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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 289 किं स्वभावैर्निर्देशादिभिरर्थस्याधिगम: स्यादित्याह;तैराधिगमो भेदात्स्यात्प्रमाणनयात्मभिः। अधिगम्य स्वभावैर्वा वस्तुनः कर्मसाधनः // 6 // कर्तृस्थोऽधिगमस्तावद्वस्तुनः साकल्येन प्रमाणात्मभिर्भेदेन निर्देशादिभिर्भवतीति प्रमाणविशेषास्त्वेते। देशस्तु नयात्मभिरिति नयाः ततो नाप्रमाणनयात्मकैस्तैरधिगतिरिष्टा यतो व्याघातः / कस्य पुन: प्रमाणस्यैते विशेषाः श्रुतस्यास्पष्टसर्वार्थाविषयता प्रतीतिरिति केचित् / मतिश्रुतयोरित्यपरे / तेत्र प्रष्टव्याः / कुतो मतेर्भेदास्ते इति ? मतिपूर्वकत्वादुपचारादिति चेन्न, अवधिमन:पर्ययविशेषत्वानुषंगात् / यथैव हि मत्यार्थं परिच्छिद्य श्रुतज्ञानेन परामृशन्निर्देशादिभिः प्ररूपयति तथावधिमन:पर्ययेण वा / न चैवं, श्रुतज्ञानस्य तत्पूर्वकत्वप्रसंग: किस स्वभाव वाले निर्देश आदिक के द्वारा जीवादिक अर्थों का अधिगम होता है-ऐसी जिज्ञासा होने पर आचार्य कहते हैं प्रमाण और नय के भेदस्वरूप निर्देश आदि के द्वारा एकदेश या सर्वदेश से जीवादि पदार्थों का अधिगम होता है। (यहाँ आत्मा से प्रमाण, नय स्वरूप ज्ञानों की भेद विवक्षा की गई है। कर्ता में रहने वाले आत्मा से पृथक् प्रमाण नय स्वरूप निर्देश आदिके द्वारा पदार्थों का अधिगम होता है और कर्म में रहने वाला अधिगम जानने योग्य वस्तुके स्वभावभूत जड़ निर्देश आदि के द्वारा ज्ञान होता है, कर्ता में रहने वाला अधिगम कर्ता से भिन्न विषयीभूत प्रमाण नयों के द्वारा किया जाता है। तथा अधिपूर्वक गम् धातु सकर्मक है अतः कर्ता के समान कर्म में भी निर्देश आदि रहते है।) अथवा अधिगम्य स्वभाव रूप प्रमाण और नय के द्वारा वस्तु का निर्णय होता है॥६॥ श्रोता रूप कर्ता में स्थित वस्तु का पूर्ण रूप से अधिगम प्रमाण के भेद रूप निर्देश आदि के द्वारा होता है क्योंकि कर्ता में स्थित अधिगम को करने वाले निर्देश आदि प्रमाण विशेष (श्रुतज्ञान) स्वरूप हैं और कर्ता में स्थित वस्तु का एकदेश अधिगम नयस्वरूप निर्देश आदि के द्वारा होता है अत: नयप्रमाणात्मक निर्देश आदि के द्वारा वस्तु का ज्ञान इष्ट है। तथा नय प्रमाणात्मक निर्देश को मानने पर व्याघात दोष भी नहीं आता है। परन्तु अप्रमाण और कुनयात्मक निर्देश आदि के द्वारा वस्तु का अधिगम इष्ट नहीं है क्योंकि इसमें व्याघात दोष आता है। प्रश्न : निर्देश आदि किस प्रमाण के भेद हैं? उत्तर : कोई आचार्य अविशद रूप विषय से प्रतीति होने से निर्देश आदि को श्रुतज्ञान के भेद मानते हैं और कोई निर्देश आदि के मति और श्रुत इन दोनों ज्ञानों के भेद मानते हैं। निर्देश आदि को मतिज्ञान का भेद मानने वाले से पूछते हैं कि निर्देश आदि मतिज्ञान के भेद कैसे हो सकते हैं? ___मतिज्ञानपूर्वक श्रुतज्ञान होता है, इसलिए निर्देश आदि मतिज्ञान के भेद कहे जाते हैं ऐसा कहना उचित नहीं है क्योंकि उपचार से निर्देश आदि को मतिज्ञान का भेद माने लेने पर अवधिज्ञान और मन: पर्यय ज्ञान के निर्देश आदि भेद प्रभेद का प्रसंग आयेगा। क्योंकि जिस प्रकार मतिज्ञान के द्वारा अर्थ को जानकर श्रुतज्ञान के द्वारा विचार करके निर्देशादिक के द्वारा शिष्यों के लिए अर्थ का निरूपण करता है। उसी प्रकार अवधिज्ञान और मन:पर्ययज्ञान के द्वारा
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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