SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक* 72 इति, किंचिदेकाजीवनाम यथा घट इति, किंचिदनेकाजीवनाम यथा प्रासाद इति / किंचिदेकजीवैकाजीवनाम यथा प्रतीहार इति, किंचिदेकजीवानेकाजीवनाम यथा काहार इति, किंचिदेकाजीवानेकजीवनाम यथा मंदुरेति, किंचिदनेकजीवाजीवनाम यथा नगरमिति प्रतिविषयमवांतरभेदाद्बहुधा भिद्यते संव्यवहाराय नाम लोके / तच्च निमित्तांतरमनपेक्ष्य संज्ञाकरणं वक्तुरिच्छातः प्रवर्तते॥ ___किं पुनर्नाम्नो निमित्तं किं वा निमित्तांतरं ? इत्याह;नाम्नो वक्तुरभिप्रायो निमित्तं कथितं समम् / तस्मादन्यत्तु जात्यादिनिमित्तांतरमिष्यते // 2 // जातिद्वारेण शब्दो हि यो द्रव्यादिषु वर्तते / जातिहेतुःस विज्ञेयो गौरश्व इति शब्दवत् // 3 // का अभिधान किये बिना लोक में नाम व्यवहार की प्रवृत्ति नहीं हो सकती अत: नाम का कथन करना आवश्यक है। नाम एक प्रकार का नहीं है अपितु विशेषों की अपेक्षा नामों में अनेकविध प्रतीति होती है अर्थात् नाम अनेक प्रकार के भी हैं। कहीं एक जीव नाम से प्रतीति होती है। जैसे किसी मानव का नाम रखा डित्थ, यह एक जीव नाम है। अनेक जीवनाम जैसे यूथ इसमें अनेक जीवों के समूह को यूथ कहा है इसलिए यह अनेक जीव नाम है कोई एक अजीव नाम से कहा जाता है जैसे घट, इस घट का वाच्यार्थ एक अजीव है। इसलिए यह एक अजीव नाम है। कोई अनेक अजीवों का वाचक एक नाम है, जैसे प्रासाद, महल, मकान; इसमें चूना आदि अनेक अजीव पदार्थ हैं। कोई नाम एक जीव और एक अजीव वाचक है, जैसे प्रतिहार (द्वारपाल) हाथ में दंड आदि एक अजीव और स्वयं मनुष्य जीव है। __ कोई नाम एक जीव और अनेक अजीवों का वाचक होता है, जैसे कहार (कावड़ से पानी ढोने वाला) इसमें मानव जीव एक है और कावड़, पानी, रस्सी आदि अजीव अनेक हैं। कोई शब्द एक अजीव पदार्थ और अनेक जीव पदार्थ का वाचक है, जैसे मन्दुर (घुड़शाला) विद्यालय आदि, जिसमें घोड़े, विद्यार्थी आदि अनेक जीव हैं और घर एक अजीव है। कोई नाम अनेक जीव, अनेक अजीव का वाचक होता है जैसे नगर / नगर में जीव और अजीव दोनों हैं। इस प्रकार प्रत्येक वाच्य अर्थ के मध्यवर्ती भेदप्रभेदों से बहुत प्रकार नाम संव्यवहार के लिए लोक में भेद रूप कहे जाते हैं। वह नाम निमित्तान्तरों की अपेक्षा बिना, मात्र वक्ता की इच्छा से प्रवृत्त होता है, उसको संज्ञाकरण कहते हैं वा नाम निक्षेप कहते हैं। प्रश्न : नाम का निमित्त और निमित्तान्तर क्या है? समाधान करते हुए आचार्य कहते हैं-वक्ता का अभिप्राय नाम का निमित्त कहा है और वक्ता के अभिप्राय से भिन्न जाति आदि निमित्तान्तर कहे जाते हैं॥२॥ __जो शब्द जाति के द्वारा द्रव्यादि में व्यवहृत होता है वह जाति हेतु नाम जानना चाहिए गौ, घोड़ा आदि शब्द के समान अर्थात् गौ, अश्व आदि नाम अपनी जाति में ही उपयुक्त होते हैं। इन गौ आदि शब्दों के कहने से गौ आदि जातियों से युक्त पदार्थों का ग्रहण होता है॥३॥
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy