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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 73 जातावेव तु यत्संज्ञाकर्म तन्नाम मन्यते। तस्यामपरजात्यादिनिमित्तानामभावतः॥ 4 // गुणे कर्मणि वा नाम संज्ञा कर्म तथेष्यते। गुणकर्मांतराभावाजातेरप्यनपेक्षणात् // 5 // गुणप्राधान्यतो वृत्तो द्रव्ये गुणनिमित्तकः / शुक्लः पाटल इत्यादिशब्दवत्संप्रतीयते॥६॥ कर्मप्राधान्यतस्तत्र कर्महेतुर्निबुध्यते। चरति प्लवते यद्वत् कश्चिदित्यतिनिश्चितम् // 7 // द्रव्यांतरमुखे तु स्यात्प्रवृत्तो द्रव्यहेतुकः। शब्दस्तद्दिवविधस्तज्जैनिराकुलमुदाहृतः॥ 8 // संयोगिद्रव्यशब्दः स्यात् कुंडलीत्यादिशब्दवत् / समवायिद्रव्यशब्दो विषाणीत्यादिरास्थितः॥९॥ कुंडलीत्यादयः शब्दा यदि संयोगहेतवः / विषाणीत्यादयः किं न समवायनिबंधनाः // 10 // जाति में जो संज्ञा कर्म किया जाता है वह जाति नाम निक्षेप है क्योंकि इसमें दूसरी जाति, गुण आदि निमित्तान्तर का अभाव है॥४॥ ___ गुण और क्रिया निमित्तक जो नाम होता है वह गुण निमित्तक और क्रिया निमित्तक नाम कहलाता है। इसमें गुणान्तर और क्रिया अन्तर का अभाव है तथा जाति की भी इसमें अपेक्षा नहीं है अर्थात् गुण शब्द में प्रवृत्ति का कारण गुण की अपेक्षा वक्ता का अभिप्राय है और क्रियावाची शब्दों में वक्ता का अभिप्राय क्रिया की अपेक्षा से है। अन्य गुण, क्रिया, जाति आदि की अपेक्षा नहीं है।॥५॥ गुण क्रिया जाति आदि अखण्ड पिण्ड रूप द्रव्य में गुण की प्रधानता से जो शब्द प्रवृत्त होता है वह गुणनिमित्तक नाम कहलाता है शुक्ल, लाल रंग आदि शब्द के समान अर्थात् श्वेत रक्त आदि गुण निमित्तक नाम हैं क्योंकि श्वेत, लाल रंग आदि का उच्चारण करने पर उसी गुण वाली वस्तु के द्वारा व्यवहार की प्रवृत्ति होती है अत: गुण शब्द समीचीन व्यवहार में प्रतीत होता है।६।। जो शब्द द्रव्य में क्रिया की प्रधानता से कहा जाता है वह शब्द क्रियानिमित्तक कहा जाता है। जैसे प्लवते, उछलता है, कूदता है इसलिए बन्दर को प्लवंग कहते हैं। जो चरति (भक्षण करता) है वह भक्षक कहलाता है। इस प्रकार पाठक आदि नाम क्रिया निमित्तक हैं क्योंकि ये शब्द क्रिया की मुख्यता से किये जाते हैं। इस प्रकार इन नाम शब्दों से व्यवहार में पदार्थों का अधिक निश्चय किया जाता है॥७॥ दूसरे द्रव्यों की प्रधानता से व्यवहार में प्रवृत्त हुआ शब्द (नाम) द्रव्यहेतुक कहलाता है। उस द्रव्य शक्ति को जानने वाले विद्वानों ने निराकुल रूप से द्रव्यहेतुक नाम दो प्रकार का कहा है।।८।। संयोगी द्रव्य और समवायी द्रव्य के भेद से द्रव्य हेतुक नाम भी दो प्रकार का है। जैसे कुण्डल के संयोग से मानव कुण्डली, दंड के संयोग से दण्डी आदि कहलाता है। ये नाम भिन्न-दूसरे द्रव्य के संयोग से कहे जाते हैं क्योंकि कुण्डली देवदत्त में भिन्न कुण्डल का संयोग है। विषाणी (सींग वाला) आदि कहना समवायी द्रव्य संयोगज नाम हैं क्योंकि विषाणी, सींग वाले से पथक नहीं है. जैसे ज्ञानी ज्ञान से भिन्न नहीं है। विषाणी. शाखी, ज्ञानी आदि शब्द समवायी द्रव्य संबंध से होने वाले नाम हैं। अवयव अवयवी, गुण गुणी, संबंध को समवाय संबंध कहते हैं जैसे कुण्डल आदि के संयोग से कुण्डली आदि शब्द संयोग हेतुक है उसी प्रकार विषाणी आदि शब्द समवाय निबन्धन क्यों नही होंगे, अवश्य होंगे॥९-१०॥
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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