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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 22 अत्रावध्यादिवचनात् किं कृतमित्याह - जिघ्रत्यतींद्रियज्ञानमवध्यादिवचोबलात्। प्रत्याख्यातसुनिर्णीतबाधकत्वेन तद्गतेः॥२२॥ सिद्धे हि केवलज्ञाने सर्वार्थेषु स्फुटात्मनि / कात्स्येन रूपिषु ज्ञानेष्ववधिः केन बाध्यते // 23 // परचित्तागतेष्वर्थेष्वेवं संभाव्यते न किम् / मनःपर्ययविज्ञानं कस्यचित्प्रस्फुटाकृतिः // 24 // स्वल्पज्ञानं समारभ्य प्रकृष्टज्ञानमंतिमम् / कृत्वा तन्मध्यतो ज्ञानतारतम्यं न हन्यते // 25 // न ह्येवं संभाव्यमानमपि युक्त्यागमाभ्यामवध्यादिज्ञानत्रयमतींद्रियं प्रत्यक्षेण बाध्यते तस्य तदविषयत्वाच्च / नाप्यनुमानेनार्थापत्त्यादिभिर्वा तत एवेत्यविरोध: सिद्धः॥ ___ अतीन्द्रिय ज्ञान के प्रमाणपने की सिद्धि : इस सूत्र में अवधि, मन:पर्यय और केवलज्ञान का कथन क्यों किया गया है ? -ऐसी जिज्ञासा होने पर आचार्य कहते हैं - जो चार्वाक जड़वादी इन्द्रियजन्य प्रत्यक्ष को ही प्रमाण मानते हैं, वे अतीन्द्रियप्रत्यक्ष को स्वीकार नहीं करते हैं। इस सूत्र में अवधि आदि के वचन की सामर्थ्य से अतीन्द्रिय ज्ञानों के उपादान करने की गन्ध आ रही है (सिद्ध हो जाता है) क्योंकि प्रत्याख्यात सुनिर्णीत बाधकत्व होने से अतीन्द्रिय ज्ञान की गति (ज्ञान) होती है।अर्थात् अतीन्द्रिय ज्ञान में प्रमाणपने के बाधक प्रमाण का अभाव है॥२२॥ .. त्रिकाल त्रिलोकवर्ती सम्पूर्ण पदार्थों में अत्यन्त विशदस्वरूप ज्ञान करने वाले केवलज्ञान के सिद्ध हो जाने पर यथायोग्य संसारी जीव और पौद्गलिकरूपी पदार्थों में पूर्णरूप से विशद ज्ञानों में अवधिज्ञान किसके द्वारा बाधित हो सकता है ? अर्थात् सबको स्पष्ट जानने वाले केवलज्ञान के सिद्ध हो जाने पर केवल रूपीपदार्थों को स्पष्ट रूप से जानने वाला अवधिज्ञान तो सुलभता से सिद्ध हो जाता हैं॥२३॥ इस प्रकार केवलज्ञान के सिद्ध हो जाने पर दूसरे के मनोगत अर्थ को जानने वाला तथा निर्मल साकार मन:पर्यय ज्ञान किसी संयमी को संभव क्यों नहीं है? // 24 // अर्थात् मन:पर्यय ज्ञान भी हो सकता सूक्ष्म निगोदिया लब्ध्यपर्याप्तक जीव के छह हजार बारह बार जन्म-मरण कर अन्त में तीन मोड़ा की गति से मरने का प्रकरण प्राप्त होने पर विग्रह गति के पहले समय में सबसे छोटा जघन्य ज्ञान होता है। संक्लेश की कुछ हीनता हो जाने से दूसरे समय में ज्ञान बढ़ जाता है। अक्षर के अनन्तवें भाग स्वल्पज्ञान का प्रारम्भ कर अनन्त बार छह वृद्धियों के अनुसार अन्तिम प्रकर्षता को प्राप्त केवलज्ञान तक अतिशय से उनके मध्यरूप से होने वाले ज्ञानों का तारतम्य किसी के द्वारा बाधित नहीं होता है।॥२५॥ इस प्रकार युक्ति और आगमों के द्वारा संभावित या सिद्ध अवधि आदि तीन अतीन्द्रिय ज्ञान बाह्य इन्द्रियजन्य प्रत्यक्षों के द्वारा बाधित नहीं होते हैं, क्योंकि वह इन्द्रिय प्रत्यक्ष अतींद्रिय ज्ञानों को विषय नहीं करता है। जो ज्ञान जिसको विषय नहीं करता है, वह उसका साधक या बाधक नहीं होता है तथा अनुमान प्रमाण के द्वारा अथवा अर्थापत्ति, उपमान आदि प्रमाणों के द्वारा भी अवधि आदि तीन प्रत्यक्षों को बाधा प्राप्त नहीं होती है, क्योंकि अवधि आदि ज्ञान अनुमानादि ज्ञान का विषय नहीं, इस प्रकार अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष के साथ अनुमान आदि प्रमाणों का अविरोध सिद्ध है।
SR No.004286
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages438
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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