________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक*३३ सकलचोद्यानामसंभवादागमाविरोधात्। सर्वं सम्यग्दर्शनं स्वाभाविकमेव स्वकाले स्वयमुत्पत्तेनिःश्रेयसवदिति चेन्न, हेतोरसिद्धत्वात्। सर्वथा ज्ञानमात्रेणाप्यनधिगतेर्थे श्रद्धानस्याप्रसिद्धः / वेदार्थे शूद्रवत्तत्स्यादिति चेन्न, भारतादिश्रवणाधिगते शूद्रस्य तस्मिन्नेव श्रद्धानदर्शनात् / न प्रत्यक्षतः स्वयमधिगते मणौ प्रभावादिना संभवानुमानान्निीते कस्यचिद्भक्तिसंभवादन्यथा तदयोगात् / साध्यसाधनविकलत्वाच्च दृष्टांतस्य न स्वाभाविकत्वसाधनं दर्शनस्य साधीयः। न हि स्वाभाविकं निःश्रेयसं तत्त्वज्ञानादिकतदुपायानर्थकत्वापत्तेः। नापि स्वकाले स्वयमुत्पत्तिस्तस्य युक्ता तत एव। केचित्संख्यातेन कालेन सेत्स्यन्ति भव्याः, केचिदसंख्यातेन, केचिदनंतेन, केचिदनंतानंतेनापि कालेन न सेत्स्यतीत्यागमानिःश्रेयसस्य स्वकाले स्वयमुत्पत्तिरिति चेत् न, अतः ऐसा होने पर अन्योन्याश्रय दोष भी नहीं आता है। सकल कुशंकाओं की इसमें संभावना भी नहीं रहती और आगम से विरोध भी नहीं आता अर्थात् सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति में निमित्तकारण पूर्व समयवर्ती ज्ञान है और उस ज्ञान का निमित्त कारण ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम है अत: इसमें अन्योन्याश्रय दोष नहीं है। प्रश्न : सर्व ही सम्यग्दर्शन निसर्गज ही है क्योंकि सम्यग्दर्शन स्वकाल में स्वयं उत्पन्न होता हैमोक्ष के समान / अर्थात् जैसे अपने काल में मोक्ष स्वयं उत्पन्न होता है वैसे सम्यग्दर्शन भी स्वकाल में स्वयं उत्पन्न होता है। उत्तर : इसमें स्वयं उत्पत्ति' यह हेतु असिद्ध है क्योंकि सर्वथा ज्ञान मात्र (सामान्य ज्ञान) से जाने हुए पदार्थों में श्रद्धान होना अप्रसिद्ध है। . जिस प्रकार वेदार्थ को जाने बिना भी शूद्र को वेद विषयक अत्यन्त भक्ति हो जाती है उसी प्रकार अनधिगत जीवादि पदार्थों में भी श्रद्धान हो जाता है, यह कथन भी उचित नहीं है / (अर्थात् यह दृष्टान्त विषम है) क्योंकि शूद्र को महाभारत आदि ग्रन्थों से वेद की महिमा सुनकर या वेद के ज्ञाताओं से वेद का महत्त्व जानकर वेद में श्रद्धान (भक्ति) होता है, ऐसा देखा जाता है। जैसे प्रत्यक्ष प्रमाण से स्वयं अधिगत मार्ग में उसका प्रभाव, चमक-दमक आदि उसमें होने वाले अनुमान से निर्णीत होने पर किसी की उसके प्रति भक्ति वा उसका ग्रहण करना होता है। अन्यथा (यदि मणि को प्रत्यक्ष नहीं जाना और प्रभाव आदि हेतुओं से उसका निर्णय नहीं हुआ है तो) उस मणि में राग का योग नहीं हो सकता तथा सम्यग्दर्शन को नैसर्गिक सिद्ध करने के लिए दिये गये मोक्षरूपी दृष्टान्तके साध्य साधन विकलता होने से सम्यग्दर्शन के स्वाभाविकत्व साधन को सिद्ध नहीं कर सकता। अर्थात् सम्यग्दर्शन को नैसर्गिक सिद्ध करने के लिए दिया गया मोक्ष रूप दृष्टान्त मोक्ष पक्ष में ही नहीं है। क्योंकि मोक्ष स्वभाव से उत्पन्न नहीं होता है। यदि मोक्ष नैसर्गिक है तो उसके तत्त्व-ज्ञान, दीक्षा, ध्यान आदि उपायों का पालन करना व्यर्थ होगा अतः मोक्ष की उत्पत्ति स्वकाल में स्वयं होती है, ऐसा कहना उचित नहीं है। शङ्का : कोई भव्य संख्यात काल में सिद्ध होंगे, कोई असंख्यात भव में और कोई अनन्त काल में। कोई ऐसे भी भव्य हैं जो अनन्तानन्त काल में भी सिद्ध नहीं होंगे, ऐसा आगम में कथन है। इस प्रकार आगम के कथन से निःश्रेयस मोक्ष की प्राप्ति स्वकाल में स्वयं बिना यत्न होती है। समाधान : ऐसा कहना उचित नहीं है क्योंकि आप आगम का जैसा 1. पक्ष में नहीं रहने वाले हेतु को असिद्ध हेत्वाभास कहते हैं। 2. वेदान्तियों का कथन है कि स्त्री और शद्र वेद पढ़ने के अधिकारी नहीं हैं। उनको वेद के प्रति स्वयं नैसर्गिक श्रद्धा उत्पन्न होती है इसलिए उसका दृष्टान्त दिया है। 3. साध्य में पक्ष में साधन के नहीं रहने को साध्य साधन विकल साधन (हेतु) कहते हैं।