________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 34 आगमस्यैवंपरत्वाभावात्। सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रमात्मीभावे सति संख्यातादिना कालेन सेत्स्यंतीत्येवमर्थतया तस्य निश्चितत्वात्, दर्शनमोहोपशमादिजन्यत्वाच्च न दर्शनं स्वकालेनैव जन्यते यतः स्वाभाविकं स्यात् // अंतर्दर्शनमोहस्य भव्यस्योपशमे सति / तत्क्षयोपशमे वापि क्षये वा दर्शनोद्भवः॥५॥ बहिः कारणसाकल्येप्यस्योत्पत्तेरपीक्षणात् / कदाचिदन्यथा तस्यानुपपत्तेरिति स्फुटम् // 6 // ततो न स्वाभाविकोस्ति विपरीतग्रहक्षयः स्याद्वादिनामिवान्येषामपि तथानभ्युपगमात् // पापापायाद्भवत्येष विपरीतग्रहक्षयः। पुंसो धर्मविशेषाद्वेत्यन्ये संप्रतिपेदिरे॥७॥ ननु च यदि दर्शनमोहस्योपशमादिस्तत्त्वश्रद्धानस्य कारणं तदा स सर्वस्य सर्वदा तज्जनयेत् आत्मनि अर्थ करते हैं उस आगम की इस प्रकार अर्थ करने में तत्परता नहीं है। अर्थात् आगम का अर्थ ऐसा नहीं है। क्योंकि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र इन तीनों का आत्मा के साथ तदात्मक एकरस हो जाने पर कोई संख्यात, असंख्यात आदि काल से सिद्ध होंगे। आगम का यह अर्थ निश्चित है अर्थात् मोक्षप्राप्ति के कारण रत्नत्रय की प्राप्ति होने पर ही मोक्ष प्राप्त होता है केवल काल से नहीं / तथा सम्यग्दर्शन दर्शन मोह के उपशम, क्षय और क्षयोपशम से उत्पन्न होता है। सम्यग्दर्शन स्वकाल से उत्पन्न होता है इसलिए स्वाभाविक है, ऐसा नहीं कह सकते। दर्शन मोह के क्षय, उपशम और क्षयोपशम रूप अन्तरंग कारणों के मिलने से सम्यग्दर्शन उत्पन्न होता है तथा धर्मोपदेश रूप बहिरंग कारण साकल्य का संयोग होने पर कदाचित् सम्यग्दर्शन उत्पन्न होता है, ऐसा देखा जाता है और अन्तरंग कारणों के नहीं मिलने पर सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति नहीं होती, यह निश्चित है॥५-६॥ जैसे विपरीतग्रह (मिथ्यात्व आदि) क्षय से होने वाला तत्त्वार्थ श्रद्धान रूप सम्यग्दर्शन स्याद्वादियों के (जैन धर्मावलम्बियों के) स्वाभाविक (नैसर्गिक) नहीं है उसी प्रकार नैयायिक आदिकों के भी सम्यग्दर्शन को स्वाभाविक होना स्वीकार नहीं किया है। अन्य मतावलम्बियों ने भी कहा है आत्मा के इस विपरीत ग्रह का क्षय पाप के नाश से और धर्म विशेष से होता है ऐसा अन्य लोग भी मानते हैं॥७॥ अत: मिथ्याज्ञान रूप विपरीत ग्रहों का क्षय करने वाला सम्यग्ज्ञान का अविनाभावी सम्यग्दर्शन अपने कारणों से ही उत्पन्न होता है, सर्वथा स्वभाव से नहीं। शंका : यदि दर्शन मोह का उपशम, क्षय आदि तत्त्वार्थ श्रद्धान का कारण है तो वे उपशमादि कारण सभी जीवों के सर्वदा सम्यग्दर्शन को उत्पन्न करावें क्योंकि अहेतुक (बिना कारण) होने से उपशमादि का सर्वदा सद्भाव रहता है।