________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 68 प्रमाणविधिसामर्थ्यादप्रमाणगतौ यदि। तत्रानध्यवसायादेरन्तर्भावो विरुध्यते // 57 // संशयस्य तदात्रैव नांतर्भावः किमिष्यते। प्रमाणभावरूपत्वाविशेषात्तस्य सर्वथा // 58 // प्रमाणवृत्तिहेतुत्वात् संशयश्चेत् पृथक्कृतः। तत एव विधीयेत जिज्ञासादिस्तथा न किम् // 59 // अभावस्याविनाभावसंबंधादेरसंग्रहात्। प्रमाणादिपदार्थानामुपदेशो न दोषजित् // 60 // द्रव्यादिषट्पदार्थानामुपदेशोपि तादृशः। सर्वार्थसंग्रहाभावादनाप्तोपज्ञमित्यतः॥ 61 // सूत्रेवधारणाभावाच्छेषार्थस्यानिराकृतौ। तत्त्वेनैकेन पर्याप्तमुपदिष्टेन धीमताम् // 62 // यदि कहो कि प्रमाण विधि के सामर्थ्य से अप्रमाण ज्ञानों की स्वयं अर्थापत्ति से ज्ञप्ति हो जाती है तो उस प्रमाण ज्ञान में अनध्यवसाय और विपर्यय रूप अज्ञान प्रमाणों का अन्तर्भाव होना विरुद्ध पड़ता है। अर्थात् सम्यग्ज्ञान में मिथ्याज्ञान का प्रवेश करना युक्तिसंगत नहीं है॥५७॥ . . अथवा यदि प्रमाण ज्ञान की विधि के सामर्थ्य से विपर्यय और अनध्यवसाय ज्ञान की स्वयं अर्थापत्ति ज्ञान से ज्ञप्ति हो जाती है तो संशय ज्ञान का भी इसी में अन्तर्भाव होना क्यों नहीं माना जाता है क्योंकि उस संशय ज्ञान के सर्वथा अप्रमाण के अभाव रूपत्व की कोई विशेषता नहीं है। अर्थात् जैसे विपर्यय और अनध्यवसाय अप्रमाण रूप हैं, वैसे संशय भी अप्रमाण रूप है, फिर क्या कारण है कि संशय ज्ञान को पृथक्तत्त्व माना है और अन्य विपर्यय, अनध्यवसाय आदि ज्ञानों को अप्रमाण नहीं माना है।।५८॥ यदि कहो कि किसी पदार्थ का तरतम रूप से प्रत्यक्षकरना, विशेष विशेषांशों का निर्णय करना अनुमान ज्ञान वा ईहा ज्ञान में प्रवृत्ति होना आदि ज्ञानों के पूर्व में संशय ज्ञान की प्रवृत्ति होती है इसलिए सर्व प्रमाणों की प्रवृत्ति का मुख्य कारण होने से संशय ज्ञान को पृथक् ग्रहण किया है तो संशय के समान जिज्ञासा आदि भी प्रमाण की प्रवृत्ति में कारण है अत: संशय के समान जिज्ञासा आदि को पृथक् ग्रहण क्यों नहीं किया ? // 59 // तथा सोलह पदार्थों में अभाव पदार्थ का और अविनाभाव संबंध (व्याप्ति) ज्ञान, स्मृति, तर्क आदि ज्ञानों का भी संग्रह नहीं होता इसलिए प्रमाणादि सोलह पदार्थों का उपदेश दोषों को जीतने वाला (निर्दोष) नहीं है॥६०॥ इसलिए उसी प्रकार द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय रूप भावात्मक छह पदार्थों का उपदेश भी सर्व अर्थों (तत्त्वों) का संग्रह करने वाला न होने से अनाप्त का कहा हुआ है। सत्य वक्ता आप्त का कहा हुआ नहीं है॥६१॥ सोलह वा छह पदार्थों का कथन करने वाले सूत्र में पदार्थ (16 ही हैं वा छह ही हैं अधिक नहीं ऐसी अवधारणा करने वाले स्वकारण) का अभाव होने से अशेष (शेष बचे) अविनाभाव जिज्ञासा अनध्यवसाय आदि सर्व पदार्थों का निराकरण नहीं होता है अर्थात् ग्रहण होता है। ऐसा कहने पर तो एक ही तत्त्व के उपदेश से बुद्धिमानों को पूर्णता प्राप्त हो जायेगी (अतः 16, छह आदि पदार्थों का कथन करने से क्या प्रयोजन है)॥६२॥