SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 130 बुद्धिमतेः प्रकारः स्यादर्थग्रहणशक्तिका। मेधा स्मृतेः तथा शब्दस्मृतिशक्तिर्मनस्विनाम् // 5 // ऊहापोहात्मिका प्रज्ञा चिंतायाः प्रतिभोपमा। सादृश्योपाधिके भावे सादृश्ये तद्विशेषणे // 6 // प्रवर्तमाना केषांचिद् दृष्टा सादृश्यसंविदः। संज्ञायाः संभवाद्यस्तु लैंगिकस्य तथागतेः॥७॥ - मतिसामान्यात्मिकापि बुद्धिरिंद्रियानिंद्रियनिमित्ता सन्निकृष्टार्थग्रहणशक्तिकावग्रहादिमतिविशेषस्य प्रकारः। यथोक्तशब्दस्मरणशक्तिका तु मेधा स्मृतेः। सा हि केषांचिदेव मनस्विनां जायमाना विशिष्टा च स्मरणसामान्यात्। ऊहापोहात्मिका प्रज्ञा चिंतायाः प्रकारः प्रतिभोपमा च सादृश्योपाधिके वस्तुनि केषांचिद्वस्तूपाधिके वा सादृश्ये प्रवर्तमाना संज्ञायाः सादृश्यप्रत्यभिज्ञानरूपायाः प्रकारः, संभवार्थापत्त्यभावोपमास्तु लैंगिकस्य प्रकारस्तथा प्रतीतेः॥ प्रत्येकमितिशब्दस्य ततः संगतिरिष्यते। समाप्तौ चेति शब्दोयं सूत्रेस्मिन्न विरुध्यते // 8 // मतिरिति स्मृतिरिति संज्ञेति चिंतेत्यभिनिबोध इति प्रकारो न तदर्थांतरमेव मतिज्ञानमेकमिति ज्ञेयं / _अर्थ ग्रहण करने की शक्ति रूप बुद्धि मति का प्रकार है तथा यथोक्त शब्दस्मरण शक्तिस्वरूप मेधा स्मृति का प्रकार है। वह मनस्वी के विशिष्ट होती है। ऊहापोहात्मिका प्रज्ञा चिंताज्ञान का प्रकार है। प्रतिभाज्ञान भी तर्कज्ञान का प्रकार है। सादृश्य विशेषण से युक्त पदार्थ में अथवा उस पदार्थ के विशेषण हो रहे सादृश्य में किन्हीं जीवों के प्रवर्त्त रहा उपमानज्ञान देखा जाता है। सो यह सादृश्य को जानने वाले संज्ञाज्ञान का प्रकार है तथा सम्भव, अर्थापत्ति, अभाव आदिक लिङ्गजन्य अनुमानज्ञान के भेदप्रभेद हैं। तीनों की इस प्रकार समीचीन प्रतीति होती है॥५-६-७॥ इन्द्रिय और मन के निमित्त से उत्पन्न सामान्य मतिज्ञान बुद्धि है तथा सन्निकृष्ट को प्राप्त अर्थों के ग्रहण करने की शक्ति से विशिष्ट बुद्धि अवग्रह, ईहा आदि विशेष मतिज्ञानों का प्रकार है। यथोक्त शब्दों का और उनके वाच्य अर्थों का स्मरण रखने की शक्ति से युक्त मेधा स्मरणज्ञान का प्रकार है। वह (मेधा) किन्हीं-किन्हीं महामना जीवों के उत्पन्न होती है तथा अन्य सामान्य स्मरणों से विशिष्ट होती है। भूत, भविष्यत् , देशांतरवर्ती, स्वभावविप्रकृष्ट आदि पदार्थों का समीचीन रूप से तर्क, वितर्क सकंल्प करना स्वरूप प्रज्ञा व्याप्तिज्ञानरूप चिंता का प्रकार है और प्रसाद गुण से युक्त नवीन अर्थों के ज्ञान को उघाड़ने वाली प्रतिभा भी चिंता का प्रकार है। तथा सादृश्य विशेषणवाली वस्तु में किन्हीं-किन्हीं जीवों के प्रवर्त्तमान उपमान सादृश्य का प्रत्यभिज्ञान करने वाली संज्ञा का प्रकार है। सम्भवज्ञान, अर्थापत्ति, अभावप्रमाण और कोई-कोई उपमान प्रमाण तो लिङ्गजन्य अनुमान के भेद-प्रभेद हैं क्योंकि इस प्रकार प्रतीति होती है। / इति शब्द की मति, स्मृति आदि प्रत्येक में संगति कर लेना इष्ट कहा गया है। तथा समाप्ति अर्थ में प्रवत रहा यह इति शब्द भी इस सूत्र में कोई विरोध को प्राप्त नहीं होता है॥८॥ मति इस प्रकार का ज्ञान, स्मृति इस प्रकार का ज्ञान, संज्ञा इस प्रकार का ज्ञान, चिंताज्ञान और अनुमान के भेद-प्रभेद रूप ज्ञान मतिज्ञान से भिन्न नहीं हैं, एक मतिज्ञानरूप ही है, यह समझ लेना चाहिए।
SR No.004286
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages438
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy