________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 299 प्रमाणवृत्तांतवादपरत्वात्तषां / न हि यथा जीवादिवस्तु प्रतिनियतदेशादितया विद्यमानमेव देशांतरादितया नास्तीति प्रमाणमुपदर्शयति तथा तुच्छाभावं तस्य भावरूपत्वप्रसंगात् / सर्वत्र सर्वदा सर्वथा वस्तुरूपमेवाभावं तदुपदर्शयति तथा तुच्छाभावाभावमुपदर्शयतीति तद्वचने दोषाभावः। नन्वेवं तुच्छाभावसदृशस्यानर्थकत्वे प्रयोगो न युक्तोतिप्रसंगात्, प्रयोगे पुनरर्थः कश्चिद्वक्तव्यः स च बहिर्भूतो नास्त्येव च कल्पनारूढस्त्वन्यव्यवच्छेद एवोक्तः स्यात्तद्वत्सर्वशब्दानामन्यापोहविषयत्वे सिद्धेर्न वास्तवाः शब्दार्था इति चेत् नैतदपि सारं, उसका निषध कर दिया जाता है अतः कथंचित् प्रतिषेध्य के बिना भी प्रतिषेध कर दिया जाता है और कथंचित् प्रतिषेध्य के बिना प्रतिषेध नहीं भी होता है अतः अनेकान्तवादियों के कथन में विरोध नहीं आता है क्योंकि उन अनेकान्तंवादियों के द्वारा प्रमाण सिद्ध वृत्तान्त का अनुवदन (कथन) किया जाता है। जिस प्रकार प्रमाण (अनेकान्तवाद या सम्यग्ज्ञान) प्रतिनियत देश, काल की अपेक्षा (स्वचतुष्टय की अपेक्षा) विद्यमान जीवादि पदार्थों का परचतुष्टय की अपेक्षा नास्तित्व दिखलाता है। (स्वचतुष्टय की अपेक्षा जीवादि पदार्थ अस्ति रूप है और परचतुष्टय की अपेक्षा नास्ति है, ऐसा सम्यग्ज्ञान कथन करता है) उसी प्रकार यदि सम्यग्ज्ञान स्वचतुष्टय और पर चतुष्टय की अपेक्षा तुच्छाभाव के अस्तित्व और नास्तित्व का कथन करेगा तो जीवादिक के समान कथंचित् तुच्छाभाव के भी भावत्व का प्रसंग आयेगा। __सम्यग्ज्ञान सर्वत्र सर्वकाल में और सभी प्रकार से वस्तुस्वरूप अभाव को ही दिखाता (कहता) है और तुच्छाभाव के भी उसी प्रकार वस्तुस्वरूप अभाव को कहता है। इस प्रकार उसके कथन करने में कोई दोष नहीं आता है अर्थात् तुच्छाभाव कोई पदार्थ नहीं है। जैसे बन्ध्या का पुत्र कोई वस्तु नहीं है। ___ शंका : इस प्रकार तुच्छाभाव शब्द को व्यर्थ मानने पर तो शब्द का प्रयोग करना ही युक्त नहीं है अर्थात् तुच्छाभाव के सदृश कोई पदार्थ ही नहीं है-तो 'तुच्छाभाव' इस शब्द का प्रयोग करना व्यर्थ है। अन्यथा अतिप्रसंग दोष आयेगा अर्थात् निरर्थक शब्दों का प्रयोग करना भी आवश्यक हो जायेगा तथा तुच्छाभाव का वचन प्रयोग करने पर फिर उसका कोई वाच्य अर्थ भी कहना पड़ेगा परन्तु तुच्छाभाव का वाच्यार्थ घट, पट आदि के समान बहिरंग वस्तुभूत अर्थ होता नहीं है अर्थात् जैसे घट आदि शब्द वाच्यार्थ वास्तविक वस्तु नहीं है वैसे तुच्छाभाव भी वास्तव अर्थ नहीं है केवल कल्पना रोपित अन्य व्यवच्छेद ही तुच्छ पदार्थ अभाव शब्द से कहा जाता है। इसी प्रकार उस अभाव शब्द के समान सभी शब्दों का अन्यापोह रूप अर्थ का विषय करना सिद्ध हो जाने पर सभी शब्दों के वाच्यार्थ वास्तविक सिद्ध नहीं होते हैं अपितु काल्पनिक सिद्ध होते हैं।