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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक* 13 चेन्न, दर्शनमोहोपशमादिभेदापेक्षस्य तस्यैकत्वायोगात्। अन्यथा सर्वस्यैकत्वापत्तिः कारणादिभेदस्याभेदकत्वात्, क्वचित्तस्य भेदकत्वे वा सिद्धः पुरुषस्य स्वभावभेदः। इति जीवद्रव्याभेदेन निर्देशादयस्तत्र साधीयांसोल्पबहुत्वादिवदिति वक्ष्यते। कर्मरूपत्वेपि श्रद्धानस्य तदविरोध इति चेन, तस्य मोक्षकारणत्वाभावात्, स्वपरिणामस्यैव तत्कारणत्वोपपत्तेः। कर्मणोपि मुक्तिकारणत्वमविरुद्धं स्वपरनिमित्तत्वान्मोक्षस्येति चेन्न, कर्मणोन्यस्यैव कालादेः परनिमित्तस्य सद्भावात्। ननु च यथा मोक्षो जीवकर्मणोः परिणामस्तस्य द्विष्ठत्वात्, तथा मोक्षकारणश्रद्धानमपि तदुभयविवर्तरूपं भवत्विति चेन्न, मोक्षावस्थायां तदभावप्रसंगात्, स्वपरिणामिनोऽसत्त्वे परिणामस्याघटनात्, पुरुषपरिणामादेव च कर्मसामर्थ्यहननात्तस्य कर्मरूपत्वायोगात्। में भी आत्मा में एकत्व मान लिया जाए तो सर्व जीवादि पदार्थों में एकत्व की आपत्ति आयेगी अर्थात् सर्व पदार्थ एक हो जायेंगे। . क्योंकि आपने कारणभेद, गुणभेद, आकारभेद आदि भेदों से द्रव्यों में भेद नहीं माना है। यदि कहीं पर कारण, गुण, आकार आदि में भेदकत्व स्वीकार करेंगे तो आत्मा के स्वभावभेद सिद्ध हो जाता है। अर्थात् सत् , संख्या आदि की अपेक्षा वस्तु में भेद है अत: जीवद्रव्य से श्रद्धा गुण की भेदविवक्षा करने पर उसमें अल्पबहुत्व आदि के समान निर्देश आदि भी भली प्रकार सिद्ध होते हैं, ऐसा आगे कहेंगे। . शंका : मोहनीय कर्म प्रकृतियों में भी सम्यक्त्व नाम की प्रकृति है अतः सम्यग्दर्शन को कर्मत्व मानने में कोई विरोध नहीं है। .. समाधान : ऐसा कहना उचित नहीं है, क्योंकि उस कर्मप्रकृति में मोक्ष के कारणत्व का अभाव है, आत्मपरिणाम के ही मोक्षकारणत्व की उत्पत्ति होती है अर्थात् आत्मपरिणाम रूप औपशमिकादि सम्यग्दर्शन ही मोक्ष का कारण होता है। सम्यक्त्व प्रकृति आदि मोक्ष का कारण नहीं है। प्रश्न : कर्म रूप सम्यक्त्व प्रकृति को मोक्ष का कारण मानने में कोई दोष नहीं है (अविरुद्ध है) क्योंकि मोक्ष की उत्पत्ति स्व-पर निमित्त से होती है। उत्तर : ऐसा कथन उचित नहीं है, मोक्ष की उत्पत्ति में सम्यक्त्व प्रकृति को कारण मानना ठीक नहीं है क्योंकि मोक्ष की उत्पत्ति में उपादान कारण तो आत्मपरिणाम ही हैं तथा अन्य काल आदि परनिमित्त के कारणत्व का सद्भाव है। इससे भिन्न कर्म मोक्ष का कारण नहीं है। अर्थात् सम्यक्त्व प्रकृति को मोक्ष का कारण मानना उचित नहीं है। शंका : जैसे मोक्ष जीव और कर्म की पर्याय है, अर्थात् आत्मा और पौद्गलिक कर्मों का पृथक्पृथक् हो जाना ही मोक्ष है। अत: दोनों में रहने वाला धर्म है। उसी प्रकार मोक्ष का कारण श्रद्धान भी दोनों की पर्याय होनी चाहिए। . समाधान : ऐसा कहना योग्य नहीं है, क्योंकि यदि श्रद्धान गुण को जीव और पुद्गल दोनों का परिणाम माना जायेगा तो मोक्ष अवस्था में श्रद्धान गुण के अभाव का प्रसंग आयेगा। स्वपरिणामी (परिणमन करने वाले धर्मी) के अभाव में उसकी परिणमन रूप पर्याय का रहना भी घटित नहीं हो सकता। तथा आत्मा के परिणाम से ही कर्म (सम्यक्त्वप्रकृति) के सामर्थ्य (रस) का घात होता है, अतः सम्यग्दर्शन के कर्मरूपत्व होने का अयोग है। इसलिए सम्यग्ज्ञान के समान अहेय (जिसका त्यजन-त्याग नहीं होता उसे अहेय कहते हैं) होने से तथा मोक्ष का प्रधान कारण होने से सम्यग्दर्शन कर्मप्रकृति रूप नहीं
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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