________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 85 क्वचिदुभयप्रत्ययासत्त्वेपि वा न वस्तुनः सामान्यविशेषात्मकत्वविरोधः, प्रतिपुरुषं क्षयोपशमविशेषापेक्षया प्रत्ययस्याविर्भावात्। यथा वस्तुस्वभावं प्रत्ययोत्पत्तौ कस्यचिदनाद्यंतवस्तुप्रत्ययप्रसंगात् परस्य स्वर्गप्रापणशक्त्यादिनिर्णयानुषंगात्। ततो विशेषप्रत्ययाद्विशेषमुररीकुर्वता समानप्रत्ययात्सामान्यमुररीकर्तव्यमिति प्रतीतिप्रसिद्धा जातिनिमित्तांतरं तथा द्रव्यं वक्ष्यमाणं गुणाः क्रिया च प्रतीतिसिद्धेति न तन्निमित्तांतरत्वमसिद्धं वक्तृअभिप्रायात् येन कल्पनारोपितानामेव जात्यादीनां शब्दैरभिधानात्कल्पनैव शब्दानां विषय: स्यात् , पंचतयी वा शब्दानां प्रवृत्तिरबाधिता न भवेत्॥ जाति: सर्वस्य शब्दस्य पदार्थो नित्य इत्यसन् / व्यक्तिसंप्रत्ययाभावप्रसंगाद्ध्वनितः सदा // 15 // ___ कश्चिदाह। जातिरेव सर्वस्य शब्दस्यार्थः सर्वदानुवृत्तिप्रत्ययपरिच्छे ये वस्तुस्वभावे शाब्दव्यवहारदर्शनात् / यथैव हि गोरिति शब्दोनुवृत्तिप्रत्ययविषये गोत्वे प्रवर्तते इति जातिस्तथा निर्विकल्पक प्रत्यक्षद्वारा ही स्वर्गप्रापणशक्ति तथा हिंसा करने वाले चित्त की नरक प्रापण शक्ति आदि का भी निर्णय उसी समय हो जाने का प्रसंग भी आयेगा। ____ अत: विशेष को जानने वाले ज्ञान की सामर्थ्य से विशेष पदार्थ को स्वीकार करने वाले बौद्धों को समीचीन समान ज्ञान से निीत किये गये सामान्य (सादृश्य) को भी स्वीकार कर लेना चाहिए। इस प्रकार प्रतीतियों से प्रसिद्ध जाति (सदृश परिणाम) नाम निक्षेप का निमित्तान्तर हो जाती है। अत: जैन वक्ता के अभिप्राय को निमित्त पाकर और सदृश परिणाम रूप जाति को निमित्तान्तर मानकर गौ, शब्द प्रवृत्त होते हैं। जैसे भविष्य में कहे जाने योग्य सत् रूप द्रव्य और सहभावी परिणामरूप गुण तथा परिस्पन्दरूप क्रियायें भी प्रामाणिक प्रतीतियों से प्रसिद्ध हैं। अत: निमित्तरूप वक्ता के अभिप्राय से निराले द्रव्य गुण और क्रियाओं को द्रव्यशब्द, गुण शब्द और क्रिया शब्दों का निमित्तान्तरपना असिद्ध नहीं है जिससे कि शब्द को प्रमाण - न मानने वाले बौद्धों के मतानुसार कल्पना में आरोपित किये गये ही जाति, द्रव्य, गुण और क्रियाओं का शब्दों के द्वारा कथन किये जाने से कल्पना ही शब्दों का विषय होती है और शब्दों की पाँच प्रकार से प्रवृत्ति बाधा रहित नहीं होती है अर्थात् जाति, गुण, क्रिया, संयोगी समवायी द्रव्य, यदृच्छा ये सब वास्तविक पदार्थ हैं उनको कहने वाले पाँच प्रकार के शब्दों की निर्बाध प्रवृत्ति हो रही है। (यहाँ तक सदृश परिणाम रूप जाति को सिद्ध करते हुए शब्दों की प्रवृत्ति का मुख्य कारण माने गये वास्तविक जाति द्रव्य आदिक का निरूपण किया है।) * सर्व ही शब्दों का अर्थ जातिस्वरूप नित्य पदार्थ है, इस प्रकार मीमांसकों का कहना सत्य नहीं है, क्योंकि ऐसा कहने से शब्दों से सदा ही विशेष व्यक्तियों के ज्ञान हो जाने के अभाव का प्रसंग आयेगा अर्थात् गौ शब्द के द्वारा गोत्व जाति को जाना जायेगा तो गौ व्यक्ति का गौ शब्द से कभी ज्ञान न हो सका॥१५॥ ___ कोई प्रतिवादी कहता है कि द्रव्यशब्द, गुणशब्द आदि सर्व ही शब्दों का अर्थ जाति ही है। सर्व ही कालों में वैसा का वैसा ही अनुवृत्ति ज्ञान के द्वारा जाने गये जाति स्वरूप वस्तु स्वभाव में शब्दजन्य