________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 238 न च तस्यानुमा स्वाद्यमानाद्रसविशेषतः। समानसमयस्यैव रूपादेरनुमानतः // 289 // कार्येण कारणस्यानुमानं येनेदमुच्यते। कारणेनापि रूपादेस्ततो द्रव्येण नानुमा // 290 // समानकारणत्वं तु सामग्येका यदीष्यते। पयोरसात्सरोजन्मरूपस्यानुमितिर्न किम् // 291 // यथैव हि पयोरूपं(?) रूपाद्रससहायकात्। तथा सरोद्भवेपीति स्यात्समाननिमित्तता // 292 // प्रत्यासत्तेरभावाच्चेत्साध्यसाधनतानयोः। नष्टैकद्रव्यतादात्म्यात् प्रत्यासत्तिः परा च सा // 293 // . नन्वर्थांतरभूतानामहेतुफलताश्रिताम्। सहचारित्वमर्थानां कुतो नियतमीक्ष्यते // 294 // कार्यकारणभावास्ते कस्मादिति समं न किम्। तथा संप्रत्ययात्तुल्यं समाधानमपीदृशं // 295 // है। यह रूप रस आदि में स्पष्ट देखा जाता है। ऐसी दशा में रस, रूप आदि का कार्यकारणभाव कैसे हो सकता है? उनमें सहचर भाव ही है॥२८७-२८८॥ . रस से रूप का अनुमान करते समय वह कार्य से कारण का अनुमान नहीं होता, अपितु सहचर हेतु है। स्वादात्मक रस विशेष से समान समय वाले ही रूप आदि का अनुमान होना देखा जाता है। जो कार्य द्वारा कारण का ज्ञान होना रूप अनुमान कहा जाता है उस कारण द्वारा रूप आदि का अथवा उसी कारण द्रव्य के द्वारा रूप आदि का अनुमान होना नहीं बन सकता // 289-290 // अर्थात् रस रूप का कारण नहीं है क्योंकि रस से रूप उत्पन्न नहीं होता अपितु वे एक साथ रहते हैं उनका द्रव्य क्षेत्र काल एक है जैसे ज्ञान दर्शन सहचर है कारण-कार्य में एक क्षेत्र द्रव्य नहीं होता, अत: यह सहचर हेतु कार्य-कारण से भिन्न है। यदि रूप और रस का कारण समान है, अत: रूप और रस की एक सामग्री इष्ट की जायेगी तब तो जल के रस से कमल के रूप का अनुमान क्यों नहीं होता? क्योंकि जल के रस का कारण जल है और कमल के रूप का कारण भी वही जल है। जिस प्रकार रस है सहायक जिसका, ऐसे रूप स्कंध से जल का रूप बनता है, उसी प्रकार कमल में भी रूप बन जाता है तथा, जैसे पानी भी सरोवर से उत्पन्न होता है और कमल भी, दोनों एक सामग्री के अधीन हैं। ऐसी दशा में समाननिमित्तपना हो जाएगा // 291-292 // कार्य और कारणों की प्रत्यासत्ति न होने से इन कार्यकारण भिन्नों का साध्यसाधनपना यदि मानोगे तब तो एक द्रव्य के साथ तदात्मक हो रहे रूप सम्बन्ध के अतिरिक्त और कोई वह प्रत्यासत्ति नहीं है। (अर्थात् कार्यकारणभाव को प्राप्त पदार्थों में अन्य क्षेत्रप्रत्यासत्ति, कालप्रत्यासत्ति आदि का पूर्व में खण्डन कर दिया गया है)॥२९३॥ शंका : सर्वथा एक दूसरे से भिन्न और कार्यकारण भाव के आश्रय से रहित पदार्थों का सहचारिपना किस हेतु से नियत किया जा सकता है? समाधान : बौद्धों के यहाँ पूर्व, उत्तरवर्ती निरन्वयक्षणिक पदार्थों का कार्यकारणभाव भला किससे निर्णीत किया जाता है? अर्थात् पूर्व समयवर्ती क्षण का उत्तर समयवर्ती क्षणिकपरिणाम के साथ बौद्धों ने