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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 263 तथोपमानपूर्विकोपमानविज्ञातादर्थाद्वाहादिशक्तिरयं गवयो गवयत्वान्यथानुपपत्तेरिति, तथागमपूर्विका आगमविज्ञातादर्थादर्थप्रतिपादनशक्तिः शब्दो नित्यार्थसम्बन्धत्वान्यथानुपपत्तेरिति, तथार्थापत्तिपूर्विकार्थापत्तिरपत्तिप्रमाणविज्ञातादर्थाद्यथारात्रिभोजनशक्तिः विवादापन्नो देवदत्तोयं रात्रिभोजित्वान्यथानुपपत्तेरिति / तथैवाभावपूर्विकार्थापत्तिरभावप्रमाणविज्ञातादर्थाद्यथास्माद्गृहाबहिस्तिष्ठति देवदत्तो जीवित्वे सत्यत्राभावान्यथानुपपत्तेरिति / एतेनाभावस्य प्रमाणांतरत्वमुक्तमुपमानस्य वा वस्तुनो सतः उपमान प्रमाण से ज्ञात अन्यथाभूत अर्थ से अदृष्ट अर्थ की जो कल्पना की जाती है कि यह रोझ (गवय) पशु लादना, दौड़ना आदि शक्तियों से युक्त है, अन्यथा (दौड़ना आदि शक्तियों से सहितपन के बिना) गवयपना नहीं बनता है। यह उपमान पूर्विका अर्थापत्ति है। भावार्थ : यहाँ गौ के सदृश गवय है। ऐसे वृद्धवाक्य को सुनकर वन में जाकर गलकम्बल से रहित बैल सरीखे पशु को देखकर यह गवय है' ऐसा उपमान प्रमाण द्वारा जान लिया जाता है। ____ पुनः गवयपने से 'वाह' आदि अतीन्द्रिय शक्तियों का अर्थापत्ति द्वारा ज्ञान कर लिया जाता है। तथा आगमप्रमाण द्वारा ज्ञात अर्थ से अविनाभावी अदृष्ट अर्थ का ज्ञान कर लेना आगमपूर्वक अर्थापत्ति है जैसे कि यह शब्द अमुक अर्थ को प्रतिपादन करने की शक्ति से तदात्मक है। नित्य अर्थ के साथ सम्बन्ध अन्यथा (अर्थ प्रतिपादन शक्ति के साथ तदात्मक) बन नहीं सकता है। अर्थात्-यहाँ स्वाभाविकी योग्यता और संकेत के वश शब्द और अर्थ के नित्य रहने वाले सम्बन्ध सहितत्व को आगम प्रमाण द्वारा निर्णीत कर पुनः नित्य अर्थ के सम्बन्धी शब्द की अर्थ प्रतिपादन शक्ति का अर्थापत्ति द्वारा ज्ञान कर लिया जाता है। अनुमान आदि को कारण मानकर प्रथम अर्थापत्ति बना ली जाती है पुनः उस अर्थापत्ति प्रमाण से ज्ञात अर्थ से अविनाभावी अदृष्ट अर्थ की दूसरी ज्ञप्ति करना अर्थापत्तिपूर्विका अर्थापत्ति कही जाती है जैसे कि भोजन कर सकने वाला और भोजन नहीं कर सकने वाला, इस प्रकार विवाद में पड़ा हुआ यह देवदत्त रात को खाने की शक्ति से युक्त है क्योंकि अर्थापत्ति से जान लिया गया रात्रिभोजीपना अन्यथा (भोजन करने की शक्ति के बिना) अनुपपन्न है। यहाँ प्रत्यक्ष प्रमाण से देवदत्त के अविकृत मोटेपन को देखकर दिन में नहीं खाने वाले देवदत्त का रात्रि में भोजन करना प्रथम अर्थापत्ति से जान लिया जाता है। पुनः रात्रिभोजनपन की अन्यथानुपपत्ति से रात में भोजन करने की शक्ति का ज्ञान दूसरी अर्थापत्ति से किया जाता है। तथा अभाव प्रमाण द्वारा ज्ञात अविनाभूत अर्थ से अदृष्ट अन्य अर्थ में कल्पना उठाना अभावपूर्वक अर्थापत्ति है। जैसे कि इस घर से बाहर प्रदेश में देवदत्त ठहरा हुआ है, क्योंकि जीवित होने पर देवदत्त का यहाँ घर में नहीं रहना अन्यथा (बाहर ठहरने के बिना) असम्भव है। अर्थात्-जीवित देवदत्त घर में नहीं है तो वहाँ बाहर अवश्य है, ऐसा निर्णय कर लिया जाता है।
SR No.004286
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages438
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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