________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 25 तेन नानादिता तस्यं सर्वदोत्पत्तिरेव वा / नित्यं तत्सत्वसंबद्धात्प्रसज्येताविशेषतः // 1 // ननु च मिथ्यादर्शनस्य नित्यत्वाभावेपि नानादित्वव्यवच्छेदो इति चेन, तस्यानादिकारणत्वात् / न च तत्कारणस्यानादित्वान्नित्यत्वप्रसक्तिः संतानापेक्षयानादित्ववचनात्, पर्यायापेक्षया तस्यापि सादित्वात्। तस्यानाद्यनंतत्वे वा सर्वदा मोक्षस्याभावापत्तेः। नित्यहेत्वहेतुकत्वाभावे सर्वदोत्पत्तिव्यवच्छेदोनुपपन्न: केषांचित्संसारस्य तादृशत्वेपि सर्वदोत्पत्तिदर्शनादिति चेन्न, तस्य नित्यहेतुसंतानत्वात् / प्रागभावस्याहेतुकत्वेपि नित्यत्वसत्त्वयोरदर्शनान्नाहेतुकस्य सम्यग्दर्शनस्य तत्प्रसंगो येन तन्निवृत्तये तस्य सहेतुकत्वमुच्यते इति चेन्न, प्रागभावस्याहेतुकत्वासिद्धेः / स हि घटोत्पत्तेः प्राक् तद्विविक्तपर्यायपरंपरारूपो वा द्रव्यमात्ररूपो वा ? प्रथमपक्षे ___क्योंकि उत्पन्न होता है इसलिए सम्यग्दर्शन के अनादिता नहीं है। उसकी उत्पत्ति का हेतु नित्य न होने से उसकी सर्वदा उत्पत्ति भी नहीं है। मिथ्यादर्शन के अस्तित्व का सम्बन्ध होने से सम्यग्दर्शन के नित्यपने का प्रसंग भी नहीं है, अन्य घट, पट मिथ्यादर्शन आदि कार्यों से सम्यग्दर्शन में कार्यपने की कोई विशेषता नहीं है अर्थात् जैसे वे घट, पट आदिक नित्य, नित्यहेतुक या अहेतुक नहीं हैं, वैसे ही सम्यग्दर्शन भी ऐसा नहीं है। नित्य, नित्यहेतुक और अहेतुक न होने से सम्यग्दर्शन के अनादिता, सर्वदा उत्पत्ति और नित्य सम्बन्धता का प्रसंग नहीं हो सकता है॥१॥ शंका : मिथ्यादर्शन के नित्यत्व का अभाव होने पर भी अनादि का व्यवच्छेद नहीं देखा गया है (उसी प्रकार सम्यग्दर्शन के भी नित्य न होने पर भी अनादित्व का व्यवच्छेद नहीं होना चाहिए) समाधान: ऐसा कहना उचित नहीं है, क्योंकि मिथ्यादर्शन का कारण मिथ्यात्व अनादि काल से है। परन्तु मिथ्यात्व के कारण के अनादि होने से मिथ्यात्व के नित्यत्व का प्रसंग नहीं आता, क्योंकि संतान की (परम्परा की) अपेक्षा से मिथ्यादर्शन अनादि है, उसके भी पर्याय की अपेक्षा सादिपना है। उस मिथ्यात्व को अनादि और अनन्तत्व मान लेने पर वा सर्वकाल में रहने वाला नित्य मान लेने पर मोक्ष के अभाव का प्रसंग आता है। शंका : नित्य हेतुत्व का अभाव होने पर भी सम्यग्दर्शन के सर्वदा उत्पत्ति का व्यवच्छेद नहीं हो सकता है, क्योंकि किन्ही जीवों के संसार का तादृशत्व (नित्य हेतु नहीं) होने पर भी सर्वदा उत्पत्ति देखी जाती है, अतः नित्यहेतु का अभाव सर्वदा उत्पत्ति का व्यवच्छेदक नहीं है। .कोई कहता है-जैसे अहेतुकत्व होने पर प्रागभाव के नित्यत्व और अस्तित्व दृष्टिगोचर नहीं होते हैं, प्रागभाव कार्य के उत्पन्न हो जाने पर नष्ट हो जाता है, अतः प्रागभाव त्रिकालवर्ती नहीं है, नित्य नहीं है तथा द्रव्य, गुण और कर्म के समान सत्ता वाला और सामान्य, विशेष और समवाय के समान रूपसत्ता (अस्तित्व) वाला भी नहीं है, अत: असत् भी है, उसी प्रकार अहेतुक सम्यग्दर्शन के भी नित्य ही अस्तित्व में रहने का प्रसंग नहीं आता, जिससे कि जैन सम्यग्दर्शन की नित्यता की निवृत्ति के लिए सम्यग्दर्शन को सहेतुक स्वीकार करते हैं (कहते हैं।) आचार्य कहते हैं-कि यह कहना युक्त नहीं है- क्योंकि प्रागभाव के अहेतुकत्व सिद्ध नहीं है। हम पूछते हैं कि वह प्रागभाव घट की उत्पत्ति के पूर्व किस स्वरूप है? घट के