SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 309
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 296 प्ररूपणं न विरुध्यते / मानसविभ्रमत्वेपि विशदत्वं स्वप्नस्य विरुध्यत इति चेन्न, विशदाक्षज्ञानवासनासद्भूतत्वेन तस्य वैशद्यसंभवात् / न च तत्र विशदरूपतयावभासमानानामपि सुखनीलादीनां पारमार्थिकत्वं विसंवादात्। तद्वज्जाग्रद्दशायामपि तेषामनादींद्रियादिजज्ञानवासनोद्भूतप्रतिभासपरिनिष्ठितत्वात्प्रत्यक्षा एव ते न वस्तुस्वभावा इति शक्यं वक्तुं। बाधकाभावाद्वास्तवास्ते इति चेत्, शब्दार्थास्तथा संतु / न चाभावस्यापि शब्दार्थत्वात्सर्वशब्दार्थानामवास्तवत्वमिति युक्तं, भावांतररूपत्वादभावस्य। ननु तुच्छाभावस्याशब्दार्थत्वे कथं प्रतिषेधो नाम निर्विषयप्रसंगादिति चेन्न, वस्तुस्वभावस्याभावस्य विधानादेव तुच्छस्वभावस्य तस्य नहीं, यह हेतु अनैकान्तिक हेत्वाभास है, क्योंकि स्वप्न आदि में कल्पित का भी स्पष्ट प्रतिभास होता है तथा स्वप्न में अनुभूत नीलादि निर्विकल्प ज्ञान का विषय भी नहीं हैं-क्योंकि सौगत मत में स्वप्न को मनोजनित विभ्रम ज्ञान स्वीकार किया है। यदि उस स्वप्न को बहिरिन्द्रियजन्य विभ्रम ज्ञान माना जायेगा तो अन्यत्र ग्रन्थों में इन्द्रियजन्य भ्रान्ति से उस स्वप्न रूप भ्रम का पृथक् निरूपण करना विरुद्ध कैसे नहीं होगा? अर्थात् बाह्य पदार्थजन्य भ्रान्ति और स्वप्न भ्रान्ति का पृथक्-पृथक् निरूपण करने से परस्पर विरोध आता स्वप्न ज्ञान को मानस विभ्रम मानने पर स्वप्न के विशदत्व का विरोध आता है अर्थात् जो भ्रान्ति रूप ज्ञान हैं, वे स्पष्ट नहीं होते हैं, प्रत्यक्ष प्रमाण रूप ज्ञान ही विशद होते हैं। बौद्धों का इस प्रकार कहना उचित नहीं है-क्योंकि विशद इन्द्रिय ज्ञान से निर्मित वासना से उत्पन्न स्वप्न ज्ञान के विशदत्व संभव है परन्तु स्वप्न में स्पष्ट रूप से प्रतिभासित सुख आदि अन्तरंग पदार्थ और नीलादि बहिरंग पदार्थों में विसंवाद होता है अत: वे परमार्थभूत नहीं हैं। ऐसा कहने पर स्वप्न दशा के समान जाग्रत अवस्था में भी सुख, नीलादिक पदार्थ इन्द्रियजन्य ज्ञान की अनादिकालीन वासना से उत्पन्न प्रतिभास में स्थित होने के कारण प्रत्यक्ष विषय तो हो जायेंगे परन्तु वास्तविक नहीं हो सकेंगे, ऐसा जैनाचार्य भी कह सकते हैं। ___ यदि बाधक प्रमाण का अभाव होने से जाग्रत अवस्था में होने वाले सुख, नील आदि पदार्थ वास्तविक हैं तो फिर बाधक प्रमाण का अभाव होने से शब्द का वाच्य अर्थ वास्तविक क्यों नहीं होगा? अर्थात् शब्द का वाच्यार्थ भी वास्तविक है। ऐसा मानना पड़ेगा। __ अभाव भी शब्द का वाच्यार्थ है और अभाव अवास्तविक है अत: सभी शब्दों का वाच्यार्थ अभाव स्वरूप होने से अवास्तविक है ऐसा कहना भी उचित नहीं है क्योंकि अभाव भी भावान्तर स्वरूप है अर्थात् अभाव भी भाव स्वरूप है। जैसे गाय का अभाव महिषी आदि है। तुच्छ निरुपाख्य अभाव कोई पदार्थ नहीं है। शंका : तुच्छाभाव को यदि शब्द का वाच्यार्थ नहीं माना जायेगा तो उस तुच्छाभाव का निषेध कैसे होगा ? तथा निषेध के भी निर्विषयत्व का प्रसंग आयेगा। समाधान : ऐसा कहना उचित नहीं है क्योंकि वस्तु स्वरूप के अभाव का विधान करने पर तुच्छाभाव रूप अभाव का निषेध स्वयमेव सिद्ध हो जाता है। जैसे अनेकान्त की सिद्धि हो जाने पर
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy