________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 233 व्यभिचाराभावात्॥ कारणव्यापकद्विष्ठोपलब्धिर्नास्ति निर्वृतिः। सांख्यादेर्ज्ञानमात्रोपगमादिति यथेक्ष्यते // 264 // निर्वृते: कारणं व्याप्तं दृष्ट्यादित्रितयात्मना। तद्विरुद्धं तु विज्ञानमात्रं सांख्यादिसम्मतम् // 265 / / न हीयं कारणव्यापकविरुद्धोपलब्धिरसिद्धा निषेध्यस्य निर्वाणस्य हेतोर्व्यापकस्य सम्यग्दर्शनादित्रयात्मकत्वस्य निश्चयात् तद्विरुद्धस्य ज्ञानमात्रात्मकत्वस्य सांख्यादिभिः स्वयं संमतत्वात्॥ कारणव्यापकद्विष्ठकार्यदृष्टिस्तु तद्वचः। सम्यग्विवेचितं साध्याविनाभावि प्रतीयते // 266 // __सांख्यादेर्नास्ति निर्वाणं ज्ञानमात्रवचनश्रवणादिति कारणव्यापकविरुद्धकार्योपलब्धिः प्रत्येया सुविवेचितस्य कार्यस्य साध्याविनाभावसिद्धेः॥ दृष्टा सहचरद्विष्ठोपलब्धिस्तद्यथा मयि। नास्ति मत्याद्यविज्ञानं तत्त्वश्रद्धानसिद्धितः // 267 // मिथ्याज्ञान से विरुद्ध सम्यग्ज्ञान है, उस सम्यग्ज्ञान का कार्य यथार्थवचन कहना है। अतः सम्यग्ज्ञान द्वारा निर्मित यथार्थ वचन हेतु सुविवेचित निषेध्य मिथ्याचारित्र के अभाव को सिद्ध करता ही है। इसमें कोई व्यभिचार, असिद्ध आदि दोष नहीं आते हैं अर्थात् विरुद्धकार्योपलब्धि, अनैकान्तिक आदि हेत्वाभास से रहित है। . कारण व्यापक विरुद्धोपलब्धि हेतु का उदाहरण इस प्रकार है कि सांख्यादि के मत में मोक्ष नहीं है, क्योंकि उन्होंने अकेले तत्त्वज्ञान को ही मुक्ति का कारण स्वीकार किया है परन्तु रत्नत्रय से प्राप्त करने योग्य मोक्ष अकेले ज्ञान से प्राप्त नहीं होता। मुक्ति का कारण सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र इस त्रितयस्वरूप से व्याप्त है और उस रत्नत्रय से रहित सांख्यादि के द्वारा स्वीकृत अकेला विज्ञान विरुद्ध पड़ता है। अर्थात् सांख्यों ने तत्त्वज्ञानान् मोक्षः' प्रकृति और पुरुष का भेदज्ञानरूप-तत्त्वज्ञान से मोक्ष होना अभीष्ट किया है। नैयायिकों ने दुःख-जन्म-प्रवृत्ति आदि सूत्र द्वारा तत्त्वज्ञान को ही मोक्ष का कारण माना है। वैशेषिक, योग आदि वादियों ने भी इसी प्रकार माना है परन्तु यह विरुद्ध है॥२६४-२६५।। यह कारण व्यापक विरुद्ध उपलब्धि हेतु असिद्ध भी नहीं है, क्योंकि निषेध करने योग्य, निर्वाण का कारण मोक्षमार्ग है। उस मोक्षमार्ग का व्यापक सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र इन तीनों की एकता रूप का निश्चय है। उस रत्नत्रय से विरुद्ध अकेले ज्ञानस्वरूप को ही सांख्य आदि ने स्वयं मोक्ष का कारण स्वीकार किया है अतः कारण विरुद्ध व्यापकोपलब्धि है। __सांख्य आदि के यहाँ मोक्ष सिद्ध नहीं होता है, क्योंकि उनके यहाँ मोक्ष का कारण अकेले ज्ञान का ही वचन सुना जाता है, यह कारण व्यापक विरुद्ध कार्योपलब्धि हेतु है, क्योंकि पूर्व में भली प्रकार विवेचन किये गये इस हेतु में साध्य के साथ अविनाभाव प्रतीत हो रहा है॥२६६॥ ___सांख्य आदि प्रतिवादियों के यहाँ मोक्ष नहीं है, क्योंकि उनके दर्शन में मोक्ष के कारणों में अकेले ज्ञान का ही वचन सुना जाता है। इस प्रकार यह कारण व्यापक विरुद्ध कार्यउपलब्धि हेतु समझ लेना चाहिए।