________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 20 किं पुनरत्र मतिग्रहणात् सूत्रकारेण कृतमित्याह;मतिमात्रग्रहादत्र स्मृत्यादेऑनता गतिः। तेनाक्षमतिरेवैका ज्ञानमित्यपसारितम् // 19 // सानुमानोपमाना च सार्थापत्त्यादिकेत्यपि। संवादकत्वतस्तस्याः संज्ञानत्वाविरोधतः॥२०॥ ___ अक्षमतिरेवैका सम्यग्ज्ञानमगौणत्वात् प्रमाणस्य नानुमानादि ततोर्थनिश्चयस्य दुर्लभत्वादिति के षांचिद्दर्शनं। सानुमानसहिता सम्यग्ज्ञानं स्वसामान्यलक्षणयोः प्रत्यक्षपरोक्षयोरर्थयो: प्रत्यक्षानुमानाभ्यामवगमात् ताभ्यां तत्परिच्छित्तौ प्रवृत्तौ प्राप्तौ च विसंवादाभावादित्यन्येषां / सैवानुमानोपमानसहिता सम्यग्ज्ञानं, उपमानाभावे तथा चात्र धूम इत्युपनयस्यानुपपत्तेरिति परेषां / फिर इस सूत्र में मति शब्द को ग्रहण करने के लिए सूत्रकार ने क्या किया है? इस प्रकार की जिज्ञासा होने पर कहते हैं - सूत्र में मतिज्ञान के ग्रहण से ही स्मृति, तर्क, प्रत्यभिज्ञान आदि का ज्ञानपना जान लिया जाता है इसलिए इन्द्रियों से उत्पन्न हुआ ज्ञान ही एक मतिज्ञान है; ऐसे चार्वाक के सिद्धान्त का निराकरण कर दिया गया है, तथा अनुमान सहित इन्द्रियजन्य ज्ञान (प्रत्यक्ष) ये दो ही मतिज्ञान हैं, यहाँ वैशेषिक या बौद्ध का मत भी दूर हो जाता है। अनुमान और उपमान सहित इन्द्रियजन्य मति ही प्रमाण है। अनुमान, उपमान, अर्थापत्ति, शाब्द, अभाव, संभव, ऐतिह्य आदि से सहित इन्द्रियमति प्रमाण है। इस प्रकार तीन, चार, पाँच आदि प्रमाणों के मानने वाले कपिल, नैयायिक आदि का मन्तव्य भी निवारित हो जाता है। क्योंकि इनमें से किसी ने भी स्मृति या तर्कज्ञान को प्रमाण नहीं माना है किन्तु सफल प्रवृत्ति के जनकपने रूप संवादकपने से उन स्मृति आदि के भी समीचीन ज्ञानपने का कोई विरोध नहीं है। इन्द्रियजन्य मतिज्ञान में बुद्धि, स्मृति, व्याप्तिज्ञान, उपमान, वैसादृश्य ज्ञान, अर्थापत्ति आदि सब समा जाते हैं।।१९-२०॥ स्पर्शन आदि इन्द्रियों से उत्पन्न हुआ मतिज्ञान ही एक सम्यग्ज्ञान है, क्योंकि प्रमाण की मुख्यता होती है। अर्थात् संसार में प्रमाण ही तो न्यायाधीश के समान प्रधान है। अनुमान, स्मृति आदि तो प्रत्यक्ष की सहायता चाहते हैं अत: गौण होने से प्रमाण नहीं हैं तथा उन अनुमान आदि से अर्थ का निश्चय होना दुर्लभ है। ऐसा बृहस्पति मत के अनुयायियों का (चार्वाक का) दर्शन है। तथा वह इन्द्रिय प्रत्यक्ष तो अनुमान सहित होता हुआ सम्यग्ज्ञान है। स्वलक्षण रूप प्रत्यक्षयोग्य विषय की तो प्रत्यक्ष प्रमाण से ज्ञप्ति हो जाती है और सामान्यरूप परोक्ष विषय की अनुमान प्रमाण से ज्ञप्ति हो जाती है। ____ उन प्रत्यक्ष और अनुमान प्रमाणों से उन स्वलक्षण और सामान्य विषयों की ज्ञप्ति, प्रवृत्ति और प्राप्ति करने में विसंवाद नहीं है। ऐसा बौद्ध का मत है। अनुमान प्रमाण और उपमान प्रमाण से सहित वह इन्द्रिय मति ही सम्यग्ज्ञान है। क्योंकि बौद्धों के सदृश यदि हम भी उपमान को न मानेंगे तो उस प्रकार “वह्नि के साथ व्याप्ति रखने वाला वैसा ही धूम यहाँ है" इस उपनय वाक्य की सिद्धि न हो सकेगी। अतः अनुमान के पाँच अवयवों में से उपनय के बिगड़ जाने पर अनुमान प्रमाण कैसे स्थित रह सकेगा? .