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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 192 तदेवास्तु ब्रह्मतत्त्वमित्यपरस्तं प्रत्याह;यन्न प्रकाशसामान्यं सर्वत्रानुगमात्मकम् / तत्प्रकाशविशेषाणामभावे केन वेद्यते // 14 // केनचिद्विशेषेण शून्यस्य संवेदनस्यानुभवेपि विशेषांतरेणाशून्यत्वान्न सकलविशेषविरहितत्वेन कस्यचित्तदनुभव: खरशृंगवत्॥ नात्र संवेदनं किंचिदनशं बहिरर्थवत् / प्रत्यक्षं बहिरंतश्च सांशस्यैकस्य वेदनात् // 15 // ___ यथैव क्षणिकमक्षणिकं वा नानैकं वा बहिर्वस्तु नानशं तस्य क्षणिकेतरात्मनो नानैकात्मनश्च साक्षात् प्रतिभासनात् तथांत:संवेदनमपि तदविशेषात्॥ स्वांशेषु नांशिनो वृत्तौ विकल्पोपात्तदूषणम् / सर्वथार्थान्तरत्वस्याभावादशांशिनोरिह // 16 // तादात्म्यपरिणामस्य तयोः सिद्धेः कथंचन / प्रत्यक्षतोनुमानाच्च न प्रतीतिविरुद्धता // 17 // . सर्वथा क्षणिक रूप विज्ञानाद्वैत मानने वाले बौद्धों का खण्डन कर देने पर ब्रह्माद्वैतवादी कहते हैंकि “नित्य और एक चैतन्य ही परम ब्रह्म है" उसके प्रति आचार्य कहते हैं जो अविच्छिन्नरूप से सर्वत्र रहने वाला, चैतन्य रूप प्रतिभास है, वह सामान्य प्रतिभास विशेषण, के अभाव में किससे जाना जा सकता है अर्थात् कोई भी पदार्थ विशेष रहित सामान्य रूप से प्रतिभासित नहीं होता है अतः चित्सामान्य का ज्ञान नहीं हो सकता // 14 // किसी एक विशेष से सर्वथा रहित संवेदन का अनुभव हो जाने पर भी वह वस्तु अन्य विशेषों से शून्य नहीं है क्योंकि गधे के सींग के समान सकल विशेष से रहित किसी भी पदार्थ का समीचीन अनुभव नहीं हो रहा है। इस जगत् में बाह्य घटादि पदार्थ के समान कोई संवेदन अंश रहित नहीं है, क्योंकि बहिरंग घटादि और अन्तरंग ज्ञान सुखादि दोनों ही पदार्थों का अंश सहित प्रत्यक्ष वेदन होता है। निरंश पदार्थ का वेदन; (ज्ञान) नहीं हो रहा है।॥१५॥ जिस प्रकार पर्यायार्थिक नय से क्षणिक और नाना रूप तथा द्रव्यार्थिक नय से अक्षणिक (नित्य); और एक रूप बहिरंग वस्तु अंश रहित नहीं है, क्योंकि नित्य-अनित्य, एक और अनेक रूप से बहिरंग वस्तु का प्रत्यक्ष प्रतिभास (ज्ञान) हो रहा है उसी प्रकार अंतरंग संवेदन (सुख दुःख का अनुभव) भी अनंश (अंश रहित) नहीं है क्योंकि अंतरंग और बहिरंग पदार्थों में प्रतीति की अपेक्षा कोई विशेषता नहीं है। स्याद्वाद सिद्धान्त में अंशी (पदार्थ) का स्वकीय अंशों में तादात्म्य रूप से वृत्ति करने में (रहने में) एकान्तवादियों के द्वारा विकल्प से गृहीत दूषण नहीं आ सकते हैं, क्योंकि स्याद्वाद सिद्धान्त में अंश और अंशी में सर्वथा अर्थान्तरत्व (भिन्नत्व) का अभाव है // 16 // ___ उन अंश और अंशी के कथंचित् तादात्म्य सम्बन्ध नामक परिणाम की प्रत्यक्ष और अनुमान प्रमाण से सिद्धि हो जाना प्रतीति विरुद्ध नहीं है अर्थात् वृक्ष रूप अवयवी में शाखा रूप अवयव की कथंचित् तादात्म्य सम्बन्ध प्रतीति सिद्ध है।।१७।। अर्थात् सर्व अतरंग, बहिरंग पदार्थ अंश सहित ही दृष्टिगोचर होते हैं।
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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