________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 306 तत्त्वत: संबंधोस्तीति / तदुक्तं / “पारतंत्र्ये हि संबंधे सिद्धे का परतंत्रता / तस्मात्सर्वस्य भावस्य संबंधो नास्ति तत्त्वतः॥” इति संबंधमात्राभावे च सिद्धे सति न कश्चित्कस्यचित्स्वामी नाम यतः स्वामित्वमर्थानामधिगम्यं स्यादित्यके॥ तथा स्याद्वादसंबंधो भावानां परमार्थतः। स्वातंत्र्यात् किं न देशादिनियमोतिरीक्ष्यते // 11 // पारतंत्र्यस्याभावाद्भावानां संबंधाभावमभिदधानास्तेन संबंधं व्याप्तं क्वचित्प्रतिपद्यते न वा ? प्रतिपद्यते चेत् कथं सर्वत्र सर्वदा संबंधाभावमभिदधुर्विरोधात् / नो चेत् कथमव्यापकाभावादव्याप्याभावसिद्धेः / किसी रूप से सिद्ध और किसी रूप से असिद्ध के परतंत्रता सिद्ध होने पर पारतंत्र्य सम्बन्ध है, इस प्रकार कहना भी मिथ्या है क्योंकि इसमें दोनों पक्षों में दिये गये दोषों का प्रसंग आता है अर्थात् सिद्ध पदार्थ को पराधीनता की आवश्यकता नहीं है। और जो असत् स्वरूप है, असिद्ध अंश है-वह क्या पराधीन होगा जो है ही नहीं, वह क्या तो दूसरे के आधीन होगा और क्या अपने आधीन होगा? .. अथवा एक निष्पन्न (परिपूर्ण) और दूसरा अंश अनिष्पन्न ये दोनों विरुद्ध धर्म एक साथ एक समय में नहीं रह सकते हैं। क्योंकि इन दोनों में परस्पर व्याघात करने वाला प्रतिघात दोष आता है। जो निष्पन्न है वह अनिष्पन्न नहीं है और जो अनिष्पन्न है वह निष्पन्न नहीं है इसलिए तत्त्व से विचारा जाये तो सम्बन्ध नहीं होता है। बौद्ध ग्रन्थ में कहा भी है कि “परतंत्रता होने पर सम्बन्ध सिद्ध होता है" परन्तु सम्पूर्ण भावों के निष्पन्न हो जाने पर पदार्थों में सम्बन्ध कैसे सिद्ध हो सकता है, इस प्रकार सामान्य रूप से सम्बन्ध का अभाव सिद्ध हो जाने पर कोई भी किसी का स्वामी बन नहीं सकता। आधार, आधेय, जन्य, जनक, वाच्य, वाचक भाव नहीं होने से अकेला स्व स्वामी सम्बन्ध कैसे हो सकता है ? जब सामान्य नहीं है तो विशेष की स्थिति कैसे हो सकती है। इस प्रकार सम्बन्ध मात्र के अभाव की सिद्धि होने पर कोई किसी का स्वामी नहीं है। इसलिए स्वामित्व को अर्थाधिगम्य कहना कैसे युक्त हो सकता है? इस प्रकार कोई (बौद्ध) कहते हैं। जैनाचार्य बौद्ध के इस कथन का उत्तर देते हैं। स्याद्वाद सिद्धान्त के अनुसार पदार्थों का वास्तविक सम्बन्ध है क्योंकि पदार्थों की एकान्त से स्वतंत्रता स्वीकार कर लेने पर नियत देश और नियतकाल आदि के नियम से उत्पत्ति देखी जाती है, वह कैसे घटित हो सकेगी॥११॥ भावार्थ : सर्व पदार्थों के एकान्त से स्वतंत्र होने पर उनके पर्याय की उत्पत्ति में देश-काल का नियम कैसे घटित हो सकेगा? परतंत्रता के अभाव से पदार्थों के सम्बन्ध के अभाव का कथन करने वाले बौद्ध क्या उस परतंत्रता से सम्बन्ध को व्याप्त हुआ यानी अविनाभाव रखता हुआ किसी दृष्टान्त में जान लेते हैं या नहीं ? अर्थात्