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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 161 तेषामविद्याबलादिति चेत् संबंधितायामपि तत एव परेषां बाधकप्रत्ययो न प्रमाणबलादिति निर्विवादमेतत् यतः सैव तर्कात् संबंध प्रतीत्य वर्तमानोर्थानां संबंधितामाबाधमनुभवति॥ तत्तर्कस्याविसंवादोनुमा संवादनादपि। विसंवादे हि तर्कस्य जातु तन्नोपपद्यते // 10 // ___ न हि तर्कस्यानुमाननिबंधने संबंधे संवादाभावेनुमानस्य संवाद: संभविनिश्चित: संवादस्तर्कस्य नास्ति विप्रकृष्टार्थविषयत्वादितिचेत्तर्कसंवादसंदेहे निःशंकानुमितिः क्व ते। तदभावे न चाध्यक्षं ततो नेष्टव्यवस्थितिः॥९१॥ तस्मात्प्रमाणमिच्छद्भिरनुमेयं स्वसंबलात्। चिंता चेति विवादेन पर्याप्तं बहुनात्र नः // 12 // बाधकज्ञान उत्पन्न हो जाएगा। प्रमाण की सामर्थ्य से संबंधीपन में कोई बाधक प्रत्यय उपस्थित नहीं होता है। इस प्रकार यह तर्क ज्ञान का विषय हो रहा संबंध विवादरहित सिद्ध हो जाता है। कारण कि वही वादी तर्क ज्ञान से संबंध का निर्णय करके प्रवृत्ति करता हुआ पदार्थों के संबंधीपन का बाधारहित अनुभव कर रहा है (युक्ति और अनुभव से जो बात सिद्ध हो जाती है, उससे विवाद नहीं होता है)। उत्तरवर्ती अनुमान का संवाद हो जाने से भी उस तर्कज्ञान का अविसम्वादीपना सिद्ध होता है, अन्यथा नहीं क्योंकि तर्कज्ञान का विसंवाद होने पर कभी भी अनुमान का संवादीपना नहीं हो सकता (कारण के अनुरूप कार्य होता है)॥९०॥ __अनुमान प्रमाण की उत्पत्ति में कारण तर्क के द्वारा जाने गये संबंध में यदि सम्वाद का अभाव होगा तो अनुमान ज्ञान के भी सम्वाद होने का निश्चय नहीं हो सकता। - भावार्थ : उपलंभ और अनुपलंभ के निमित्त से होने वाली व्याप्ति के ज्ञान को तर्क कहते हैं। साध्य और साधन में अविनाभाव सम्बन्ध को व्याप्ति कहते हैं। अविनाभाव सम्बन्ध का अर्थ है साध्य के बिना साधन का नहीं होना। व्याप्ति का ज्ञान साध्य और साधन के उपलंभ और अनुपलंभ से होता है अत: उस साध्य और साधन के सम्बन्ध को बताने वाले व्याप्ति ज्ञान को स्वीकार करना होगा, अन्यथा अनुमान ज्ञान उत्पन्न नहीं हो सकता। . ... सूक्ष्म, व्यवहित और विप्रकृष्ट पदार्थों को विषय करने वाला होने से तर्कज्ञान के संवादकपना घटित - तर्क के सम्वाद में संदेह करने पर निशंक अनुमान कहाँ होगा? अर्थात् कहीं भी प्रमाणभूत अनुमान नहीं हो सकेगा और उस अनुमान प्रमाण का अभाव हो जाने पर प्रत्यक्ष प्रमाण की भी सिद्धि नहीं हो सकेगी अर्थात्-प्रत्यक्ष ज्ञानों में भी प्रमाणपना अविसम्वाद आदि हेतुओं से अनुमान द्वारा ही सिद्ध किया जाता है। अनुमान और प्रत्यक्ष के बिना बौद्धों के यहाँ किसी भी इष्ट पदार्थ की व्यवस्था नहीं हो सकती अत: अनुमान से जानने योग्य सम्पूर्ण प्रत्यक्षों का अपने-अपने संवाद के बल से प्रमाणपना चाहने वाले बौद्धों के द्वारा चिंतारूप तर्कज्ञान को भी प्रमाण मानना चाहिए। इस प्रकरण में हमको बहुत विवाद करने से परिपूर्णता हो चुकी है व्यर्थ के विवाद से क्या प्रयोजन है?॥९१-९२॥
SR No.004286
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages438
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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