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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 30 कः पुनरयं निसर्गोधिगमो वा यस्मात्तदुत्पद्यत ? इत्याह;विना परोपदेशेन तत्त्वार्थप्रतिभासनम् / निसर्गोधिगमस्तेन कृतं तदिति निश्चयः // 3 // ततो नाप्रतिभातेर्थे श्रद्धानमनुषज्यते / नापि सर्वस्य तस्येह प्रत्ययोधिगमो भवेत् // 4 // __न हि निसर्गः स्वभावो येन ततः सम्यग्दर्शनमुत्पद्यमानमनुपलब्धतत्त्वार्थगोचरतया रसायनवन्नोपपद्येत / न परोपदेशनिरपेक्षे ज्ञाने निसर्गशब्दस्य प्रवर्तनान्निसर्गतः शूरः सिंह इति यथा स्वकारणविशेषादभवदपि हि तस्य शौर्यं परोपदेशानपेक्षं लोके नैसर्गिक प्रसिद्धं तद्वत्तत्त्वार्थश्रद्धानमपरोपदेशमत्यादिज्ञानाधिगते तत्त्वार्थे भवनिसर्गान्न विरुध्यते / नन्वेवं मत्यादिज्ञानस्य दर्शनेन सहोत्पत्तिर्विहन्यते तस्य ततः प्रागपि भावादिति चेन्न, सम्यग्दर्शनोत्पादनयोग्यस्य मत्यज्ञानादेर्मतिज्ञानादिव्यपदेशाद्दर्शनसमकालं मत्यादिज्ञानोत्पत्तेः। तर्हि मिथ्याज्ञानाधिगतेथे दर्शनं मिथ्या प्रसक्तमिति चन्न, ज्ञानस्यापि मिथ्यात्वप्रसंगात् / सत्यज्ञानस्यापूर्वार्थत्वान्न प्रश्न : जिससे सम्यग्दर्शन उत्पन्न होता है वह निसर्ग और अधिगम क्या है ? उत्तर : कहते हैं पर के उपदेश के बिना तत्त्वार्थ का प्रतिभासन होना (वह) निसर्ग है, तथा दूसरे के उपदेश से जो तत्त्व का निश्चय होता है वह अधिगम है। निसर्ग कहने से अप्रतिभास (अज्ञात) पदार्थों के श्रद्धान का प्रसंग नहीं आता और परोपदेश कहने से सभी जीवों के उपदेश, सभी जीवों के अधिगमज सम्यग्दर्शन का कारण नहीं होता // 3-4 // इस सूत्र में निसर्ग का अर्थ स्वभाव नहीं है, क्योंकि जैसे जब तक रसायन का ज्ञान नहीं होता तब तक रसायन का श्रद्धान नहीं होता, उसी प्रकार तत्त्वार्थ के गोचर तत्त्व की उपलब्धि के . बिना सम्यग्दर्शन उत्पन्न नहीं हो सकता। अतः निसर्ग का अर्थ स्वभाव नहीं है, अपितु दूसरे के उपदेश की अपेक्षा नहीं रखने वाले ज्ञान में निसर्ग शब्द की प्रवृत्ति होती है, जैसे स्वभाव से सिंह शूर है। स्वकारणविशेष (जाति, शरीर आदि कारण विशेष) से उत्पन्न होने वाला सिंह का शौर्य परोपदेशनिरपेक्ष होने से लोक में नैसर्गिक कहलाता है वा नैसर्गिक प्रसिद्ध है। उसी प्रकार परोपदेश के बिना ही मतिज्ञान (मतिज्ञान पूर्वक जातिस्मरण) आदि के द्वारा ज्ञात (जाने हुए) पदार्थों में परोपदेश के बिना ही उत्पन्न तत्त्वार्थ श्रद्धान नैसर्गिक कहलाता है-इसमें कोई विरोध नहीं है। अर्थात् जिस प्रकार सिंह की शूरता, क्रूरता जाति विशेष कारणों से होने पर भी परोपदेश की अपेक्षा न रखने से नैसर्गिक कहलाती है, उसी प्रकार पूर्व भव का जातिस्मरण, जिनबिम्बदर्शन आदि कारणों से उत्पन्न भी सम्यग्दर्शन परोपदेश की साक्षात् अपेक्षा न होने से नैसर्गिक कहलाता है। शंका : यदि मतिज्ञान से जाने हुए तत्त्व अर्थ में नैसर्गिक सम्यग्दर्शन उत्पन्न होता है, ऐसा मानते हो तो सम्यग्दर्शन के साथ मति आदि ज्ञान की उत्पत्ति का व्याघात होता है। “सम्यग्दर्शन के उत्पन्न होते ही मति आदि ज्ञान सुज्ञान होते हैं"-यह कथन घटित नहीं होगा। क्योंकि सम्यग्दर्शन के पूर्व भी सम्यग्ज्ञान की उपलब्धि होगी। समाधानः ऐसा कहना उचित नहीं है, यद्यपि सम्यग्दर्शन के पूर्व काल में रहने वाला ज्ञान सम्यग्ज्ञान नहीं है, सम्यग्दर्शन के साथ ही सम्यग्ज्ञान उत्पन्न होता है, तथापि सम्यग्दर्शन के उत्पादन के योग्य मति अज्ञान ज्ञानादि सामान्य ज्ञान उपचार से मतिज्ञान इस नाम के भागी होते हैं। अथवा मतिज्ञान है ऐसा व्यवहार होता है। शंका : मिथ्याज्ञान से जाने हुए पदार्थों के श्रद्धान से यदि सम्यग्दर्शन होता है तो उस दर्शन के मिथ्यात्व का प्रसंग आयेगा। समाधान : ऐसा कहना उचित नहीं है क्योंकि ऐसा मानने पर तो मिथ्याज्ञान से उत्पन्न ज्ञान में भी मिथ्यात्व का प्रसंग आयेगा।
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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