________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 178 गमको हेतुः स्यादिति व्यापकानुपलंभो बाधकस्तत्र लोकानुरोधस्य प्रतीयते कृत्तिकोदयादेर्गमकत्वं हेतुत्वनिबंधनं तदेवान्यथानुपपन्नत्वं साधयति तदपि संबधं सोपि तादात्म्यतज्जन्मनोरन्यतरं / तत्र तदुत्पत्तिर्वर्तमानभविष्यतो: कृत्तिकोदयशकटोदययोः परस्परमन्वयव्यतिरेकानुविधानासंभवान्न युज्यत एव तादात्म्यं तु व्योम्न: शकटोदयवत्त्वे साध्ये कृत्तिकोदयवत्त्वं शक्यं कल्पयितुं साधनधर्ममात्रानुबंधिनः साध्यधर्मस्य तदात्मत्वोपपत्तेः। यत एव बाह्यालोकतमोरूपभूतसंघातस्य व्योमव्यवहारार्हस्य कृत्तिकोदयवत्त्वं तत एव भविष्यच्छकटोदयवत्त्वं हेत्वंतरानपेक्षत्वादेः सिद्धं न तन्मानानुबंधित्वमनित्यत्वं नित्यत्वस्य कृतकत्वमात्रानुबंधित्ववदिति केचित्तान् प्रत्याह;नान्यथानुपपन्नत्वं ताभ्यां व्याप्तं निक्षेपणात्। संयोग्यादिषु लिंगेषु तस्य तत्त्वपरीक्षकैः // 135 // कृत्तिकोदय आदि को साध्य का गमकपना हेतु का कारण है और वही अन्यथानुपपन्नत्वकोसिद्ध कर रहा है तथा वह अन्यथानुपपत्ति भी सम्बन्ध को तथा वह सम्बन्ध भी तादात्म्य और तंदुत्पत्ति दोनों में से किसी भी एक को सिद्ध कर रहा है। उन दो सम्बन्धों में तदुत्पत्ति नामका सम्बन्ध तो वर्तमान काल के कृत्तिकोदय हेतु का भविष्य में होने वाले शकटोदय साध्य के साथ परस्पर में अन्वय और व्यतिरेक का अनुविधान करने की असम्भवता होने से युक्त नहीं है (अर्थात् शकटोदय और कृत्तिकोदय में अधिक काल व्यवधान होने से तदुत्पत्ति सम्बन्ध तो बन नहीं सकता है) तादात्म्य सम्बन्ध कल्पित किया जा सकता है कि आकाश को पक्ष माना जाय। उसमें शकटोदयसहितपने को साध्य किया जाये और कृत्तिका के उदय से सहितपना हेतु माना जाए, तब तो केवल हेतु के धर्म का ही अनुरोध करने वाले साध्यरूप धर्म का तादात्म्य रूप से कल्पना करना बन जाता है (यानी वर्तमान में कृत्तिकोदयसहितपना और भविष्य के शकटोदय से सहितपना इन दोनों आकाश के धर्मों में तदात्मकता है)। हम बौद्धों के यहाँ आकाश कोई अमूर्त, व्यापक पदार्थ नहीं माना गया है, किन्तु दिन में बहिरंग आलोकरूप भूत परिणाम के समुदाय को आकाश कहते हैं। और रात में भूतों के अंधकाररूप परिणाम का इकट्ठा हो जाना ही आकाशपने से व्यवहार करने योग्य है। उस आकाश में जैसे वर्तमान से कृत्तिकोदय सहितपना विद्यमान है, उसी प्रकार भविष्य में होने वाले शकटोदय से सहितपना भी सिद्ध है अतः हेतु निरपेक्ष या स्वभाव से ही वैसी परिणति सिद्ध है। अत: साध्य और हेतु के एक ही हो जाने मात्र से अनुबंधी होनापन सिद्ध नहीं होता है। (जैसे कि घट का घट ही से तादात्मक होनापन कोई कार्यकारी नहीं है) अथवा नित्य का अनित्यपन का केवल कृतकपन के साथ अनुबन्धी होना जैसे प्रयोजक नहीं है। इस प्रकार कोई (बौद्ध) कह रहे हैं। समाधान : शंका समाधान करते हुए आचार्य कहते हैं- तदुत्पत्ति और तादात्म्य सम्बन्ध के साथ अन्यथानुपपन्न व्याप्त नहीं है, क्योंकि तत्त्वों की यथार्थ परीक्षा करने वाले विद्वानों के द्वारा संयोगी, समवायी आदि हेतुओं में भी उस अन्यथानुपपत्ति का प्रक्षेप किया गया है किन्तु वहाँ तादात्म्य या तदुत्पत्ति नहीं है॥१३५॥