________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 238 समुदाये तु प्रश्नः पुनरुक्तः, प्रथमस्य तृतीयावयवत्वेन पृष्टत्वात् / तथा प्रथमस्य चतुर्थादिभिर्द्वितीयस्य तृतीयादिभिस्तृतीयस्य चतुर्थादिभिश्चतुर्थस्य पंचमादिभि: पंचमस्य षष्ठादिना षष्ठस्य सप्तमेन सहभावे प्रश्न: पनरुक्तः प्रत्येयस्ततो न त्रिचत:पंचषटसप्तयोगकल्पनया प्रतिवचनांतरं संभवति। नापि तत्संयोगानवस्थानं यतः सप्तभंगीप्रसादेन सप्तशतभंग्यपि जायत इति चोद्यं भवेत् / नन्वेवं तृतीयादीनामपि प्रश्नानां पुनरुक्तत्वप्रसक्तिरिति चेन्न, तृतीये द्वयोः क्रमशः प्रधानभावेन पृष्टेः प्रथमे द्वितीये वा तथा तयोरपृष्टेः। सत्त्वस्यैवासत्त्वस्यैव च प्रधानतया पृष्टत्वात् / चतुर्थे तु द्वयोः सह प्रधानत्वे पृष्टेर्न पुनरुक्तता / पंचमे तु सत्त्वावक्तव्यतयोः प्रधानतया पृष्टेः पूर्वं तयोरपृष्टेरपुनरुक्तता / षष्ठेपि नास्तित्वावक्तव्यतयोस्तथा पृष्टरेव / सप्तमे क्रमाक्रमार्पितयोः सत्त्वासत्त्वयोः प्रधानतया पृष्टेः कुतः पौनरुक्त्यं / नन्वेवं तृतीयस्य प्रथमेन संयोगे द्वयोरस्तित्वयोरेकस्य नास्तित्वस्य प्राधान्याद् प्रथम(अस्तित्व) और तृतीय अस्ति नास्तित्व के समुदाय में प्रश्न किया जायेगा तो वह प्रश्न पुनरुक्त होगा। क्योंकि प्रथम अस्तित्व तृतीय (अस्ति नास्तित्व) का अवयव होने के कारण पूछा जा चुका है। ___ उसी प्रकार यदि प्रथम को चतुर्थादि के साथ समुदित करके वा द्वितीय भेद को तृतीय भेद के साथ किया जायेगा, तीसरे को चतुर्थ आदि के साथ, चतुर्थ को पंचम आदि के साथ, पंचम को छठे आदि के साथ, और छठे भंग को सप्तम के साथ भी प्रश्न में पुनरुक्त दोष आता है, ऐसा समझना चाहिए। इस प्रकार इन सप्त भंगों के पुन: तीन, चार, पाँच, छह और सात भंगों की कल्पना कर उत्तर में दिये गये अन्य आठवें आदि प्रतिवचन संभव नहीं हैं। उन सात या सात के सम्बन्ध से उत्पन्न अन्य भंगों के संयोग से पुन: प्रश्नों के होने पर अनवस्था दोष भी नहीं है जिससे सप्त भंग के प्रसाद से सात सौभंग भी उत्पन्न हो सकते हैं। इस प्रकार की शंका हो सकती है अर्थात् सप्तभंगी के अनेक भंग उत्पन्न हो सकते हैं परन्तु अपुनरुक्त भंग सात ही हैं। प्रश्न : इस प्रकार तो तीसरे चौथे आदि भंगों के कथन में भी पुनरुक्त दोष का प्रसंग आता है केवल प्रथम (अस्ति) दूसरा (नास्ति) भंग ही अपुनरुक्त हैं। उत्तर : ऐसा कहना उचित नहीं है, क्योंकि तीसरे भंग में पूर्व के दो भंगों को क्रम से प्रधान रूप से पूछा गया है (कथन किया गया है)। प्रथम और दूसरे भंग में क्रमश: कथन नहीं किया गया है। उनमें क्रम से पृच्छा नहीं की गई है अपितु अकेले सत्त्व की प्रधानता से प्रथम भंग है और केवल असत्त्व की प्रधानता से द्वितीय भंग का कथन है। चतुर्थ भंग में अस्ति और नास्ति इन दोनों को एक साथ प्रधानता से पूछा गया है अतः इनमें पुनरुक्त दोष नहीं है। पंचम भंग में अस्ति और अवक्तव्य की प्रधानता से पूछा गया है। प्रथम प्रश्न में इन दोनों को नहीं पूछा गया है अतः अपुनरुक्त है। छठे भंग में नास्तित्व और अवक्तव्य की प्रधानता से पृच्छा की गई है। अन्य भंगों में इस प्रकार की पृच्छा (प्रश्न) नहीं है। सप्तम प्रश्न में क्रम से अर्पित सत्त्व और असत्त्व तथा अक्रम से विवक्षित सत्त्व असत्त्व के अवक्तव्य की प्रधानता से प्रश्न किया गया है, इनमें पुनरुक्तता कैसे संभव हो सकती है अर्थात् ये सातों प्रश्न अपुनरुक्त हैं और इनके उत्तर में स्याद्वादी वक्ता की ओर से दिये गये सात उत्तर उपयुक्त हैं। 1. सात सौभंग कैसे होते हैं - यह समझ में नहीं आया।