चैतदेवास्तु भावेंद्रियमबाधितम् / यत्साधकतमं वित्तौ प्रमाणं स्वार्थयोरिह // 10 // .. एतेनैवोत्तरः पक्षः चिंतितः संप्रतीयते। ततो नाचेतनं किंचित्प्रमाणमिति संस्थितम् // 11 // प्रमीयतेऽनेनेति प्रमाणमिति करणसाधनत्वविवक्षायां साधकतमं प्रमाणमित्यभिमतमेव अन्यथा तस्य करणत्वायोगात्। केवलमर्थप्रमितौ साधकतमत्वमेवाचेतनस्य कस्यचिन्न संभावयाम इति भावेंद्रियं चेतनात्मकं साधकतमत्वात् प्रमाणमुपगच्छामः / न चैवमागमविरोधः प्रसज्यते, “लब्ध्युपयोगौ भावेंद्रियं” इति वचनात् उपयोगस्यार्थग्रहणस्य प्रमाणत्वोपपत्तेः॥ प्रमिति के कर्ता आत्मा से अधिष्ठित होकर वे इन्द्रियाँ उस प्रमाणरूप कार्य की करने की प्रवृत्ति करती हैं अन्यथा (यानी प्रमाता के अधिकार में प्राप्त हुए बिना) वे पदार्थों को जानने को प्रवृत्त नहीं होती। जैसे मृत शरीर में रहने वाली इन्द्रियों की अधिष्ठाता आत्मा नहीं है अत: वे परिच्छित्तिरूप कार्य को नहीं करती हैं। ऐसा है, तो स्वप्न, मूर्छा आदि अवस्थाओं में उस आत्मा के अधिष्ठातापन की सिद्धि है फिर भी उस अवस्था में इन्द्रियाँ परिच्छित्ति को क्यों नहीं करती हैं? यदि कहो कि बुद्धिपूर्वक प्रयत्न करने वाली आत्मा उनका अधिष्ठापक है, स्वप्न आदि में प्रयत्न रहित आत्मा अधिष्ठाता नहीं बनती है,अत: मूर्छा आदि अवस्था में इन्द्रियाँ अधिष्ठाता के पुरुषार्थ बिना प्रमिति कार्य को नहीं करती हैं तो शरीरधारी आत्मा का यह प्रयत्न क्या है ? वस्तु, प्रमेय विषय में प्रमिति को उत्पन्न करने में आत्मा का अभिमुखपना यदि प्रयत्न है, तब तो यह अभिमुखपना अचेतन है। पट के समान अचेतन पदार्थ उस परिच्छित्ति क्रिया में कुछ भी न करने से अकिंचित्कर है वह अकिंचित्कर अचेतन क्यों अपेक्षणीय होगा? ___ यदि आत्मा में प्रमिति के निमित्त अभिमुखपना चेतन है तब तो यह चेतन पदार्थ ही बाधारहित भाव इन्द्रिय है, जो कि चेतन स्वरूप, भाव इन्द्रियाँ यहाँ स्व और अर्थ की प्रमा करने में साधकतम हुई हैं अतः प्रमाण हैं। (इससे चेतन को ही प्रमाण मानने वाला जैन सिद्धान्त पुष्ट होता है)॥७-८-९-१०॥ ___उक्त कथन से ही (यानी चेतन परिणाम को ही प्रमाणपन की पुष्टि कर देने से) दूसरा पक्ष भी विचारित कर दिया गया है, ऐसा जानना चाहिए अत: कोई भी अचेतन पदार्थ प्रमाण नहीं है, यह सिद्धान्त सिद्ध होता है॥११॥ ____जिसके द्वारा प्रमिति की जाती है वह प्रमाण है। इस प्रकार करण में अनट् प्रत्यय कर सिद्ध किये गये करण साधनत्व की विवक्षा होने पर वह प्रमिति क्रिया का प्रकृष्ट उपकारक साधकतम प्रमाण अभिमत ही है। अन्यथा प्रमिति का साधकतम न मानने पर उसका करणपना करना युक्त नहीं होता है। केवल यह विशेष है कि पदार्थों की प्रमिति करने में किसी भी अचेतन पदार्थ को साधकतमपना ही हमारी संभावना