________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 308 प्रतिपद्य ततोन्येषामसंबंधप्रतिपत्तिरानुमानिकी स्यादितिचेत् तत्तर्हि स्वातंत्र्यमर्थानां न तावदसिद्धानां, सिद्धानां तु स्वातंत्र्यात्संबंधाभावे तत्त्वतः किंन्न देशादिनियमेनोद्भवो दृश्यते तस्य पारतंत्र्येण व्याप्तत्वात् / न हि स्वतंत्रोर्थः सर्वनिरपेक्षतया नियतदेशकालद्रव्यभावजन्मास्ति न चाजन्मा सर्वथार्थक्रियासमर्थः स्वयं तस्याकारणात् / प्रत्यासत्तिविशेषाद्देशादिभिस्तन्नियतोत्पत्तिरर्थस्य स्यादिति चेत् , स एव प्रत्यासत्तिविशेष: संबंध: पारमार्थिकः सिद्ध इत्याह;द्रव्यत: क्षेत्रतः कालभावाभ्यां कस्यचित्स्वतः। प्रत्यासन्नकृतः सिद्धः संबंधः केनचित्स्फुटः॥१२॥ कस्यचित्पर्यायस्य स्वत: केनचित्पर्यायेण सहैकत्र द्रव्ये समवायाद्रव्यप्रत्यासत्तिर्यथा स्मरणस्यानुभवेन सौगत कहता है कि किन्हीं विवक्षित अर्थों के स्वातंत्र्य को सम्बन्धाभाव (सम्बन्ध के अभाव) के साथ व्याप्ति रखते हुए जानकर और उस व्याप्ति से दूसरे पदार्थों के असम्बन्ध की प्रतिपत्ति (ज्ञान) अनुमान से होती है अर्थात् विवक्षित पदार्थ की व्याप्ति के ज्ञान से साध्य-साधन के सम्बन्ध को जानकर भिन्न पदार्थों के साध्य साधन की व्याप्ति अनुमान से जान ली जाती है। जैनाचार्य कहते हैं कि इस अनुमान से व्याप्ति को जानने में अनवस्था दोष आता है क्योंकि व्याप्ति को जानने वाले अनुमान के उत्थान में भी पुनः व्याप्ति को जानना आवश्यक होता है। तथा असिद्ध पदार्थों की तो स्वतंत्रता हो नहीं सकती अर्थात् जो अभी तक असिद्ध है, वह स्वतंत्र हो नहीं सकता और सिद्ध पदार्थों का तो स्वतंत्र होने के कारण यदि सम्बन्ध नहीं माना जाता है तो वस्तुत: देश, कालादि के नियम से पदार्थों की उत्पत्ति होना कैसे दृष्टिगोचर हो रहा है ? यदि देश, काल आदि के नियम से उत्पत्ति होती है तो उसकी परतंत्रता के साथ व्याप्ति होगी, वह स्वतंत्र नहीं हो सकती। जो अपनी उत्पत्ति में द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा रखता है वह परतंत्र होता है। जो सर्वथा स्वतंत्र होता है वह पदार्थ नियत देशकाल द्रव्य भाव का अवलम्बन लेकर उत्पन्न नहीं होता है। जो उत्पन्न नहीं होता है (कूटस्थ नित्य है) वह सर्वथा अर्थक्रिया करने में समर्थ नहीं है क्योंकि स्वतंत्र पदार्थ किसी का कारण नहीं होता है अर्थात् जो पर्याय से पर्यायान्तर होता है परिणमन करता है, वही अर्थक्रिया करने में समर्थ है और वही किसी का कारण हो सकता है। यदि प्रत्यासत्ति विशेष से देश, काल आदि के साथ नियत रूप से अर्थ (पदार्थ) की उत्पत्ति मानेंगे तो वही प्रत्यासत्ति विशेष सम्बन्ध पारमार्थिक सिद्ध हो जायेगा। इसी कथन को आचार्य विशेष रूप से कहते हैं किसी पदार्थ का किसी अन्य पदार्थ के साथ द्रव्य, क्षेत्र (देश), काल और भावों के द्वारा प्रत्यासन्नता (निकटता) से किया गया सम्बन्ध स्वत: सिद्ध है। स्फुट रूप से द्रव्य प्रत्यासत्ति, क्षेत्र प्रत्यासत्ति, काल प्रत्यासत्ति और भाव प्रत्यासत्ति चार सम्बन्ध प्रतीत हो रहे हैं // 12 // किसी एक पर्याय का स्वत: किसी अन्य पर्याय के साथ एक द्रव्य में समवाय सम्बन्ध हो जाना द्रव्य प्रत्यासत्ति कहलाती है। जिस प्रकार स्मरण का पूर्व अनुभव के साथ एक आत्मा में समवाय हो रहा