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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 240 / सर्वमुत्तरचारीह कार्यमित्यानिराकृतेः। नानाप्राणिगणादृष्टात्सातेतरफलाद्विना // 30 // पूर्वोत्तरचराणि स्यु नि क्रमभुवः सदा। नान्योन्यं हेतुता तेषां कार्याबाधा ततो मता // 303 // साध्यसाधनता च स्यादविनाभावयोगतः। हेत्वाभासास्ततोऽन्ये ये सौगतैरुपदर्शितं // 304 // - तदेवं सहचरोपलब्ध्यादीनां कार्यस्वभावानुपलब्धिभ्योन्यत्वभाजां व्यवस्थापनात्ततोन्ये हेत्वाभासा एवेति न वक्तव्यं सौगतैरित्युपदर्शयति;पक्षधर्मस्तदंशेन व्याप्तो हेतुस्त्रिधैव सः। अविनाभावनियमादिति वाच्यं न धीमता // 305 // उसी प्रकार उन हेतुभेदों को जानने वाले विद्वानों के द्वारा उत्तरचर की उपलब्धि का उदाहरण दिया गया है कि आकाशमंडल में भरणी नक्षत्र का उदय हो चुका है, क्योंकि कृत्तिका का उदय देखा जा रहा है। इस प्रकार वह भरणी उदय के मुहूर्त पीछे उदय होने वाली कृत्तिका की उपलब्धि है॥३०१।। जो कहते हैं कि सर्व उत्तरचर हेतु कार्यहेतु में गर्भित हो जाते हैं, इसका भी यहाँ निराकरण कर दिया गया है, क्योंकि सातस्वरूप सुख और असातरूप दुःख हैं-फल जिनके ऐसे अनेक प्राणी समुदाय के पुण्यपापों के बिना कोई कार्य होता नहीं है। (अतः सुख दुःखरूप फल से जो पुण्यपाप का अनुमान है, वह कार्य से कारण का अनुमान है)॥३०२॥ ___ क्रम से उदय होने वाले पूर्व उत्तरचर नक्षत्र हैं, उनका परस्पर में हेतुपना नहीं कहना चाहिए। क्योंकि, लौकिक अथवा शास्त्रीय विद्वानों का बाधारहित व्यवहार होवे, उस प्रकार हेतुहेतुमद्भाव मान कर समीचीन हेतु की व्यवस्था कर लेनी चाहिए // 303 / / . अन्यथानुपपत्तिरूप अविनाभाव के योग से साध्यसाधन भाव माना गया है। अविनाभाव को न मानकर जो सौगतों ने उन व्याप्य आदि से पृथक् हेतु माने हैं, वे सब हेत्वाभास हैं। इस बात को पूर्व में दिखला चुके हैं। अन्यथानुपपत्ति रूप के बिना केवल अविनाभाव के सम्बन्ध से साध्यसाधन भाव नहीं होता है। कार्य, स्वभाव, अनुपलब्धि ये तीन ही हेतु हैं। उनके पृथक् पूर्वचर आदि हेत्वाभास ही हैं इस प्रकार बौद्धों का कथन ठीक नहीं है॥३०४॥ इस प्रकार सहचर उपलब्धि, पूर्वचर उपलब्धि आदि जो बौद्धों के द्वारा माने गये कार्य हेतु, स्वभाव हेतु और अनुपलब्धि हेतुओं से पृथक् है। उनकी व्यवस्थापना वा सिद्ध हो जाने पर भी बौद्धों को उन कार्य आदि तीन हेतुओं से भिन्न सभी हेतु हेत्वाभास हैं-ऐसा नहीं कहना चाहिए। इस बात को ग्रन्थकार दिखलाते ____ बौद्धों द्वारा माने गये तीन ही हेतु नहीं हैं किन्तु अन्य सहचर आदि हेतुओं की भी व्यवस्था की जा चुकी है। ___ उस साध्यवान पक्ष के अंशरूप साध्य के द्वारा व्याप्त हो रहा वह हेतु तीन प्रकार का है (पक्षधर्मत्व, सपक्षसत्त्व और विपक्ष व्यावृत्ति) इन हेतु में ही अविनाभाव नियम घटित हो सकता है। ऐसा नहीं कहना चाहिए। क्योंकि सहचारी, उत्तरचारी हेतु भी पक्ष धर्मत्व न होने पर भी, सत्यार्थरूप से हेतु माने गये हैं अतः
SR No.004286
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages438
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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