________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 258 चैकवस्त्वात्मनास्तित्वस्य संसर्गः स एव शेषधर्माणामिति संसर्गेणाभेदवृत्तिः / य एव वास्तीतिशब्दोस्तित्वधर्मात्मकस्य वस्तुनो वाचकः स एव शेषानंतधर्मात्मकस्यापीति शब्देनाभेदवृत्तिः / पर्यायार्थे गुणभावे द्रव्यार्थिकत्वप्राधान्यादुपपद्यते, द्रव्यार्थिकगुणभावेन पर्यायार्थिकप्राधान्ये तु न गुणानां कालादिभिरभेदवृत्तिः अष्टधा संभवति / प्रतिक्षणमन्यतोपपत्तेर्भिन्नकालत्वात् / सकृदेकत्र नानागुणानामसंभवात्। संभवे वा तदाश्रयस्य तावद्वा भेदप्रसंगात् / तेषामात्मरूपस्य च भिन्नत्वात् तदभेदे तद्भेदविरोधात् / स्वाश्रयस्यार्थस्यापि नानात्वात् अन्यथा नानागुणाश्रयत्वविरोधात् संबंधस्य च संबंधिभेदेन भेददर्शनात् नानासंबंधिभिरेकत्रैकसंबंधाघटनात् तैः क्रियमाणस्योपकारस्य च प्रतिनियतरूपस्यानेकत्वात् गुणिदेशस्य च अनुरूप कर देता है वही एक उपकार सम्पूर्ण अशेष गुणों एवं पर्यायों को वस्तु के अनुरूप करने वाला है क्योंकि, सम्पूर्ण धर्मों में परस्पर भेद नहीं है। जो अस्तित्व का गुणी देश है उस गुणी देश के साथ अभेद वृत्ति होने से वही अशेष अन्य गुणों का गुणी देश है। जो वस्तु के अस्तित्व गुण का संसर्ग है, वही अशेष धर्मों का संसर्ग है क्योंकि संसर्ग की अपेक्षा भी परस्पर गुणों में अभेद वृत्ति है। जो अस्ति शब्द अस्ति धर्मात्मक वस्तु का वाचक है वही अस्ति शब्द शेष बचे वस्तु के अनेक धर्मों के अस्तित्व का भी वाचक है, इस प्रकार शब्द के द्वारा भी सम्पूर्ण धर्मों की एक वस्तु में अभेद वृत्ति अर्थात् इस प्रकार काल, आत्मरूप, अर्थ, सम्बन्ध, उपकार, गुणिदेश, संसर्ग, शब्द इनके द्वारा अनन्त गुणों में अभेद वृत्ति है क्योंकि, द्रव्यार्थिक नय की प्रधानता से, और पर्यायार्थिक नय की गौणता से अनन्त गुणों का परस्पर काल आदि की अपेक्षा अभेद है सभी गुण, पर्यायों का द्रव्य क्षेत्र काल भाव एक ही है। तथा द्रव्यार्थिक नय की गौणता और पर्यायार्थिक नय की प्रधानता से कथन करने पर परस्पर में अनन्त गुणों के कालादिक के साथ आठ प्रकार की अभेदवृत्ति संभव नहीं है क्योंकि, प्रत्येक क्षण में गुण भिन्न-भिन्न रूप से परिणत होते हैं अतः भिन्न-भिन्न धर्मों का काल भिन्न-भिन्न है। पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा एक समय में एक वस्तु में अनेक गुणों (स्वभावों) का रहना संभव नहीं है यदि एक समय में एक वस्तु में अनेक गुणों का रहना संभव होगा तो उन गुणों की आश्रयभूत वस्तु का उतने प्रकार से भेद हो जाने का प्रसंग आएगा अर्थात् जितने गुण हैं, उतने गुणों की आश्रयभूत वस्तु भी उतनी संख्या वाली हो जाएगी इसलिए पर्यायार्थिक नय से अनेक गुणों के साथ काल की अपेक्षा अभेद वृत्ति नहीं है अर्थात् भेद वृत्ति है तथा उनका कार्य भी भिन्न-भिन्न है जैसे ज्ञान गुण का कार्य जानना है और दर्शन का देखना। ___ पर्याय दृष्टि से उन गुणों का आत्मस्वरूप भी भिन्न-भिन्न है। यदि अनेक गुणों का आत्मस्वरूप सर्वथा अभिन्न माना जायेगा तो गुणों में भेद होने का विरोध होगा अर्थात् एक वस्तु में एक स्वभाव वाले अनेक गुण नहीं रह सकते अत: आत्मस्वरूप की अपेक्षा भी गुणों में सर्वथा अभेदवृत्ति सिद्ध नहीं होती।