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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 335 व्यवहिता यतस्तद्व्यवधायकांतरकल्पनायामनवस्था कथंचिदेकद्रव्यतादात्म्येनाव्यवहितत्वात् अन्यथा तदव्यवधानायोगात् / भवितव्यं वा व्यवधानेन तेषां प्रसिद्धसत्त्वानां व्यवधानेनवस्थानात् / येन चैकेन द्रव्येण तेषां कथंचित्तादात्म्यं तन्नो व्योमेति तस्यैकद्रव्यत्वसिद्धिरिति नासिद्धं व्योम्नो सर्वगतार्थाभावस्वभावत्वसाधनं / ततस्तदनंतं सर्वलोकाधिकरणमिति नानवस्था तदाधारान्तरानुपपत्तेः॥ व्योमवत् सर्वभावानां स्वप्रतिष्ठानुषंजनं। कर्तुं नैकान्ततो युक्तं सर्वगत्वानुषंगवत् // 20 // निश्चयनयात् सर्वे भावाः स्वप्रतिष्ठा इति युक्तं न पुनः सर्वथा व्योमवत्तेषां सर्वगतत्वामूर्तत्वादिप्रसंगस्यापि दुर्निवारत्वात्। सर्वद्रव्याणां सर्वगतत्वे को दोष इति चेत् प्रतीतिविरोध में) आकाश प्रदेशों का व्यवधान रहितपना बन नहीं सकता। परन्तु अखण्ड, अछिद्र आकाश प्रदेशों के ही अव्यवधान (अन्तराल रहितपना) हो सकता है तथा प्रसिद्ध उन आकाश प्रदेशों के अव्यवधान ही होना चाहिए। यदि उन आकाश प्रदेशों में अन्तराल सहितपना माना जाएगा तो अनवस्था दोष आएगा अर्थात् आकाश प्रदेशों के व्यवधायक पदार्थ के भी दूसरा व्यवधायक होना चाहिए अतः अनवस्था दोष आएगा। एक द्रव्य के साथ आकाश प्रदेशों का कथञ्चित् तादात्म्य सम्बन्ध मानने पर दोष नहीं आता है। जिस एक अखण्ड द्रव्य के साथ अनन्त प्रदेशों का कथञ्चित् तादात्म्य सम्बन्ध है, वही स्याद्वाद सिद्धान्त में आकाश द्रव्य है अतः आकाश के एक द्रव्यत्व की सिद्धि है इसलिए आकाश द्रव्य के सर्वगतार्थ भाव स्वभावत्व साधन असिद्ध हेत्वाभास नहीं है। इस प्रकार सर्व लोक का अधिकरण (अवगाह देने वाला) आकाश है; इसमें अनवस्था दोष नहीं है, क्योंकि आकाश को आधार की अनुपपत्ति है अर्थात् अखण्ड द्रव्य होने से आकाश को दूसरे द्रव्य के आधार की आवश्यकता नहीं है। . “आकाश के समान सभी पदार्थों के एकान्त रूप से अपने में प्रतिष्ठित रहने का प्रसंग आएगा अर्थात् आकाश के समान सभी पदार्थ अपने में स्थित रहेंगे, किसी का कोई आधार नहीं होगा।" ऐसा कहना उचित नहीं है। क्योंकि ऐसा मानने पर सभी पदार्थों के आकाश के समान सर्वगतत्व (व्यापकत्व) का प्रसंग आएगा अर्थात् जैसे सर्व पदार्थ आकाश के समान व्यापक नहीं हैं, वैसे निराधार भी नहीं हैं // 20 // यद्यपि निश्चय नय से सर्व पदार्थ अपने में ही प्रतिष्ठित हैं। (किसी का किसी के साथ आधार आधेय भाव नहीं है) इस प्रकार सर्वथा आकाश के समान आधार रहित मानना ठीक नहीं है क्योंकि, यदि व्यवहार नय से भी आकाश के समान सर्व पदार्थों को आधार रहित मानेंगे तो जीव आदि पदार्थों के भी आकाश के समान सर्वगतत्व और अमूर्त्तत्व आदि का प्रसंग भी दुर्निवार होगा। आकाश के समान जीवादि पदार्थ भी अमूर्त और सर्वगत होंगे।
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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