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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 300 अभावशब्दस्याभावसामान्यविषयत्वात्तस्य विवादापन्नत्वात् / सर्वो हि किमयमभावो वस्तुधर्म: किं वा तुच्छ इति प्रतिपद्यतेन नास्तीति प्रत्ययार्थोऽभावमात्रे / तत्र च वस्तुधर्मतामभावस्याचक्षाणा: स्याद्वादिनः कथमभावशब्दं कल्पितार्थं स्वीकुर्युः? स्वयं तुच्छरूपतां तु तस्य निराकुर्वंतः परैरारोपितामाशंकितां वानुवदतीत्युक्तप्रायं / न चात्यंतासंभविनो रूपस्य वस्तुन्यारोपितस्य केनचिदाशंकितस्य चातुच्छादे: सर्वशब्दानामन्यव्यवच्छेदविषयत्वप्रसंजनं प्रायः प्रतीतिविरोधात् / कथमन्यथा कस्यचित्प्रत्यक्षस्य नीलविषयत्वे सर्वप्रत्यक्षाणां नीलविषयत्वप्रसंजनं नानुज्ञायते सर्वथा विशेषाभावात् / अथ यत्र प्रत्यक्षे नीलं प्रतिभासते निर्बाधात्तन्नीलविषयं यत्र पीतादि तत्तद्विषयमित्यनुगम्यते तर्हि यत्र शाब्दे ज्ञाने वस्तुरूपमकल्पितमाभाति तद्वस्तुरूपविषयं यंत्र तु कल्पनारोपितरूपं तत्तद्गोचरमित्युक्तं / ततः शब्दार्थानां भावाभावोभयधर्माणामभावादिवासनोदित समाधान : जैनाचार्य कहते हैं कि बौद्धों का यह कथन सारभूत नहीं है क्योंकि ‘अभाव' शब्द का अभाव सामान्य है और सामान्य विवाद में पड़ा हुआ है। यहाँ विचारात्मक प्रश्न है कि विवाद में पड़ा हुआ सर्व ही अभाव शब्द क्या वस्तु का धर्म है? अथवा तुच्छ स्वभाव है ? अभाव का अर्थ 'नहीं' नहीं है, इत्यादि अभाव सामान्य में अर्थ प्राप्त होता है अर्थात् अभाव का अर्थ सामान्य अभाव है। इसलिए यहाँ अभाव को वस्तु धर्म कहने वाले स्याद्वादी अभाव शब्द को कल्पित अर्थ वाला कैसे स्वीकार कर सकते हैं, अर्थात् नहीं कर सकते। स्याद्वादी तो स्वयं उस तुच्छरूपता का निराकरण करते हुए पर (वैशेषिक) के द्वारा आरोपित या मीमांसक के द्वारा शंका का विषयभूत तुच्छाभाव का अनुवदन करते हैं, उसका कथन मात्र करते हैं। इसका पूर्व में विस्तारपूर्वक कथन किया गया है। तथा अत्यन्त असंभवी (अत्यन्ताभावात्मक) किन्तु खण्डन करने के द्वारा वस्तु में आरोपित तुच्छाभाव आदि के वाचक सर्व शब्दों को अन्यापोह अर्थ के विषयत्व का प्रसंग देना प्रतीति विरुद्ध है, अन्यथा किसी भी प्रत्यक्ष ज्ञान का नीलत्व को विषय करने वाला होने पर रक्त पीत आदि का विषय करने वाले सभी प्रत्यक्ष के नीलत्व के ग्रहण करने का प्रसंग क्यों नहीं आवेगा, अपितु नीलत्व के ग्रहण करने का प्रसंग आयेगा क्योंकि इनमें कोई विशेषता नहीं है। यदि जिस प्रत्यक्ष में नील का प्रतिभास होता है वह निर्बाधता से नील का विषय करने वाला ही प्रत्यक्ष है और जिस प्रत्यक्ष में पीत, रक्त आदि पदार्थ बाधा रहित प्रतिभासित होते हैं वह पीतादि का विषय करने वाला प्रत्यक्ष है, ऐसा मानते हो तो, जिस शब्दजन्य ज्ञान में अकल्पित परमार्थभूत वस्तुस्वरूप प्रतिभासित होता है, वह शब्दज्ञान वस्तुभूत पदार्थ का विषय करने वाला है परन्तु जिस शब्दज्ञान में कल्पना में आरोपित अवस्तुभूत पदार्थ प्रतिभासित होते हैं वह शब्दज्ञान अवस्तुभूत पदार्थ का विषय करने वाला है, ऐसा मानना चाहिए जिसका कथन पूर्व में कर दिया गया है। इसलिए शब्द के वाच्यार्थ भाव, अभाव
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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