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________________ . तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 202 साध्याभावे त्वभावस्य निश्चयो यः प्रमाणतः। व्यतिरेकः स साकल्यादविनाभाव एव नः // 191 // सत्यप्यबाधितविषयतायां सत्यप्यसत्प्रतिपक्षतायां च हेतौ न रूपांतरत्वमन्यथानुपपन्नत्वादित्याह;अबाधितार्थता च स्यान्नान्या तस्मादसंशया। न वा सत्प्रतिपक्षत्वं तदभावेनभीक्षणात् // 19 // ___ न हि क्वचिद्धतौ साध्याभावासंभूष्णुतापायेप्यबाधितविषयत्वमसत्प्रतिपक्षत्वं समीक्ष्यते येन ततो रूपांतरत्वं / ननु च यथा स्पर्शाभावे क्वचिदसंभववतोपि रूपस्य स्पर्शाद्रूपांतरत्वं तथाविनाभावाभावे क्वचिदसंभवतोपि ततो रूपांतरत्वमबाधितविषयत्वस्यासत्प्रतिपक्षत्वस्य च न विरुध्यतेन्यथा स्पर्शाद्रूपस्यापि रूपांतरत्वविरोधादिति चेत् नैतत्सारं, अन्यथानुपपन्नत्वादबाधितविषयत्वादेरभेदात् / व्यतिरेक माना जाएगा, तब तो हमारा अविनाभाव ही आपने व्यतिरेक मान लिया है। अर्थात् अल्पज्ञ नहीं होते हुए भी तीर्थंकर वक्ता है, पुरुष है, इसमें अन्यथानुपपत्ति न होने से ही वक्तृत्व आदि असद्धेतु हैं / / 190191 // जिस हेतु के साध्य का कोई बाधक प्रमाण नहीं है, वह अबाधित विषय है। इस प्रकार की अबाधित विषयता के होने पर भी और जिस हेतु के साध्य के अभाव को साधने के लिए दूसरा प्रतिपक्षी हेतु नहीं है, ऐसी असत्प्रतिपक्षता होते हुए भी हेतु में अन्यथानुपपत्ति से अतिरिक्त कोई दूसरा रूप कार्यकारी नहीं है। इस बात का स्वयं वार्तिककार स्पष्ट निरूपण करते हैं। ____ उस अन्यथानुपपत्ति से भिन्न कोई अबाधितविषयता नहीं हो सकती है। निसंशय अविनाभाव है। अबाधित विषयरूप है और उस अन्यथानुपपत्ति के अतिरिक्त असत्प्रतिपक्षत्व भी कोई पृथक् रूप नहीं है, क्योंकि उस अन्यानुपपत्ति का अभाव होने पर अबाधित विषयत्व अथवा असत्प्रतिपक्षत्व दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है॥१९२॥ किसी भी हेतु में साध्य का अभाव होने पर हेतु का असम्भवनारूप स्वभाव के अभाव होने पर भी अबाधित विषयत्व और असत्प्रतिपक्षत्व नहीं देखा जाता है, जिससे कि उस अविनाभाव से उन चौथे, पाँचवें अबाधितपनत्व और सत्प्रतिपक्षत्व हेतु का पृथक् रूप माना जाए अर्थात् वे दोनों हेतु के पृथक् रूप नहीं हैं। ___ शंका : जैसे स्पर्श के अभाव में नहीं होने वाले भी रूप का स्पर्श पृथक्त्व है, अर्थात् स्पर्श से रूप-गुण पृथक् है, उसी प्रकार अविनाभाव के अभाव होने पर कहीं भी नहीं सम्भव होने वाला अबाधित विषयत्व और असत्प्रतिपक्षत्व रूपान्तर है पृथकत्व है विरुद्ध नहीं है। अन्यथा (यदि असत्प्रतिपक्षत्व और अबाधितविषयत्व दोनों में अभेद स्वीकार किया जायेगा तो) स्पर्श से रूप गुण का भी भिन्नगुण स्वरूप होने का विरोध हो जाएगा। समाधान : इस कथन में कोई सार नहीं है, क्योंकि अन्यथानुपपत्ति से अबाधित विषयत्व आदि रूपों का अभेद है। अर्थात् परस्पर में एक दूसरे का अभाव होने पर नहीं रहने वाले कोई कोई पदार्थ अभिन्न
SR No.004286
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages438
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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