________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 11 हेयोपादेययोर्जिहासोपादित्सा च विशिष्टा श्रद्धा वीतमोहस्यापि संभवति तस्या मन:कार्यत्वादिति चेन्न, तस्या मनस्कार्यत्वे सर्वमनस्विनां तद्भावानुषंगात् / ज्ञानापेक्षं मनः कारणमिच्छाया इति चेन्न, केषांचिन्मिथ्याज्ञानभावेप्युदासीनदशायां हेयेषूपादित्सानवलोकनात् उपादेयेषु च जिहासाननुभावात्, परेषां सम्यग्ज्ञानसद्भावेपि हेयोपादेयजिहासोपादित्साविरहात्। विषयविशेषापेक्षान्मनसस्तदिच्छाप्रभव इत्यपि न युक्तं, तदभावेपि कस्यचिदिच्छोत्पत्तेस्तद्भावेपि चेच्छानुद्भवात् / कालादयोनेनैवेच्छाहेतवो विध्वस्ताः, तेषां सर्वकार्यसाधारणकारणत्वाच्च नेच्छाविशेषकारणत्वनियमः। स्वोत्पत्तावदृष्टविशेषादिच्छाविशेष इति चेत्, भावादृष्टविशेषाद् द्रव्यादृष्टविशेषाद्वा ? प्रथमकल्पनायां न तावत्साक्षात् ___ शंका : हेय पदार्थ को छोड़ने की और उपादेय को ग्रहण करने की जो विशिष्ट इच्छा उत्पन्न होती है उस विशिष्ट इच्छा को श्रद्धान कहते हैं और वह श्रद्धा वीतमोही के भी संभव है क्योंकि वह मन का कार्य है? समाधान : ऐसा कहना उचित नहीं है, क्योंकि इच्छा को मन का कार्यत्व मान लेने पर सर्व मनस्वियों (मनवालों) के हेय को छोड़ने की इच्छा और उपादेय को ग्रहण करने की इच्छा उत्पन्न होने से उन मिथ्यादृष्टियों के भी सम्यग्दर्शन के सद्भाव का प्रसंग आता है। ... प्रश्न : सर्व जीवों की इच्छा मन का कार्य नहीं है अपितु सम्यग्ज्ञान की अपेक्षा रखने वाला मनः रूप कारण कार्य विशिष्ट इच्छा का श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है ? उत्तर : ऐसा कथन ठीक नहीं है, क्योंकि मिथ्याज्ञान के होते हुए भी किन्हीं मिथ्यादृष्टि जीवों के उदासीन अवस्था होने पर हेय पदार्थों के ग्रहण करने की अभिलाषा का अभाव और उपादेय को छोड़ने की इच्छा का अननुभाव (अभाव) देखा जाता है। और किसी सम्यग्दृष्टि श्रावक के सम्यग्ज्ञान होने पर भी छोड़ने योग्य धन, आरंभ आदि में हेय बुद्धि नहीं है और ग्रहण करने योग्य व्रतादि में उपादेय की इच्छा नहीं है। ... प्रश्न : विशेष विषयों की अपेक्षा रखने वाले मन से श्रद्धान रूप इच्छा की उत्पत्ति होती है वह सम्यग्दर्शन है? उत्तर : ऐसा कहना भी युक्त नहीं है क्योंकि किसी के विषय विशेष की अपेक्षा न होते हुए भी इच्छा की उत्पत्ति होती है और किसी के विशेष विषय की अपेक्षा होते हुए भी इच्छा उत्पन्न नहीं होती। अत: विशेष विषय की अपेक्षा से होने वाली इच्छा का श्रद्धान सम्यग्दर्शन नहीं है। विशिष्ट काल, क्षेत्र आदि इच्छा के सहकारी कारण होते हैं। इस कथन का भी उपर्युक्त हेतु से खण्डन कर दिया है, क्योंकि काल आदि के सर्व कार्यों के प्रति साधारण कारणत्व है, हेय उपादेय विशिष्ट इच्छा के प्रति कारणत्व का नियम नहीं है। अर्थात् कालादि सभी कार्यों के साधारण कारण है, वे विशिष्ट कार्य के होने में नियामक नहीं हैं। ____ यदि कहें कि अपनी उत्पत्ति में विशेष अदृष्ट (पुण्य, पाप) से इच्छा होती है, अत: पुण्य, पाप इच्छा विशेष के नियामक हैं; जैसे ज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम ज्ञानोत्पत्ति का नियामक और असाता कर्म का उदय रोग आदि की उत्पत्ति का नियामक है, तो हम पूछते हैं कि इच्छा विशेष की उत्पत्ति का कारण भाव अदृष्ट विशेष है कि द्रव्य अदृष्ट (पुण्य पाप) विशेष है ? प्रथम कल्पना (भाव अदृष्ट विशेष को इच्छा