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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक *53 स्थितस्य तत्रैव प्रवृत्तस्तेन तस्याविरोधात् ततः पुरुषाद्वैतनिर्णय इति चेत्, नानात्वागमस्यापि तेनाविरोधान्नानाजीवनिर्णयोऽस्तु। तथाहि;आहुर्विधातृप्रत्यक्षं न निषेद्धविपश्चितः। न नानात्वागमस्तेन प्रत्यक्षेण विरुध्यते // 36 // तेनानिषेधतेऽन्यस्याभावाभावात् कथंचन। संशीतिगोचरत्वाद्वान्यस्याभावाविनिश्चयात् // 37 // भवतु नाम विधातृप्रत्यक्षमनिषेद्ध च तथापि तेन नानात्वविधायिनो नागमस्य विरोधः संभवत्येकत्वविधायिन इव विधायकत्वाविशेषात्। कथमेकत्वमनिषेधत्प्रत्यक्षं नानात्वमात्मनो विदधातीति चेत्, नानात्वमनिषेधदेकत्वं कथं विदधीत? तस्यैकत्वविधानमेव नानात्वप्रतिषेधकत्वमिति चेत् , नानात्वविधानमेवैकत्वनिषेधनमस्तु। किं पुनः प्रत्यक्षमात्मनो नानात्वस्य विधायकमिति चेत् तदेकत्वस्य किं? ___अद्वैतवादी कहते हैं कि - पुरुषाद्वत की विधि को सृजन करने वाले वेदवाक्यरूप आगम से पुरुषाद्वैत का प्रकाशन होता है। विधि (अस्तित्व) को विधायक रूप से स्थित प्रत्यक्ष ज्ञान की भी पुरुषाद्वैत में प्रवृत्ति होने से तथा पुरुषाद्वैत है' इस प्रकार के आगम का अविरोध होने से पुरुषाद्वैत का निर्णय होता है। आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार तो नानात्व को सिद्ध करने वाले आगम का अस्तित्व और प्रत्यक्ष ज्ञान का अविरोध होने से नाना आत्माओं का निर्णय भी होता है। सोही कहा है - यदि अद्वैतवादी पंडितों के कथनानुसार प्रत्यक्ष पुरुषाद्वैत के अस्तित्व को जानता है नास्तित्व को नहीं जानता है, ऐसा मान लेने पर भी नानात्व अनेक आत्माओं के अस्तित्व का प्रतिपादन करने वाला आगम उस प्रत्यक्ष ज्ञान के द्वारा विरुद्ध बाधित नहीं होता॥३६।। अत: निषेध का विषय नहीं करने वाले प्रत्यक्ष ज्ञान के द्वारा किसी भी प्रकार से अन्य पदार्थों का अभाव सिद्ध नहीं हो सकता तथा अन्य पदार्थों के अभाव का निर्णय न होने से अन्य पदार्थ संशय का विषय होगा। अर्थात् अन्य पदार्थों के अस्तित्व में संशय हो सकता है, अभाव सिद्ध नहीं हो सकता // 37 // . तथा अद्वैत वा जैमिनीमतानुसार अस्तित्व का विधायक और नास्तित्व को नहीं जानने वाला प्रत्यक्ष ज्ञान होवे तो होवे तथापि उस एकत्व के विधायक, प्रत्यक्ष के द्वारा नानात्व विधायक आगम का विरोध संभव नहीं है क्योंकि जैसे प्रत्यक्ष एकत्व के अस्तित्व का विधान (कथन) करने वाला है वैसे अनेकत्व का भी विधान करने वाला है। दोनों प्रत्यक्षों में विधायकपने की अपेक्षा कोई विशेषता नहीं है। प्रश्न : एकत्व का निषेध नहीं करने वाला प्रत्यक्ष आत्मा के नानात्व का धारण करने वाला (विधान करने वाला) कैसे हो सकता है ? उत्तर : यदि नानात्व ग्रहण नहीं कर सकता तो नानात्व का निषेध नहीं करने वाला ज्ञान आत्मा के एकत्व का विधान कैसे कर सकता है ? यदि कहो कि नानात्व का प्रतिबंधकत्व ही ज्ञान के एकत्व का विधान है, तब तो हम भी कह सकते हैं कि नानात्व का विधान करना ही एकत्व का निषेध है। प्रश्न : आत्मा के नानात्व का विधान करने वाला कौनसा प्रत्यक्ष है ? उत्तर : आचार्य कहते हैंआपके एकत्व का विधान करने वाला कौन सा प्रत्यक्ष है क्योंकि हमारे इन्द्रियजन्य प्रत्यक्ष, मानस प्रत्यक्ष और स्वसंवेदन प्रत्यक्ष तो एक ही आत्मा है, इस प्रकार का विधान करने में समर्थ नहीं है क्योंकि इन तीनों प्रत्यक्षों की नाना आत्मभेदों में प्रवत्ति होती है।
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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