________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 272 रूपेण नास्तीति च भंगद्वयं, धर्मसामान्यसंबंधेन यस्य कस्यचिद्धर्मस्याश्रयत्वेनास्ति तदभावेन कस्यचिदपि धर्मस्यानाश्रयत्वेन नास्तीति च भंगद्वयं, धर्मविशेषसंबंधेन नित्यत्वचेतनत्वाद्यन्यतमधर्मसंबंधित्वेनास्ति तदभावेन तदसंबंधित्वेन नास्तीति च भंगद्वयमित्यनेकधा विधिप्रतिषेधकल्पनया सर्वत्र मूलभंगद्वयं निरूपणीय अथास्ति जीव इत्यस्तिशब्दवाच्यादर्थाद्भिन्नस्वभावो जीवशब्दवाच्योर्थः स्यादभिन्नस्वभावो वा ? यद्यभिन्नस्वभावस्तदा तयोः सामानाधिकरण्यविशेषत्वाभावो घटकुटशब्दवत् तदन्यतराप्रयोगश्च, तद्वदेव विपर्ययप्रसंगो वा / सर्वद्रव्यपर्यायविषयास्तिशब्दवाच्यादभिन्नस्य च जीवस्य सर्वद्रव्यपर्यायात्मकत्वप्रसंग: ___ धर्मों के सामान्य सम्बन्ध से जिस किसी भी धर्म के आश्रय से जीव अस्ति स्वरूप है तथा धर्म सामान्य के अभाव की अपेक्षा और जिस किसी धर्म के आश्रय से रहित की अपेक्षा जीव नास्ति स्वरूप है, इस प्रकार ये दो भंग होते हैं अर्थात् सामान्यतः सम्पूर्ण धर्मों के साथ जीव का तादात्म्य सम्बन्ध है अत: कथञ्चित् अनन्त धर्मों का जीव के साथ तादात्म्य सम्बन्ध होने से जीव अनन्त धर्मों के आश्रय स्वरूप है (अस्ति) किन्तु तादात्म्य सम्बन्ध से रहित धर्म (गुण) का आश्रय जीव नहीं है। किसी धर्म विशेष सम्बन्ध के द्वारा नित्यत्व, चेतनत्व, अमूर्त्तत्व, कर्तृत्व, आदि धर्मों में से किसी एक धर्म के सम्बन्ध से जीव अस्तिस्वरूप है और धर्म सम्बन्ध के अभाव में नित्यत्व आदि का सम्बन्ध न होने से जीव नास्ति स्वरूप है अर्थात् नित्यत्वादि धर्म की अपेक्षा जीव अस्ति रूप है और अनित्यत्व आदि धर्म की अपेक्षा जीव नास्ति स्वरूप है, ये दो भंग होते हैं। इस प्रकार अनेक प्रकार से विधि और निषेधों की कल्पना करके सम्पूर्ण पदार्थों से सात भंगों के मूलभूत दो भंगों का कथन कर लेना चाहिए। “जीव अस्ति है" इस प्रथम वाक्य में अस्तित्व का अर्थ सत्ता है। इस अस्ति शब्द वाच्य अर्थ से जीव शब्द वाच्य अर्थ अभिन्न स्वभाव है कि भिन्न स्वभाव है ? यदि अस्ति शब्द वाच्य अर्थ जीव से अभिन्न स्वभाव है तो उन जीव और अस्ति में विशेषता के साथ होने वाले समान अधिकरण विशेषत्व का अभाव हो जायेगा। जैसे घट और कुट शब्द में सर्वथा अभेद होने के कारण समानाधिकरणता नहीं है, कथञ्चित् भिन्न पदार्थों में समानाधिकरणता होती है। ___ यदि जीव और अस्ति दोनों अभिन्न हैं तो दो पदों में से एक ही का प्रयोग नहीं करना चहिए अर्थात् जैसे पर्यायवाची घट या कलश शब्दों में एक का प्रयोग नहीं किया जाता है। अथवा उसी के समान विपर्यय हो जाने का प्रसंग आता है, अर्थात् जैसे घट के बदले में कुट शब्द का प्रयोग कर सकते हैं और कुट के बदले में घट का, उसी प्रकार 'जीव' को कहने के लिए अस्ति का और अस्ति' को कहने के लिए जीव का प्रयोग करने का प्रसंग आयेगा। जीव को कहने के लिये संभाव्य सत्तावाचक अस्ति शब्द कह दिया जायेगा। और सत्ता को कहने के लिये जीव शब्द का प्रयोग किया जायेगा। यदि सम्पूर्ण पर्याय और द्रव्यों का विषय करने वाले अस्ति शब्द के वाच्य सत्ता से जीव को अभिन्न स्वीकार किया जायेगा तो जीव का सम्पूर्ण द्रव्य और पर्यायों के साथ तदात्मक होने का प्रसंग आयेगा। (यह