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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 256 नेतरैस्तेषामप्रस्तुतत्वादिति केचित् , सत्यं / स तु तादृशोर्थः शब्दात्प्रतीयमानः / कीदृशात्प्रतीयते इति शाब्दव्यवहारचिंतायां स्यात्कारो द्योतको निपातः प्रयुज्यते लिङतप्रतिरूपकः / केन पुन: शब्देनोक्तोनेकांत:? स्यात्कारेण द्योत्यत इति चेत् , सदेव सर्वमित्यादिवाक्येनाभेदवृत्त्याभेदोपचारेण चेति ब्रूमः / सकलादेशो हि यौगपद्येनाशेषधर्मात्मकं वस्तु कालादिभिरभेदवृत्त्या प्रतिपादयत्यभेदोपचारेण वा तस्य प्रमाणाधीनत्वात् / विकलादेशस्तु क्रमेण भेदोपचारेण भेदप्राधान्येन वा तस्य नयायत्तत्वात् / कः पुनः क्रमः किं वा यौगपद्यं? है क्योंकि, स्यात् पद के ही उपरिकथित अर्थ का द्योतकपना है अर्थात् ‘स्याद्' पद के प्रयोग से ही अस्ति नास्ति दो विरुद्ध धर्म एक वस्तु में सिद्ध हो सकते हैं। ____ शंका : जो वस्तु है, वह स्वकीय द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के द्वारा ही है तथा पर द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा नहीं है क्योंकि, परद्रव्य का प्रस्तुत प्रकरण नहीं है (अत: स्यात् पद का प्रयोग करना व्यर्थ है) ऐसा कोई कहते हैं ? समाधान : जैनाचार्य कहते हैं कि ऐसा कहना उचित नहीं है क्योंकि वैसा अर्थ शब्द से प्रतीत हो रहा है। शब्द से प्रतीत होने वाला अर्थ किस प्रकार के शब्द से प्रतीत होता है ? इस प्रकार शब्दजन्य व्यवहार का विचार करने पर स्यात्' इस अर्थ के द्योतक निपात का प्रयोग करना चाहिए अर्थात् स्यात् पद के प्रयोग से ही स्वक्षेत्र, काल, द्रव्य और भाव की अपेक्षा अस्तित्व और पर द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा नास्तित्व सिद्ध होता है। अदादि गण की ‘अस् भुवि' धातु से लिङ् लकार में प्रथम पुरुष का एकवचन स्यात् बनता है। यह स्यात् निपात उसके सादृश्य को रखने वाला लिङन्त प्रतिरूपक अव्यय है। प्रश्न : किस शब्द के द्वारा कथित अनेकान्त स्यात् शब्द के द्वारा प्रकाशित किया जाता है ? उत्तर : स्यात्कार के द्वारा ही अनेकान्त प्रकाशित होता है? क्योंकि “सम्पूर्ण पदार्थ सत् स्वरूप ही हैं" इत्यादि वाक्य की अभेद वृत्ति (सम्बन्ध) से वा अभेद उपचार (व्यवहार) से अनेकान्त कहा जाता है ऐसा हम कहते हैं। यानी अभेद वृत्ति होने के कारण एक धर्म के प्रतिपादक शब्द से अनेक धर्म कह दिए जाते हैं। सम्पूर्ण वस्तु का कथन करने वाला सकलादेश वाक्य तो वस्तु के काल, आत्मस्वरूप आदि के द्वारा अभेद वृत्ति या अभेद उपचार से स्वकीय सम्पूर्ण धर्मों का एक साथ कथन करता है क्योंकि वह सकलादेश वाक्य प्रमाण के अधीन हो रहा बोला जाता है और वस्तु के एक अंश को कहने वाला विकलादेश तो भेद के उपचार से या भेद की प्रधानता से क्रमशः अशेष धर्मात्मक वस्तु का प्रतिपादन करता है क्योंकि उस विकलादेश वाक्य की प्रवृत्ति नयों के अधीन है। प्रश्न : क्रम क्या है ? और युगपत् क्या है ?
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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