________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 48 तस्य भावस्तत्त्वमिति भावसामान्यस्यैकत्वात्समानाधिकरणतया निर्दिश्यमानानां जीवादीनां बहुत्ववचनं विरुध्यत इति चेत् न, भावतद्वतोः कथंचिदभेदादेकानेकयोरपि सामानाधिकरण्यदर्शनात् सदसती तत्त्वमिति जातेरेकत्ववत् सर्वदा व्यक्तीनां बहुत्वख्यापनार्थत्वाच्च तयोरेकवचनबहुवचनाविरोधः प्रत्येतव्यः॥ जीवत्वं तत्त्वमित्यादि प्रत्येकमुपवर्ण्यते। ततस्तेनार्यमाणोऽयं तत्त्वार्थः सकलो मतः॥ 26 // ____तस्य जीवस्य भावो जीवत्वं, अजीवस्य भावो अजीवत्वं, आस्रवस्य भाव आस्रवत्वं, बंधस्य भावो बंधत्वं, संवरस्य भावः संवरत्वं, निर्जराया भावो निर्जरात्वं, मोक्षस्य भावो मोक्षत्वं / तत्त्वमिति प्रत्येक-मुपवर्ण्यते, सामान्यचोदनानां विशेषेष्ववस्थानप्रसिद्धेः। तथा च जीवत्वादिना तत्त्वेनार्यत इति तत्त्वार्थो जीवादिः सकलो मतः श्रद्धानविषयः॥ जीव एवात्र तत्त्वार्थ इति केचित्प्रचक्षते। तदयुक्तमजीवस्याभावे तत्सिद्ध्ययोगतः // 27 // शंका : उस पदार्थ का भाव तत्त्व है ऐसा कहने पर भाव सामान्य का एकार्थ प्रतिपादकपना होने से समानाधिकरणता से कहे गये जीवादिक के बहुवचनत्व विरुद्ध होता है। समाधान : ऐसा कहना . युक्तिसंगत नहीं है क्योंकि भाव और भाववान में कथंचित् अभेद होने से एक और अनेक में समानाधिकरण देखा जाता है। जैसे जाति के एकत्व के समान सत् और असत् (सदसती)। भाव और अभाव दो तत्त्व हैं ऐसा दो वचनान्त कहा जाता है। अर्थात् विधेय तत्त्व में एक वचन और उद्देश्य में “सदसती" द्विवचनान्त कहा जाता है। सदसतीतत्त्वं तथा जैसे घोड़ा आदि जाति को ख्यापन करने के लिए बहुवचन भी कहा जाता है। इसी प्रकार व्यक्तियों के बहुत्व को प्रकट करने के लिए भाव और भाववान में एकवचन और बहुवचन होने में कोई विरोध नहीं है, ऐसा समझना चाहिए। जो पदार्थ जिस स्वरूप से अवस्थित है उसका उसी रूप होना ही तत्त्व कहलाता है। जीव का जैसा द्रव्य पर्यायमय स्वरूप है वह जीवत्व कहलाता है। जैसे जीव का भाव जीवत्व है, अजीव आस्रव आदि का भी भाव अजीवत्व है अत: जीवत्व के समान तत्त्व शब्द का अजीव आदि प्रत्येक के साथ कथन करना चाहिए जैसे जीवत्व, अजीवत्व इत्यादि। इसलिए उस तत्त्व के द्वारा अर्यमाण (निश्चित किये हुए) होने से सातों ही तत्त्वार्थ कहलाते हैं // 26 // उस जीव का भाव जीवत्व, अजीव का भाव अजीवत्व, आस्रव का भाव आस्रवत्व, बंध का भाव बंधत्व, संवर का भाव संवरत्व, निर्जरा का भाव निर्जरत्व और मोक्ष का भाव मोक्षत्व है। इस प्रकार तत्त्व शब्द का प्रयोग सबके साथ किया गया है। क्योंकि सामान्य के लिए प्रयुक्त वाक्यों की विशेषों में भी अवस्थान की प्रसिद्धि है अर्थात् सामान्य का कथन विशेष में भी रहता है। इसलिए जीवादितत्त्वों के द्वारा जिनका निर्णय किया जाता है, निश्चय किया जाता है, वे सर्व तत्त्वार्थ हैं अर्थात् जो तत्त्व के द्वारा गम्य है वह तत्त्वार्थ है। वह सकल तत्त्वार्थ श्रद्धान का विषय माना है अर्थात् सातों ही पदार्थ सम्यग्दृष्टि जीव के श्रद्धान का विषय हैं। इस विषय में कोई वादी अकेले जीव को ही तत्त्वार्थ मानते हैं परन्तु यह कथन अयुक्त है क्योंकि अजीव के अभाव में जीव की सिद्धि का अयोग ह अर्थात् अजीव के अस्तित्व के अभाव में उस जीव की