________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 31 मिथ्याज्ञानाधिगतेथे प्रवृत्तिरिति चेन्न, सर्वेषां सत्यज्ञानसन्तानस्यानादित्वप्रसंगात्। सत्यज्ञानात् प्राक् तदर्थे मिथ्याज्ञानवत्सत्यज्ञानस्याप्यभावान्न तस्यानादित्वप्रसक्तिरिति चेन,सर्वज्ञानशून्यस्य प्रमातुरनात्मत्वप्रसंगात्। न चानात्मा प्रमाता युक्तोतिप्रसंगात् / सत्यज्ञानात्पूर्वं तद्विषये ज्ञानं न मिथ्या सत्यज्ञानजननयोग्यत्वात्, नापि सत्यं पदार्थयाथात्म्यपरिच्छेदकत्वाभावात्। किं तर्हि ? सत्येतरज्ञानविविक्तं ज्ञानसामान्यं, ततो न तेनाधिगतेर्थे प्रवर्तमानं सत्यज्ञानं मिथ्याज्ञानं मिथ्याज्ञानाधिगतविषयस्य ग्राहकं नापि गृहीतग्राहीति चेत् , तर्हि कथंचिदपूर्वार्थं सत्यज्ञानं न सर्वथेत्यायातं / तथोपगमे सम्यग्दर्शनं तथैवोपगम्यमानं कथं मिथ्याज्ञानाधिगतार्थे स्यात् ? सत्यज्ञानपूर्वकं वा ? यतस्तत्समकालं मतिज्ञानाद्युपगमविरोधः। सर्वं सद्दर्शनमधिगमजमेव ज्ञानमात्राधिगते यदि कहो कि सत्य (समीचीन) ज्ञान अपूर्वार्थ होता है इसलिए मिथ्याज्ञान से अधिगत अर्थ में सत्यज्ञान की प्रवृत्ति नहीं होती। अर्थात् मिथ्याज्ञान गृहीतग्राही है और सम्यग्ज्ञान अपूर्व अर्थ को जानने वाला है। अत: मिथ्याज्ञान के द्वारा जाने हुए पदार्थों में सम्यग्ज्ञान की प्रवृत्ति नहीं होती, तो ऐसा भी कहना उपयुक्त नहीं है, क्योंकि ऐसा मानने पर सभी प्राचीन सम्यग्दृष्टियों और नवीन सम्यग्दृष्टियों के सम्यग्ज्ञान की सन्तान के अनादिपने का प्रसंग आता है। सम्यग्दर्शन के समान काल में होने वाले सत्यज्ञान से प्राक् (पहिले) मिथ्याज्ञान के समान, सम्यग्ज्ञान की भी पदार्थ में प्रवृत्ति नहीं होती, इसलिए सम्यग्ज्ञान के अनादित्व का प्रसंग नहीं आता ? - ऐसा कहना ठीक नहीं है, क्योंकि मिथ्याज्ञान और सम्यग्ज्ञान रूप सर्वज्ञान से रहित प्रमाता (आत्मा) के अनात्मत्व (जड़त्व) का प्रसंग आता है। तथा अतिप्रसंग दोष (आत्मा के अनात्मा होने का प्रसंग) होने से प्रमाता (ज्ञाता आत्मा) को अनात्मा (ज्ञानशून्य) कहना युक्त (ठीक) नहीं है। कोई वादी कहता है कि- सत्य ज्ञान के पूर्व उस ज्ञेय विषय में प्रवृत्ति करने वाला ज्ञान सत्यज्ञान को उत्पन्न करने की योग्यता वाला होने से मिथ्या ज्ञान नहीं है और उसमें पदार्थों का याथात्म्य (वास्तविक) परिच्छेदकत्व (ज्ञान) का अभाव होने से (पदार्थों का वास्तविक ज्ञान कराने में समर्थ न होने से) समीचीन ज्ञान भी नहीं है। शंका : तो वह ज्ञान समीचीनता-असमीचीनता से रहित कौनसा ज्ञान है ? समाधान : परन्त समीचीनता और असमीचीनता से रहित ज्ञान सामान्य है. इसलिए वह सामान्य ज्ञान से जाने हए पदार्थों में प्रवृत्ति करने वाला होनेसे सत्य ज्ञान भी नहीं है और मिथ्याज्ञान के द्वारा अधिगत (जाने हुए) विषय का ग्राहक मिथ्याज्ञान भी नहीं है, तथा गृहीत ग्राही भी नहीं है। आचार्य कहते हैं कि यदि आप ऐसा मानते हो तो यह निश्चित है कि कथंचित् सत्यज्ञान (सम्यग्ज्ञान) अपूर्वार्थग्राही है, सर्वथा नहीं। अतः जब आप सम्यग्ज्ञान को कथंचित् अपूर्वार्थग्राही मानते हो, सम्यग्ज्ञान से पूर्व वाले ज्ञान को कथंचित् सम्यक् मानते हो तो मिथ्याज्ञान से जाने हुए पदार्थों में सम्यग्दर्शन कैसे होता है ? ऐसा क्यों कहते हो ? सम्यग्दर्शन को भी उसी प्रकार स्वीकार क्यों नहीं करते ? तथा, सम्यग्ज्ञान के पूर्व सम्यग्ज्ञान की सत्ता कैसे मानोगे, जिससे सम्यग्ज्ञान के समकाल में मतिज्ञान आदि के स्वीकार का विरोध हो सके? अर्थात्