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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 368 कथमेवं शब्दात्मकं श्रुतमिह प्रसिद्ध सिद्धांतविदामित्याह;तच्चोपचारतो ग्राह्यं श्रुतशब्दप्रयोगतः। शब्दभेदप्रभेदोक्तः स्वयं तत्कारणत्वतः // 3 // तच्च शब्दमानं श्रुतमिह ज्ञेयमुपचारात् व्यनेकद्वादशभेदमित्यनेन शब्दसंदर्भस्य भेदप्रभेदयोर्वचनात् स्वयं सूत्रकारेण श्रुतशब्दप्रयोगाच्च / स हि श्रूयतेस्मेति श्रुतं प्रवचनमित्यस्येष्टार्थस्य संग्रहार्थः श्रेयो। नान्यथा स्पष्टज्ञानाभिधायिनः शब्दस्य प्रयोगार्हत्वात्। कुतः पुनरुपचार: तत्कारणत्वात्। श्रुतज्ञानकारणं हि प्रवचनं ____विशेष ज्ञान को यदि श्रुत कहा जाता है तो यहाँ इस प्रकरण में सिद्धान्तवेदियों के शब्दात्मक श्रुत कैसे प्रसिद्ध हो सकता है? इस प्रकार प्रश्न होने पर आचार्य कहते हैं कि - मुख्यरूप से श्रुत का अर्थ श्रुतज्ञान है और उपचार से वह शब्दात्मक श्रुत भी श्रुतशब्द करके ग्रहण करने योग्य है। तभी तो शब्दों के होने वाले दो भेद और अनेक या बारह प्रभेद भगवान सूत्रकार ने स्वयं कह दिये हैं। अर्थात् - यदि ज्ञान का ही ग्रहण इष्ट होता तो शब्द के होने वाले भेद-प्रभेदों का वचन नहीं कहते, अत: उपचार से शब्दात्मक श्रुत भी अवश्य ग्राह्य है // 3 // .. भावार्थ : वक्ता के श्रुतज्ञान का कार्य और श्रोता के श्रुतज्ञान का कारण होने से शब्द भी श्रुत कहे जा सकते हैं। तत् श्रुतज्ञानं कारणं यस्य" अथवा "तस्य श्रुतज्ञानस्य कारणं"- इस प्रकार बहुब्रीहि या तत्पुरूष समाज द्वारा “तत्कारणं' की व्युत्पत्ति कर देने से उक्त अभिप्राय ध्वनित हो जाते हैं // 3 // . यहाँ वह श्रुत तो शब्दमात्र है, वह उपचार से समझना चाहिए, क्योंकि उस श्रुत के दो भेद हैं तथा अनेक और बारह भेद हैं। इस कथन से सूत्रकार ने शब्द सम्बन्धी रचना विशेष के यहाँ.संभव भेद-प्रभेदों का कथन किया है। तथा सूत्रग्रन्थ बनाने वाले श्री उमास्वामी महाराज ने स्वयं श्रुतशब्द का प्रयोग किया है। अर्थात् अंगबाह्य, अंगप्रविष्ट या अनेक, बारह ये भेद-प्रभेद तो शब्द के ही हो सकते हैं। श्रुतज्ञान में तो शब्द द्वारा ये भेद प्रभेद उपचार से माने गए हैं, मौलिक नहीं। स्वयं सूत्रकार ने श्रुत शब्द का प्रयोग किया है, जोकि “श्रु श्रवणे' धातु से कर्म में क्तप्रत्यय करने पर सुलभता से शब्द श्रुत को कहने के लिए अभिमुख हुआ है। जो कर्ण इन्द्रिय द्वारा सुना जा चुका है, वह श्रुत है। इस प्रकार निर्वचन किया गया शब्दमय श्रुतप्रवचन है। इस प्रकार के इस इष्ट अर्थ का संग्रह करने के लिए श्रुत शब्द का प्रयोग करना श्रेष्ठ है। ज्ञान और शब्द दोनों में रहने से श्रुतपद का प्रयोग करना अन्य प्रकारों से समुचित नहीं हो सकता है। यदि ज्ञान ही अर्थ, सूत्रकार को अभीष्ट होता तो स्पष्ट रूप से ज्ञान को कहने वाले ज्ञान, प्रमाण, वेदन, श्रुतज्ञान आदि पदों का ही प्रयोग करना योग्य था। भाव और कर्म में निष्ठा प्रत्यय कर ज्ञान और शब्द दोनों को कहने वाले श्रुत का प्रयोग करना उचित नहीं था, किन्तु प्रयोग किया है अत: अर्थापत्ति से सिद्ध हो जाता है कि मुख्य रूप से श्रुतज्ञान और गौणरूप से शब्दात्मक श्रुत इष्ट है। शंका : शब्द में श्रुतपने का उपचार कैसे किया गया? समाधान : श्रुतज्ञान का कारण होने से प्रवचन को उपचार से श्रुत कहते हैं क्योंकि श्रोताओं के श्रुतज्ञान का कारण नियम से प्रवचन है अतः वह शब्द उपचार से श्रुतप्रमाण कह दिया जाता है।
SR No.004286
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages438
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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