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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 219 तत्प्रमाणान्नयाच्च स्यात्तत्त्वस्याधिगमोपरः / स स्वार्थश्च परार्थश्च ज्ञानशब्दात्मकात्ततः // 4 // ज्ञानं मत्यादिभेदेन वक्ष्यमाणं प्रपंचतः / शब्दस्तु सप्तधा वृत्तो ज्ञेयो विधिनिषेधगः // 48 // मत्यादिज्ञानं वक्ष्यमाणं तदात्मकं प्रमाणं स्वार्थं शब्दात्मकं परार्थं, श्रुतविषयैकदेशज्ञानं नयो वक्ष्यमाणः स स्वार्थः शब्दात्मकः परार्थ: कात्य॑तो देशतश्च तत्त्वार्थाधिगमः फलात्मा स च प्रमाणान्नयाच्च कथंचिद्भिन्न इति सूक्तं प्रमाणनयपूर्वकः / शब्दो विधिप्रधान एवेत्ययुक्तं, प्रतिषेधस्य शब्दादप्रतिपत्तिप्रसंगात् / तस्य गुणभावेनैव ततः प्रतिपत्तिरित्यप्यसारं, सर्वत्र सर्वदा सर्वथा प्रधानभावेनाप्रतिपन्नस्य गुणभावानुपपत्तेः / स्वरूपेण इस कथन से यह सिद्ध होता है कि प्रमाण और नय के द्वारा तत्त्वों का अधिगम होता है, वह अधिगम कथञ्चित् प्रमाण और नय से भिन्न है, वह अधिगम स्वार्थ और परार्थ के भेद से दो प्रकार का है। ज्ञानात्मक अधिगम स्वार्थ है और शब्दात्मक अधिगम परार्थ है; अर्थात् स्वार्थ अधिगम स्वयं अपने लिए उपयोगी है और जो वचनात्मक है उससे दूसरे को समझाया जाता है। मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय और केवलज्ञान के भेद से ज्ञान का कथन विस्तारपूर्वक आगे करेंगे तथा विधि और निषेध के अवलम्ब से शब्द सात प्रकार के जानने चाहिए // 47-48 // आगे कहे जाने वाले मतिज्ञानादि तदात्मक प्रमाण स्वार्थ हैं अर्थात् ज्ञानस्वरूप होने से स्वकीय आत्मा के लिए है तथा शब्दात्मक ज्ञान परार्थ है; वह शब्द स्वरूप है, दूसरे श्रोताओं के लिए है। श्रुतज्ञान के द्वारा जाने गये विषय को एकदेश जानने वाला नय है। उन का कथन आगे प्रथम अध्याय के अन्तिम सूत्र में करेंगे। ज्ञानात्मक नय और शब्दात्मक नय के भेद से नय दो प्रकार का है उसमें ज्ञानात्मक नय स्व स्वरूप को जानने का साधन है और शब्दात्मक नय दूसरों को समझाने के लिए होता है। . सम्पूर्ण रूप से तत्त्वार्थाधिगम होना प्रमाण का फल है और एकदेश तत्त्वार्थाधिगम होना नय का फल है और वह फल प्रमाण और नय से कथञ्चित् भिन्न है और कथञ्चित् अभिन्न है इसलिए प्रमाण नय पूर्वक पदार्थों का अधिगम होता है-यह कथन समीचीन है। ____विधि रूप, निषेध रूप, अवक्तव्य, विधि निषेध रूप, विधि अवक्तव्य, निषेध अवक्तव्य और विधि निषेधअवक्तव्य के भेद से शब्द सात प्रकार का है। शब्द विधि आत्मक ही है, ऐसा कहना युक्त नहीं है, क्योंकि शब्द के द्वारा विधि होना ही माना जायेगा तो शब्द से प्रतिषेध की अप्रतिपत्ति (प्रतिषेध के ज्ञान नहीं होने) का प्रसंग आयेगा अर्थात् शब्द का उच्चारण करने पर विधि का ही ज्ञान होगा, निषेध का नहीं, परन्तु शब्द सुनते ही विधि और निषेध दोनों का ज्ञान होता है, “घट को लाओ” कहने पर घट की विधि और भैंस आदि का निषेध होता है।
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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