________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 201 शेषाणामकिंचित्करत्वापत्तेस्तद्विकल्पस्यैव पंचरूपत्वादेरलक्षणत्वेन साध्यत्वाद्युक्तोतिदेशः / एवमन्वयव्यतिरेकिणो हेतो: पंचरूपत्वमलक्षणं व्यवस्थाप्यान्वयिनोपि नान्वयो लक्षणं साधारणत्वादेवेत्याह;अन्वयो लोहलेख्यत्वे पार्थिवत्वेशनेस्तथा। तत्पुत्रत्वादिषु श्यामरूपत्वे क्वचिदीप्सिते॥१८९॥ . लोहलेख्योऽशनिः पार्थिवत्वाद्धातुरूपवत् , स श्यामरूपस्तत्पुत्रत्वात्तन्नप्त्वाद्वा परिदृष्टतत्पुत्रादिवदिति हेत्वाभासेपि सद्भावादन्वयस्य साधारणत्वं। ततो हेत्वलक्षणत्वं। यस्तु साध्यसद्भाव एव भावो हेतोरन्वयः सोऽन्यथानुपपन्नत्वमेव तथोपपत्त्याख्यमसाधारणं हेतुलक्षणं / परोपगतस्तु नान्वयस्तल्लक्षणं नापि केवलव्यतिरेकिणो व्यतिरेक इत्याहअदृष्टिमात्रसाध्यश्च व्यतिरेकः समीक्ष्यते। वक्तृत्वादिषु बुद्धादेः किंचिज्ज्ञत्वस्य साधने // 190 // इस प्रकार अन्वय और व्यतिरेक से सहित हेतु का पंचरूपपना लक्षण नहीं है। इसको व्यवस्थापित कर अब अन्वय वाले हेतु का भी लक्षण सत्त्वरूप अन्वय नहीं है क्योंकि सत्त्वरूप अन्वय हेतु और हेत्वाभासों में सामान्य रूप से रह ही जाता है अर्थात् सत्त्व रूप अन्वय हेतु और हेत्वाभास सामान्य रूप से दोनों में पाया जाता है, इस बात का ग्रन्थकार स्वयं प्रतिपादन करते हैं हीरा पृथ्वी का विकार होने से लोहे के द्वारा खुरचा जाता है जैसे पाषाण आदि। इस अनुमान में पृथ्वी का विकारपना हेतु अन्वयरूप से विद्यमान है। तथा 'गर्भस्थः पुत्रः श्यामो भवितुमर्हति मित्रातनयत्वात् दृष्टपुत्रवत्' इस अनुमान द्वारा किसी अभीष्ट गर्भस्थित पुत्र में श्यामरूपपना साध्य करने पर तत्पुत्रत्व आदि हेतुओं में अन्वयपना कहीं पर इप्सित है (इष्ट है)॥१८९॥ परन्तु वह हेतु का लक्षण नहीं ___वज्र लोहे की छैनी से खुरचने योग्य है, पृथ्वी द्रव्य का विकार होने से। जैसे कि अन्य चांदी, सोना, आदि धातु भेद करके उकेरे जाते हैं (या पार्थिव पदार्थ लोहे से लिखे जाने योग्य है) तथा गर्भस्थ बालक काले रूप वाला है, क्योंकि उस मित्रा नाम की काली स्त्री का लड़का है अथवा उस विवक्षित पुरुष का नाती है। जैसे कि और भी कतिपय दृष्टिगत उसके पुत्र, पौत्र, पुत्रियाँ आदि काले हैं। - इस प्रकार हेत्वाभास में भी अन्वय का सद्भाव है अतः अन्वय हेतु का साधारणरूप है। इसलिए का लक्षण नहीं हो सकता। जो साध्य के होने पर ही हेतु का सद्भाव रूप अन्वय कहा जाएगा वह तो तथोपपत्ति नाम की अन्यथानुपपत्ति हेतु का असाधारण लक्षण होता है। तथोपपत्ति (साध्य के रहने पर . ही हेतु का रहना) और अन्यथानुपपत्ति (साध्य के न रहने पर हेतु का नहीं रहना) रूप दो प्रकार से अविनाभाव माना गया है किन्तु दूसरे वादियों के द्वारा स्वीकृत अन्वयीपना हेतु का लक्षण नहीं है। तथा केवल व्यतिरेकपना भी हेतु का लक्षण विपक्षव्यावृत्तिरूप व्यतिरेक नहीं है। इस बात का ग्रन्थकार स्पष्टीकरण करते हैं _ वक्ता आदि में अल्पज्ञ बुद्धादि के साधन में दृष्टिगोचर नहीं होना रूप साध्य व्यतिरेक देखा जाता है। यदि सम्पूर्णरूप से साध्य का अभाव होने पर सकलता से हेतु के अभाव का प्रमाणों से निश्चय करना