________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 62 एकस्यापि नानाकार्यनिमित्तत्वेन दर्शनात् स्वयमीश्वरस्य तथाभ्युपगमाच्च / यदि पुनरीशस्य नानार्थसिसृक्षाभिसंबंधान्नानाकार्यनिमित्तत्वमविरुद्धं तदा नभसोपि नानाशक्तिसंबंधात्तदविरुद्धमस्तु विशेषाभावात् / तथा चात्मादिक्कालाद्यशेषद्रव्यकल्पनमनर्थकं तत्कार्याणामाकाशेनैव निवर्तयितुं शक्यत्वात्। अथ परस्परविरुद्धबुद्ध्यादिकार्याणां युगपदेकद्रव्यनिवर्त्यत्वविरोधात्तन्निमित्तानि नानात्मादिद्रव्याणि कल्प्यते तर्हि नानाद्रव्यक्रियाणामन्योन्यविरुद्धानां सकृदेककालद्रव्यनिमित्तत्वानुपपत्तेस्तन्निमित्तानि नानाकालद्रव्याण्यनुमन्यध्वं / तथा च नासिद्धं नानाद्रव्यत्वमात्मकालयोरसर्वगतत्वसाधनं / नापि पृथिव्यादिदृष्टांत: साधनधर्मविकलः पृथिव्यप्तेजोवायूनां धारणक्लेदनपचनस्पंदनलक्षणपरस्परविरुद्धक्रियानिमित्तत्वेन सकृदुपलभ्यमानत्वात् / नापि साध्यधर्मविकलस्तेषां कथंचिन्नानाद्रव्यत्वसिद्धेरित्यनुमानविरुद्धं पक्षं आकाश को परत्व अपरत्व का निमित्त मानना विरुद्ध ही है, ऐसा भी कहना उचित नहीं है क्योंकि एक द्रव्य के भी अनेक कार्यों का निमित्तपना देखा जाता है। स्वयं आपने एक ईश्वर को अनेक कार्यों का निमित्त कारण स्वीकार भी किया है अतः आपका काल द्रव्य का मानना व्यर्थ है उसके साध्य कार्य आकाश के द्वारा सम्पादित हो जाते हैं। यदि पुनः ईश्वर के नाना पदार्थों की रचने की इच्छाओं का संबंध होने से ईश्वर के नाना अर्थों के कर्तृत्व का निमित्तपना अविरुद्ध है, ऐसा कहते हो तो आकाश के भी नाना शक्ति के संबंध से नाना कार्यों के निमित्तत्व विरुद्ध नहीं है क्योंकि इन दोनों में कोई विशेषता नहीं है। तथा आकाश को एक द्रव्य मान लेने पर आत्मा, दिशा, काल, वायु, मन, आकाश आदि सम्पूर्ण द्रव्यों की कल्पना करना व्यर्थ हो जायेगा क्योंकि परत्व, अपरत्व, कम्पन आदि सारे कार्य आकाश के द्वारा ही करना शक्य हो जायेगा। यदि आपके द्वारा परस्पर विरुद्ध बुद्धि, सुख, दुःख, आदि कार्यों का एक साथ एक द्रव्य (आकाश) के द्वारा सम्पादन होना विरुद्ध है। (एक द्रव्य द्वारा विरुद्ध अनेक कार्यों का सम्पादन नहीं हो सकता।) अतः उन भिन्न कार्यों के निमित्त कारण अनेक आत्मा, एक दिशा, एक काल, आदि अनेक द्रव्यों की कल्पना करनी पड़ती है, ऐसा कहा जाता है तो अनेक द्रव्यों से होने वाली परस्पर विरुद्ध अनेक क्रियाओं का एक काल में (एक समय में) एक ही काल को निमित्तपना नहीं बन सकता है अत: उन अनेक क्रियाओं के निमित्त कारण काल द्रव्य भी अनेक हैं, ऐसा स्वीकार करना पड़ेगा। ऐसा होने पर काल में नाना द्रव्यपना असिद्ध नहीं रहता है, सिद्ध हो जाता है। तथा आत्मा और काल द्रव्य होते हुए भी असर्वगत हैं, यह सिद्ध हो जाता काल को अव्यापक द्रव्य सिद्ध करने के लिए हेतु में दिया गया पृथ्वी आदि का दृष्टान्त भी साधन रूपी धर्म से विकल (रहित) नहीं है क्योंकि पृथ्वी, जल आदिक में अनेक द्रव्य क्रियाओं के प्रति निमित्तकारणता है। जैसे पृथ्वी अनेक द्रव्यों को धारण करने रूप क्रियाओं से, जल गीला करना रूप क्रियाओं से, अग्नि पचन क्रियाओं से और वायु वृक्षों की कम्पन क्रियाओं से युक्त है अत: परस्पर विरुद्ध लक्षण क्रियाओं का निमित्तत्व एक साथ उपलब्ध होता है अर्थात् पृथ्वी आदि में अनेक द्रव्य क्रियाओं के प्रति निमित्तकारणता