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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 286 प्रमाणनयैर्वचनात्मभिः कर्तव्यः स्वार्थ इव ज्ञानात्मभिः, अन्यथा कात्स्न्र्येनैकदेशेन च तत्त्वार्थाधिगमानुपपत्तेः॥ तदेवं संक्षेपतोधिगमोपायं प्रतिपाद्य मध्यमप्रस्थानतस्तमुपदर्शयितुमनाः सूत्रकारः प्राह; निर्देशस्वामित्वसाधनाधिकरणस्थितिविधानतः॥ 7 // निर्देशादीनामितरेतरयोगे द्वंद्वः करणनिर्देशश्च बहुवचनांत: प्रत्येयस्तथा तसि विधानात् / स्थितिशब्दस्य स्वतंत्रत्वादल्पाक्षरत्वाच्च पूर्वनिपातोस्त्विति न चोद्यं, बहुष्वनियमात् / सर्वस्य निर्देशपूर्वकत्वात्स्वामित्वादिनिरूपणस्य पूर्वं निर्देशग्रहणमर्थान्यायान्न विरुध्यते स्वामित्वादीनां तु प्रश्नक्शात् क्रमः / ननु च संक्षिप्तैः प्रमाणनयैः संक्षेपतोऽधिगमो वक्तव्यो मध्यमप्रस्थानतस्तैरेव मध्यमप्रपंचैन इस प्रकार वचनात्मक प्रमाण और नयों के द्वारा परार्थ अधिगम होता है और ज्ञान स्वरूप प्रमाण और नयों के द्वारा पदार्थों का स्वयं अधिगम होता है। अन्यथा (सन्निकर्ष, इन्द्रियवृत्ति आदि उपायों से) एक देश और पूर्णदेश के द्वारा तत्त्वार्थों का अधिगम होना नहीं बन सकता। __इस प्रकार संक्षेप से अधिगम के उपायभूत प्रमाण और नयों का विवेचन करके मध्यम गति से शिष्यों को समझाने के लिए निर्देश आदि अधिगम के उपायों का आचार्य कथन करते हैं __ निर्देश (वस्तु के नाम मात्र का कथन), स्वामित्व, साधन (कारण), अधिकरण, स्थिति (कालकृत मर्यादा) और विधान (प्रकार) इनसे भी जीवादि पदार्थों का अधिगम (जानकारी) होता है॥७॥ निर्देश आदि शब्दों में परस्पर इतरेतर योग द्वन्द्व समास है अतः समासान्त पद को बहुवचनान्त तृतीया विभक्ति से करण निर्देश समझना चाहिए। क्योंकि निर्देश आदि शब्दों के विग्रहों में तसि' नामक हृत् प्रत्यय का विधान किया गया है। इकारान्त और उकारान्त शब्दों की सुसंज्ञा है। स्थिति शब्द सुअन्त और अल्पचर है अतः स्थिति शब्द का पूर्व में निपात होना चाहिए, ऐसी शंका नहीं करनी चाहिए क्योंकि जिस सूत्र में बहुत से पदों का समास होता है उसमें सुअन्त और अल्पअक्षर वाले शब्दों का पूर्व निपात करने का नियम नहीं है अर्थात् दो पदों का समास करने पर अल्पचर और इकारान्त, उकारान्त, पूर्व निपात का विधान करने वाले सूत्र लागू होते हैं-परन्तु तीन चार आदि बहुत से पदों का द्वन्द्व समास करने पर पूर्व निपात के नियम लागू नहीं होते हैं। तथा अन्य भी स्वामित्व साधनादि का निरूपण निर्देश पूर्वक ही होता है, अत: अर्थ सम्बन्धी न्याय से निर्देश का सूत्र में प्रथम ग्रहण करना विरुद्ध नहीं है। अथवा स्वामित्व आदि का प्रश्नों के अनुसार क्रम है, ऐसा जानना चाहिए अर्थात् वस्तु के नामोच्चारण करने पर ही स्वामित्व आदि के प्रश्न उठते हैं अत: सर्व प्रथम निर्देश का कथन किया है। संक्षिप्त प्रमाण नय के द्वारा संक्षेप से अधिगम होता है, ऐसा कहना चाहिए और मध्यम रुचि की अपेक्षा से उन्हीं मध्यम विस्तार वाले प्रमाण और नय के द्वारा अधिगम होता है ऐसा कहना चाहिए था,
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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