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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 252 समुदायिनां व्यवच्छेदे तदात्मन: समुदायस्य सर्वशब्दवाच्यस्य प्रतिषेधादिष्टापवादः संभवति, समुदायिभ्य: कथंचित्भेदात्समुदायस्य / नाप्यद्व्यादीनां प्रतिषेधे व्यादिविधानविरोधः परमसंख्यातोऽल्पसंख्यायाः कथंचिदन्यत्वात् / तदेवं विवादापन्नं केवलं पदं सव्यवच्छेद्यं पदत्वाद्घटादिपदवत् सव्यच्छेद्यत्वाच्च सार्थक तद्वदिति प्रतियोगिव्यवच्छेदेन स्वार्थप्रतिपादने वाक्यप्रयोगवत्पदप्रयोगेपि युक्तमवधारणमन्यथानुक्तसमत्वात् तत्प्रयोगस्यानर्थक्यात् / अन्ये त्वाहुः सर्वं वस्त्विति शब्दो द्रव्यवचनो जीव इत्यादिशब्दवत् तदभिधेयस्य विशेष्यत्वेन द्रव्यत्वात्, अस्तीति गुणवचनस्तदर्थस्य विशेषणत्वेन गुणत्वात् / तयोः सामान्यात्मनोविशेषाद्व्यवच्छेदेन विशेषणविशेष्यसंभवत्वावद्योतनार्थ एवकारः। शुक्ल एव पट इत्यादिवत् स्वार्थसामान्याभिधायकत्वाद्विशेषणविशेष्यशब्दयोस्तत्संबंधसामान्यद्योतकत्वोपपत्ते: एवकारस्येति / तेपि यदि विशिष्ट पदप्रयोगेनैवकारः प्रयोक्तव्य इत्यभिमन्यंते स्मृते तदा न स्याद्वादिनस्तेषां असर्व पद के द्वारा कथनीय समुदायियों को व्यवच्छेद (पृथक्) कर देने पर उन समुदायियों से अभिन्न तदात्मक सर्वशब्द के द्वारा वाच्य, समुदाय का निषेध हो जाने पर इष्ट पदार्थ का अपवाद संभव नहीं है क्योंकि समुदाय और समुदायी में कथञ्चित् भेद पाया जाता है तथा अद्वि-अत्रि आदि का निषेध होने पर भी अद्वि-अत्रि आदि संख्या के विधान का विरोध नहीं है क्योंकि बड़ी संख्या से अल्प संख्या में कथञ्चित् भेद स्वीकार किया गया है। (कथञ्चित् दोनों को पृथक्-पृथक् माना है।) इस प्रकार विवादापन्न अन्य पदों से रहित केवल पद (पक्ष) व्यवच्छेद्य सहित है, (साध्य) घट पट आदि के समान पदत्व होने से। इस अनुमान से व्यवच्छेद्यत्व सिद्ध हो जाने पर दूसरे अनुमान के द्वारा व्यवच्छेद्य सहित हेतु केवल पद को सार्थकपना भी उन घट पट, आदिकों के समान सिद्ध कर लिया जाता है। इस प्रकार अपने से भिन्न प्रतियोगियों की व्यावृत्ति करके स्वार्थ के प्रतिपादन करने में जैसे वाक्य का प्रयोग सार्थक है, उसी के समान पद के प्रयोग में भी एवकार के द्वारा अवधारणा करना उपयुक्त है। अन्यथा नहीं कहे हुए के समान हो जाने से उस पद का प्रयोग करना व्यर्थ होगा। ___ अन्य मतावलम्बी कहते हैं कि जीव इत्यादि शब्दों के समान सर्व, वस्तु ये शब्द भी द्रव्य के कथक होने से द्रव्यवाची शब्द हैं, क्योंकि इनके द्वारा कहा गया पदार्थ विशेष्य होने के कारण द्रव्य है। ‘अस्ति' यह शब्द विशेषणत्व से गुण होने से पदार्थ के गुण का कथन करता है-अतः गुणवाची शब्द है। सामान्य आत्मक गुण और द्रव्य उन दोनों का विशेष रूप से व्यवच्छेद (पृथक् भाव) करके विशेषण-विशेष्य भाव को प्रगट करने के लिये एवकार शब्द का प्रयोग करना चाहिए, जैसे कि 'शुक्ल एव पट' 'द्रौण एव ब्रीहिः' शुक्ल ही पट है, द्रौण ही चावल, इत्यादि स्थलों पर विशेषण विशेष्यों का कर्मधारय समास करने पर एवकार लगाया जाता है। विशेषण और विशेष्य शब्द दोनों ही अपने-अपने अर्थ के सामान्य रूप से अभिधायक होने से उनके सामान्य रूप से सम्बन्ध को द्योतन करने के लिए एवकार का प्रयोग आवश्यक है। तभी एवकार का द्योतकपना सिद्ध हो सकता है। इसके प्रत्युत्तर में जैनाचार्य कहते हैं कि इस प्रकार कहने वाले भी विशिष्ट पद का उच्चारण करने पर या सामान्य के द्वारा विशेष का स्मरण कर लेने पर एवकार का
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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