________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 201 तद्विकल्पोत्पत्तिलक्षणोभ्यासस्तत्र च सति तदिति नीलादाविव क्षणक्षयादावपि दर्शनस्यास्याविशेष एव, क्वचिदभ्यासस्यानभ्यासस्य वा व्यवस्थापयितुमशक्तेः / वस्तुस्वभावान्नीलादावनुभव: पटीयांस्तद्वासनायाः प्रबोधको न तु क्षणक्षयादाविति चेत् , किमिदं तत्रानुभवस्य पटीयस्त्वं? तद्विकल्पजनकत्वमिति चेत् तदेव कुत: ? तद्वासनाप्रबोधकत्वादिति चेत् , सोयमन्योन्यसंश्रयः / स्पष्टत्वं तु यदि तस्य पटीयस्त्वं तदा क्षणक्षयादावपि समानं / प्रकरणार्थित्वापेक्षो नीलादावनुभवस्तद्वासनाया: प्रबोधक इत्यप्यसारं, क्षणक्षयादावपि तस्याविशेषात् / सत्यपि क्षणक्षयादौ प्रकरणेर्थित्वे च तद्विकल्पवासनाप्रबोधकाभावाच्च नीलादौ न तदपेक्षं क्योंकि उन नील आदिकों की वासनाओं का प्रबोधकत्व होने पर उनके विकल्प ज्ञान के उत्पन्न होने रूप अभ्यास की सिद्धि होती है और विकल्पोत्पत्ति रूप उस अभ्यास की सिद्धि हो जाने पर उनकी वासना का प्रबोधकत्व सिद्ध होता है अतः अन्योऽन्याश्रय दोष है। इस प्रकार नील आदि के समान क्षणक्षयादि में भी इस निर्विकल्प दर्शन के हो जाने में कोई विशेषता नहीं है (दोनों समान ही हैं)। इसलिए क्वचित् (कहीं) नील आदिक में तो अभ्यास स्वीकार करना और क्षणिकत्व आदि में अभ्यास स्वीकार नहीं करना, ऐसी व्यवस्थापना करना शक्य नहीं है। . यदि बौद्ध कहे कि वस्तु का स्वभाव होने से नीलादि स्वलक्षणों में उत्पन्न हुआ अति कुशल अनुभव नील आदिक में विकल्प ज्ञानों की वासना का प्रबोधक हो जाता है परन्तु क्षणिकत्व आदि में उत्पन्न हुआ अनुभव विकल्प वासना का प्रबोधक नहीं है। जैनाचार्य कहते हैं कि नील आदि में उत्पन्न अनुभव की वह दक्षता क्या वस्तु है जो वासना को जागृत करके विकल्प को उत्पन्न कर देती है ? यदि कहो कि विकल्पों को उत्पन्न करना ही अनुभव की दक्षता है तो, वह दक्षता अनुभव में किससे आई है ? यदि कहो कि वासना को जागृत करने से अनुभव में दक्षता आई है तब अन्योऽन्याश्रय दोष आता है। यदि कहो कि स्पष्टता ही अनुभव की दक्षता है-जो विकल्प को उत्पन्न करती है तब तो स्पष्टपना क्षणिकत्व आदि में भी समान रूप से विद्यमान है अत: उनमें भी विकल्प ज्ञान उत्पन्न होना चाहिए। भावार्थ : सौगत के मतानुसार नील आदि स्वलक्षणों का निर्विकल्पत्व ज्ञान के द्वारा जैसा स्पष्ट अनुभव में आता है उसी प्रकार क्षणिक पदार्थों में स्पष्ट अनुभव होता है, अन्यथा क्षणिकत्व आदि वास्तविक नहीं रह सकते हैं, क्योंकि सौगत ने वस्तुभूत पदार्थ का ही प्रत्यक्ष होना माना है। "अभ्यास, प्रकरण, बुद्धि का चातुर्य और अर्थीपना, ये चार सौगत ने अनुभव की दक्षता के कारण माने हैं अतः प्रकरणत्व, अर्थित्व आदि की अपेक्षा रखने वाला अनुभव नीलादि में वासना का प्रबोधक होता है" ऐसा कहना भी असार है, क्योंकि क्षणक्षयादि में भी चार कारणों से दक्ष अनुभव विकल्प उत्पन्न करा सकता है क्योंकि क्षणिक में कोई विशेषता नहीं है। ___ अथवा-क्षण क्षयादि में प्रकरण और अर्थित्व के होने पर भी अनुभव उन विकल्प ज्ञानों में वासना के जागृतत्व का अभाव है तथा नील आदि में भी उन प्रकरण और अर्थित्व की अपेक्षा रखने वाले निर्विकल्प ज्ञान को उस वासना का प्रबोधक कहना युक्तिसंगत नहीं है, क्योंकि ऐसा मानने पर बौद्धों के द्वारा स्वीकृत कार्य-कारण भाव में व्यभिचार दोष आता है। 1. कारण के होने पर भी कार्य का नहीं होना अन्वय व्यभिचार है और बिना कारण के भी कार्य का हो जाना व्यतिरेक व्यभिचार