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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 340 सिद्धेर्न निरन्वयक्षयैकांतस्तद्वादिभिरभ्युपगंतव्यः / ततः सर्वथा संतानाद्युपगमे द्रव्यस्य कालांतरस्थायिनः प्रसिद्धेर्न क्षणादूर्ध्वमस्थिति: पदार्थानाम्॥ यथा चैकक्षणस्थायी भावो हेतोः समुद्भवेत् / तथानेकक्षणस्थायी किन्न लोके प्रतीयते // 23 // ननु प्रथमे क्षणे यथार्थानां क्षणद्वयस्थास्नुता तथा द्वितीयेपीति न कदाचिद्विनाशः स्यादन्यथा सैव क्षणस्थितिः प्रतिक्षणं स्वभावात्ततो न कालांतरस्थायी भावो हेतोः समुद्भवन् प्रतीयतेऽन्यत्र विभ्रमादिति न मंतव्यं, क्षणक्षयस्थायिनां तृतीयादिकक्षणस्थायित्वविरोधात् / प्रथमक्षणे द्वितीयक्षणापेक्षायामिव द्वितीयक्षणे प्रथमक्षणापेक्षायां क्षणद्वयस्थास्नुत्वाविशेषात् प्रतिक्षणं स्वभावभेदानुपपत्तेः कालांतरस्थायित्वसिद्धेः / ननु च हिंसादि पाप करने वाला दूसरा होगा और फल का भोक्ता दूसरा सिद्ध होगा तथा संतान को एक मानने पर एक द्रव्यत्व की सिद्धि होती है, अत: बौद्धों को निरन्वय क्षणिक एकान्त नहीं स्वीकार करना चाहिए। __ इसलिए सर्वथा संतान आदि को मानने पर एक द्रव्यत्व की सिद्धि होती है। पदार्थों का एक क्षण के ऊर्ध्व (ऊपर) नहीं रहना सिद्ध नहीं होता है। जिस प्रकार एक क्षणस्थायी भाव (पदार्थ) हेतु से उत्पन्न होता है-वैसे ही अनेक क्षणों तक स्थायी रहने वाले भावों की लोक में प्रतीति क्यों नहीं होती है ? अर्थात् कारणों से एक क्षणस्थायी पदार्थों की उत्पत्ति के समान कालान्तर स्थायी पदार्थ दृष्टिगोचर होते हैं॥२३॥ शंका : जैसे प्रथम क्षण में पदार्थों का दो क्षण तक स्थित रहना स्वभाव है, उसी प्रकार दूसरे क्षण में भी दो समय तक रहना रूप स्वभाव स्थित रहेगा। इसी प्रकार तीसरे आदि क्षण में भी स्थित रहेगा। इस प्रकार तो पदार्थ का कभी भी विनाश नहीं होगा। अन्यथा यदि दूसरे तीसरे समय में रहना नहीं मानेंगे तो एक समय स्थित रहना ही पदार्थ का स्वभाव निश्चित होता है। अत:प्रतिक्षण स्वभाव में भेद होने से पदार्थ कालान्तर स्थायी नहीं है। यह हेतु से सिद्ध होता हुआ प्रतीत होता है। भ्रान्ति से कालान्तर स्थायी पदार्थ की प्रतीति होती है। उत्तर : जैनाचार्य कहते हैं कि बौद्धों का यह कथन (पदार्थ कालान्तर स्थायी नहीं है) समीचीन नहीं है, क्योंकि दो क्षणस्थायी पदार्थों के तीसरे चौथै आदि क्षणों में स्थायी रहने का विरोध है। प्रथम क्षण में द्वितीय क्षण की अपेक्षा है और द्वितीय क्षण में प्रथम क्षण की अपेक्षा है। अत: दो क्षण स्थायीपन स्वभाव मे कोई विशेषता नहीं है। इसी प्रकार तृतीय क्षण आदि में लगाना चाहिए। इसलिए पदार्थ में सर्वथा स्वभाव भेद नहीं होने से कालान्तर स्थायित्व की सिद्धि होती है। अर्थात् पदार्थों के अन्वय रूप से रहते हुए भी निरंतर परिवर्तन होता रहता है न पदार्थ सर्वथा कूटस्थ नित्य है और न सर्वथा क्षणिक है अपितु नित्यानित्यात्मक है। पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा प्रतिक्षण पदार्थों में स्वभाव भेद पाया जाता है और द्रव्यार्थिक नय से पदार्थों में प्रतिक्षण स्वभाव भेद नहीं होता है अत: पदार्थ कालान्तर स्थायी है।
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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